सहायक शिक्षकों की शिक्षक के पद पर पदोन्नति और शिक्षक से प्रधान पाठक के पद पर पदोन्नति के मामले में हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। दरअसल जस्टिस अरविंद चंदेल की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता शिक्षकों को पुराने पदस्थ स्कूलों में जॉइन करने की छूट दी थी। इसके बाद भी राज्य सरकार ने इन शिक्षकों को जॉइन नहीं कराया था। जिस पर शिक्षकों ने दोबारा याचिका दायर कर पोस्टिंग की मांग की थी।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 10 दिनों के भीतर संशोधित शालाओं में शिक्षकों को जॉइनिंग देने के आदेश दिए हैं। बता दें कि शिक्षक प्रमोशन पोस्टिंग में घोटाला सामने आने के बाद राज्य शासन ने संशोधन आदेश को निरस्त कर दिया था।
प्रदेश के सहायक शिक्षकों को शिक्षक के पद पर पदोन्नति दी गई है। इसके बाद उनका पदांकन (notation) कर विभिन्न स्कूलों में पोस्टिंग दी गई थी। सैकड़ों शिक्षकों को दूरस्थ स्कूलों में पदस्थ किया गया था। इसके खिलाफ शिक्षा विभाग में आवेदन देकर अपनी पदस्थापना संशोधित करवाते हुए पास के स्कूलों के लिए आदेश जारी करा लिया था। संशोधन आदेश के एवज में लाखों के लेनदेन के आरोपों के बाद राज्य सरकार ने संशोधन आदेश को 4 सितंबर को एक आदेश जारी कर निरस्त कर दिया था और शिक्षकों को एकतरफा कार्यमुक्त कर दिया था।
संशोधन आदेश निरस्त करने के खिलाफ लगी थी याचिका
संशोधन आदेश निरस्तीकरण को लेकर शिक्षकों ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से अलग-अलग याचिका लगाई थी। मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद चंदेल की सिंगल बेंच में हुई। सुनवाई के बाद कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश जारी किए थे। यथास्थिति बनाए रखने के निर्देशों के चलते शिक्षक न तो पदांकन वाली शालाओं में जॉइन कर पा रहे थे और न ही संशोधित स्कूलों में। इसके चलते शिक्षकों को वेतन भी जारी नहीं हो पा रहा था।
एक बार फिर शिक्षकों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बीते 3 नवंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को 7 सदस्यीय कमेटी बनाने के निर्देश जारी किए थे। कमेटी में प्रमुख सचिव शिक्षा डीपीआई और पांचों संभाग के संयुक्त संचालक शिक्षा को शामिल करने के लिए कहा गया था। प्रभावित शिक्षकों के द्वारा 15 दिनों के भीतर कमेटी के सामने अभ्यावेदन (representation) देने और 45 दिनों में निराकरण के निर्देश दिए गए थे, तब तक शिक्षकों के वेतन की वैकल्पिक व्यवस्था बनाने के लिए पुराने स्कूलों में जॉइन करने के लिए कहा गया था।
महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा ने इसकी व्याख्या करते हुए सरकार को अभिमत दिया था कि पहले की शाला का अर्थ प्रमोशन के बाद हुई पदांकन (notation) वाली पहली पोस्टिंग है न कि संशोधन वाली पोस्टिंग।
दोबारा याचिका दायर कर मांगी राहत
महाधिवक्ता के अभिमत (opinion) के खिलाफ रिट याचिका लगाकर 100 से अधिक शिक्षकों ने हाईकोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करने और इस आदेश को संशोधित करने की मांग की थी। गुरुवार को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब पिछली सुनवाई में सरकार के संशोधन आदेश निरस्त करने के फैसले को ही रद्द कर दिया गया है, तब उस आदेश के पालन में पहली पोस्टिंग वाले स्कूलों में जॉइनिंग देने का सवाल ही नहीं उठता। कोर्ट ने राज्य सरकार को 10 दिनों के भीतर संशोधित शालाओं में शिक्षकों को जॉइनिंग देने निर्देश जारी किए हैं।