शहर के सभी वार्डों में मच्छरों की बढ़ती संख्या ने लोगों को परेशान कर दिया है। रात में घरों के बाहर और खुले में बैठना मुश्किल हो गया है। थोड़ी ही देर में मच्छरों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि लोगों को झुंड दिखाई देने लगता है। हर वार्ड के पार्षद के पास मच्छर बढ़ने की शिकायत है। लेकिन अभी तक निगम की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इधर दूसरी ओर डॉक्टरों का कहना है कि अधिकतर लोग मच्छरों के काटने की वजह से बीमार हो रहे हैं। निगम की ओर से बार-बार फॉगिंग और नालियों में दवा के छिड़काव की बात की जाती है। लेकिन हकीकत में दोनों काम महीनों से बंद है। निगम अफसरों का कहना है कि बारिश में फॉगिंग नहीं की जाती है। इस वजह से यह काम बंद था।
निगम मुख्यालय के अनुसार हर जोन में मच्छरों पर नियंत्रण के लिए करीब 15 लाख रुपए खर्च किए जाते हैं। एक जोन में दस वार्ड होते हैं। बार-बार यह दावा किया जाता है कि पूरी रकम वार्डों में खर्च की जा रही है। लेकिन लोगों का आरोप है कि मच्छरों की संख्या कम करने के लिए कोई भी ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं। इस वजह से शहर में मच्छरों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।
लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला होने की वजह से यह भी छूट दी गई है कि इस बजट में खरीदी जोन वाले अपने ही स्तर पर यानी जोन वाइज की जा सकती है। लेकिन पड़ताल में पता चला है कि इस फंड का दुरुपयोग किया जा रहा है। कर्मचारियों का दबी जुबान में कहना है कि फॉगिंग मशीन चलाने के लिए जो डीजल मिलता है उसे पार्षदों की गाड़ी में डाला जा रहा है।
जोन कमिश्नर नहीं निभा रहे जिम्मेदारी रिकार्ड रजिस्टर तक मेंटेन नहीं हो रहा शहर में मच्छर न बढ़े इसलिए निगम के सभी जोन में वहीं के स्तर पर ही दवा की खरीदी की जाती है। जोन अमला ही अलग-अलग वार्डों में दवा का छिड़काव करता है। किस वार्ड में कब-कब दवा का छिड़काव किया गया इसकी मॉनिटरिंग जोन कमिश्नरों को करना है। रिकार्ड बुक भी मेंटेन करना है।
लेकिन जोन कमिश्नर इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं लेते हैं। बताया जा रहा है कि बेहद कम फंड होने की वजह से किसी भी अफसर की इसमें दिलचस्पी नहीं होती है। कर्मचारी कब-क्या कर रहे हैं इसकी तक जानकारी नहीं ली जाती है। यही वजह है कि वार्डों में मच्छरों का प्रकोप बढ़ते ही जा रहा है।
पहले हस्ताक्षर लेते थे छिड़काव हुआ बाद में वो भी बंद कर दिया निगम ने कुछ समय पहले यह व्यवस्था बनाई थी कि जिस भी वार्ड में दवा का छिड़काव किया जा रहा है या फागिंग हो रही है उन वार्डों के पार्षदों और आम लोगों के हस्ताक्षर लिए जाए। ताकि पता चल सके कि वार्डों में यह काम हो रहा है या नहीं? लेकिन बिना किसी ठोस कारण के इस सिस्टम को भी बंद कर दिया गया है।
कालोनियों और मुख्य सड़क वाले इलाकों में रहने वाले लोगों का दावा है कि उन्होंने कई साल से न तो दवा का छिड़काव देखा है और न ही फॉगिंग होते। हर महीने 15 लाख रुपए कहां खर्च हो रहे हैं इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।
मच्छरों को भगाने टेंडर जारी, काम शुरू नहीं मच्छरों पर नियंत्रण करने के लिए निगम की ओर से 1.24 करोड़ का टेंडर जारी किया गया था। अगस्त में यह टेंडर खोला गया था। इसमें चार कंपनियों ने हिस्सा लिया था। निगम का दावा था कि तीन महीने के लिए नई एजेंसी नियुक्त कर दी जाएगी। इस दौरान कंपनी हर जोन में 10-10 का स्टाफ और एक सुपरवाइजर तैनात करेगी।
मच्छरों को भगाने के लिए पहली बार आउटसोर्सिंग का सहारा लिया गया। इसके बावजूद अब तक कोई भी काम शुरू नहीं कर पाया है। मच्छरों को भगाने का टेंडर किसे मिला और कंपनी क्या काम कर रही है फिलहाल कुछ भी साफ नहीं है। अभी ठंड के सीजन में मच्छरों की संख्या और बढ़ती है। ऐसे में आने वाले महीनों में लोगों की परेशानी और बढ़ेगी।
समाधान -सवा करोड़ खर्च करने की योजना मच्छरों पर कंट्रोल के लिए 1.24 करोड़ खर्च करने की योजना तैयार है। हर जोन में इसके लिए अतिरिक्त स्टाफ तैनात किया जा रहा है। बारिश में फॉगिंग नहीं की जा रही थी। अब नियमित फॉगिंग और दवा का छिड़काव कर रहे हैं। अबिनाश मिश्रा, आयुक्त निगम