नितीश की कांग्रेस से नाराज़गी पता चली 6 दिन बाद; CPI की रैली में …

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पटना में सीपीआई की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इंडिया गठबंधन की चिंता नहीं है। वो 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं। उनकी वजह से इंडिया गठबंधन का कामकाज प्रभावित हुआ है। अब हम लोग आगे की बातें चुनाव के बाद ही बैठकर तय करेंगे।

26 अक्टूबर को कांग्रेस के ऑफिस सदाकत आश्रम में श्रीकृष्ण सिंह की जयंती मनाई गई थी। लालू कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम में नीतीश को भी निमंत्रण था, लेकिन वो नहीं गए थे। 6 दिन बाद आज सीपीआई के मंच से मुख्यमंत्री ने उस कार्यक्रम में ना जाने की वजह को साफ किया है।

गुरुवार को मिलर स्कूल में हो रही इस रैली में मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि सीपीआई के साथ हमारा पुराना रिश्ता है। कम्युनिस्ट पार्टी दो हिस्सा में बंट गई है। इसको एक होने के लिए सोचना चाहिए।

नीतीश ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आज जो सरकार देश में है उसको देश की आजादी से कोई मतलब नहीं है। भाजपा हिंदू-मुस्लिम में झंझट करना चाहती है। 2007 से हम कंट्रोल कर रहे हैं।

हम लोग बिहार में 95% को एकजुट किए हैं। बिहार में जितना काम किया जा रहा है वह कहां छप रहा। उन्होंने कहा कि हम लोग इतना बहाली किए हैं फिर भी थोड़ा-बहुत छपता है।

14 महीने में दी 4 लाख नौकरियां- तेजस्वी

सीपीआई की रैली में तेजस्वी यादव ने कहा कि हमारी सरकार एक दिन में एक लाख बीस हजार अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र दे रही है। अभी सरकार को 14 महीने ही हुए हैं और हमारी सरकार ने चार लाख नौकरियां दी हैं।

बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग तलवार बांट रहे हम लोग रोजगार दे रहे। बीजेपी की वजह से बिहार का दो साल बर्बाद हो गया। मध्यप्रदेश में बीजेपी ने एमएलए को खरीद लिया। बीजेपी को बिहार से बाहर करना लोकतंत्र की मांग थी। बीजेपी को भारत की सत्ता से भी बाहर करेंगे। बीजेपी की सरकार पूंजीपति की सरकार है। वहीं शिक्षक भर्ती में धांधले के आरोप पर उन्होंने कहा कि अच्छी तरह से परीक्षा ली गई है। कोई धांधली नहीं हुई है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अलग-अलग आए। दोनों के मंच पर पहुंचने के बीच लगभग दो घंटे का अंतर रहा।

लाल झंडा हमारा भविष्य- डी राजा

सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव डी राजा ने कहा कि देश से भाजपा को हटाना है। देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है। जनता के हाथ में पैसा नहीं है। युवाओं को रोजगार नहीं मिल रही है। लाल झंडा हमारा भविष्य है। इंडिया गठबंधन में हम एकजुट होकर रहेंगे और भाजपा को हटाएंगे। आजादी की लड़ाई हमारी लड़ाई है। हमें देश को बचाना है।

5 साल बाद सीपीआई की बड़ी रैली:

यह रैली पटना के गांधी मैदान में होने वाली थी, लेकिन नीतीश कुमार के नियुक्ति पत्र बांटने वाले कार्यक्रम के चलते जगह बदलकर मिलर स्कूल किया गया। बता दें सीपीआई पांच साल बाद पटना में किसी बड़ी रैली का आयोजन कर रही है। इससे पहले पार्टी ने 25 अक्टूबर 2018 को गांधी मैदान में रैली की थी। तब कांग्रेस के कई बड़े नेता भी मंच पर थे। विपक्षी एकता की नींव उसमें रखी गई थी। हालांकि, सीएम नीतीश उस दौरान एनडीए का हिस्सा थें।

1996 के बाद कोई लोकसभा चुनाव नहीं जीता:

अभी बिहार में सीपीईआई की राजनीतिक ताकत देखें तो एक भी सांसद पार्टी के पास नहीं है। हालांकि, दो विधायक हैं, बखरी से सूर्यकांत पासवान और तेघड़ा से रामजतन सिंह। बिहार में 1996 में सीपीआई ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस साल मधुबनी से चतुरानन मिश्र, बेगूसराय से शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, बक्सर से तेज नारायण सिंह यादव और जहानाबाद से रामाश्रय सिंह यादव को लोकसभा चुनाव में जीत हासिल हुई थी। उसके बाद से आज तक बिहार में सीपीआई से किसी नेता की जीत नहीं हुई है।

