सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: वैवाहिक मामलों में दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी, झूठे केस पर पत्नी को माफ़ी मांगनी पड़ी
मुख्य बिंदु:
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IPC की धारा 498A (अब BNS की धारा 85) के तहत अब तुरंत गिरफ्तारी नहीं
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FIR दर्ज होने के बाद दो महीने तक कोई गिरफ्तारी नहीं होगी
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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की गाइडलाइंस को पूरे देश में लागू करने का आदेश
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झूठे केस में IPS अधिकारी की पत्नी को बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगनी पड़ी
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पति ने 109 दिन और ससुर ने 103 दिन बिताए थे जेल में
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कोर्ट: “जिस यातना से गुज़रे, उसकी कोई भरपाई नहीं हो सकती”
पूरी खबर विस्तार से:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवादों में दर्ज होने वाले झूठे मुकदमों और उनमें की जाने वाली अनावश्यक गिरफ्तारी को लेकर एक ऐतिहासिक और संवेदनशील निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अब से IPC की धारा 498A (वर्तमान में BNS की धारा 85) के तहत दर्ज मामलों में FIR के दो महीने तक न तो किसी की गिरफ्तारी की जाएगी और न ही कोई दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने एक विशेष मामले की सुनवाई के दौरान दिया। मामला था एक महिला आईपीएस अधिकारी द्वारा अपने पति और ससुर पर दर्ज कराए गए फर्जी दहेज उत्पीड़न केस का। इस केस में दोनों को कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा, लेकिन बाद में महिला के आरोप झूठे साबित हुए।
“माफ़ी से नहीं मिटती पीड़ा”
कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि, “इन लोगों ने जो पीड़ा झेली, उसकी न भरपाई की जा सकती है, और न ही उसका कोई समाधान संभव है।” इस मामले में IPS अधिकारी की पत्नी को बिना शर्त सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने का आदेश दिया गया।
झूठे मामलों की रोकथाम के लिए सख्त कदम
इस मामले ने न्यायपालिका को गहराई से झकझोर दिया, और कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि 498A जैसी धाराओं के दुरुपयोग को रोका जाए, जो कई बार निर्दोष लोगों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा देती हैं।
कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में जारी दिशा-निर्देश, जिनमें “कूलिंग ऑफ पीरियड” और “परिवार कल्याण समिति” जैसे उपाय सुझाए गए थे, उन्हें अब देश के सभी जिलों में लागू किया जाएगा।
इन गाइडलाइंस के अनुसार:
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FIR दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी।
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आरोपी को पहले समझौते और मध्यस्थता का अवसर दिया जाएगा।
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परिवार कल्याण समिति केस की प्राथमिक जांच करेगी।
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कूलिंग ऑफ पीरियड कम से कम दो महीने का होगा।
क्यों ज़रूरी था यह फैसला?
पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया कि धारा 498A का इस्तेमाल कई बार प्रतिशोध की भावना से किया गया। खासकर तलाक, घरेलू कलह या संपत्ति विवादों के मामलों में पत्नियां अपने पूरे ससुराल पक्ष पर केस दर्ज करा देती थीं। इससे न सिर्फ निर्दोष लोग जेल जाते थे, बल्कि परिवार भी बिखर जाते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले से स्पष्ट संकेत दिया है कि कानून का डर बना रहना चाहिए, लेकिन इसका दुरुपयोग न हो।