2019 में सीपीआई ने जब कन्हैया कुमार को बेगूसराय से लोकसभा उम्मीदवार के रूप में उतारा, तो उस दौरान पार्टी काफी चर्चा में आई थी। हालांकि, बीजेपी के गिरिराज सिंह ने उन्हें जबरदस्त पटखनी दी थी और भारी बहुमत से जीत हासिल की थी।

कन्हैया कुमार की हार का कारण ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि वहां से आरजेडी ने तनवीर हसन को मैदान में उतार दिया था। इससे भाजपा विरोधी वोटों का बिखराव हुआ। कन्हैया कुमार सीपीआई छोड़ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ चले गए। वे भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ दिखे। कांग्रेस ने उन्हें एनएसयूआई का प्रभारी बनाया है।

2019 में ही पूर्वी चंपारण से प्रभाकर कुमार ने सीपीआई के टिकट से चुनाव लड़ा था। वे भी हार गए थे। इससे पहले 2014 में बांका से संजय कुमार यादव, बेगूसराय से राजेंद्र प्रसाद सिंह सीपीआई से चुनाव लड़े। उन्हें भी जीत नहीं मिली थी।

1991 में सीपीआई के 8 सांसद चुनकर आए थे

1991 में बिहार से सीपीआई के सबसे ज्यादा सांसद चुनकर आए थे। उस समय 8 नेताओं ने चुनाव लड़ा और सभी की जीत हुई थी। मधुबनी से भोगेंद्र झा, बलिया से सूर्यनारायण सिंह, बेगूसराय से रमेंद्र कुमार, मुंगेर से ब्रह्मानंद मंडल, नालंदा से विजय कुमार यादव, बक्सर से तेज नारायण सिंह यादव, जहानाबाद से रामाश्रय सिंह यादव और हजारीबाग से भुवनेश्वर मेहता ने चुनाव जीता था।

2024 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई की जिन तीन सीटों पर बड़ी दावेदारी है, वे बेगूसराय के अलावा बांका और मधुबनी की सीट है। बांका से संजय कुमार दावेदार हैं, जबकि मधुबनी से रामनरेश पांडेय। बेगूसराय और मधुबनी की सीट बीजेपी जीती हुई है, जबकि बांका सीट पर जेडीयू का कब्जा है।

दूसरी ओर इस बात की भी चर्चा है कि कन्हैया कुमार की जगह बेगूसराय से सीपीआई उम्मीदवार कौन होगा। जिन नामों की चर्चा सबसे ज्यादा है- उनमें शत्रुघ्न प्रसाद सिंह और रामरतन सिंह शामिल हैं। ये दोनों इस बार बेगूसराय से बड़े दावेदार हैं।

एक्सपर्ट बोले- गठबंधन में कभी ज्यादा सीटें मिलती हैं कभी कम, समझौता करना पड़ता है.

सीनियर जर्नलिस्ट किरनेश कुमार कहते हैं कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का 24वां राष्ट्रीय महाधिवेशन विजयवाड़ा में 2022 में हुआ था। उसमें तय हुआ था कि वाम एकता के साथ ही धर्मनिरपेक्ष दलों को भी जोड़ेंगे। 2019 से पहले सीपीआई ने विपक्षी दलों को बुलाया था और प्रस्ताव दिया था कि हमलोग एकजुट हो और चुनावी मैदान में एकजुट होकर चलें। 2019 में यह संभव नहीं हो पाया, लेकिन 2024 में यह संभव होता दिख रहा है। चुनाव से पहले सभी पार्टियां अपना शक्ति का प्रदर्शन करती है। वहीं, प्रदर्शन सीपीआई रैली से कर रही है।

सीपीआई की सीटें घटती चली गईं..इसके क्या कारण हैं? वे कहते हैं कि समझौता के अंदर सभी की सीटें घटती हैं। 2004 में राजद की बिहार से 24 सांसद थे, इस बार उन्हें इंडिया गठबंधन में 15 सीटें मिलने की संभावना है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 2014 में 38 सीट पर लड़ी थी, लेकिन उन्हें भी 2024 में 15 सीट मिलने की संभावना है।

किरनेश कुमार ने कहा कि गठबंधन में कभी ज्यादा सीटें मिलती हैं कभी कम। समझौता करना पड़ता है। बेगूसराय में सांप्रदायिक माहौल नहीं बनता तो सीपीआई 2019 में जीतती। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद तीन दिसंबर को तय होगा कौन कितनी सीट पर लड़ेगा।

बिहार में यह दिखता रहा है कि लेफ्ट कमजोर हुआ है तो लालू प्रसाद भी कमजोर हुए हैं। लालू प्रसाद की पहली सरकार सीपीआई की मदद से बनी थी, जब सीपीआई के 26 विधायक थे। बिहार में आरजेडी और सीपीआई दोनों के वोट बैंक का आधार एक ही रहा है। 1990 से 2020 के विधान सभा के आंकड़े को देखें तो आपको पता चलेगा। इसलिए लेफ्ट मजबूत हुआ तो लालू प्रसाद की पार्टी भी मजबूत हुई है।

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