असम भी समान नागरिक संहिता (UCC) की दिशा में अपना कदम बढ़ा दिया है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने शुक्रवार को राज्य में रहने वाले मुसलमानों द्वारा विवाह और तलाक के रजिस्ट्रेशन से जुड़े 89 साल पुराने कानून को रद्द करने का फैसला किया।
इस फैसले की जानकारी देते हुए पर्यटन मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने कहा, “हमारे मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पहले ही घोषणा की थी कि असम एक समान नागरिक संहिता लागू करेगा। आज हमने असम मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1935 को निरस्त करने का बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।”
आपको बता दें कि इस अधिनियम में मुस्लिम विवाह और तलाक के लिए स्वेच्छा से रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया गया था। सरकार के नए फैसले का मतलब यह हुआ कि असम में अब इस कानून के तहत मुस्लिम विवाह और तलाक को रजिस्ट्रेशन करना संभव नहीं होगा।
बरुआ ने कहा, हमारे पास पहले से ही एक विशेष विवाह अधिनियम है और हम चाहते हैं कि सभी विवाह एक प्रावधानों के तहत रजिस्टर्ड हों।
उन्होंने बताया कि असम में वर्तमान में 94 अधिकृत व्यक्ति हैं जो मुस्लिम विवाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
लेकिन कैबिनेट के फैसले के साथ जिला अधिकारियों द्वारा इसके लिए निर्देश जारी करने के बाद उनका अधिकार समाप्त हो जाएगा। बरुआ ने कहा, “चूंकि ये लोग विवाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन करके आजीविका कमा रहे थे, इसलिए राज्य कैबिनेट ने उन्हें 2-2 लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा देने का फैसला किया है।”
उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता की दिशा में एक कदम आगे बढ़ने के अलावा कैबिनेट ने इस बात को महसूस किया कि इस अधिनियम को निरस्त करना आवश्यक है। यह काफी पुराना और ब्रिटिश काल से चला आ रहा अधिनियम था। आज के सामाजिक मानदंडों से मेल नहीं खाता था। उन्होंने कहा, “हमने यह देखा मौजूदा कानून का इस्तेमाल कम उम्र के लड़कों और लड़कियों की शादियों को रजिस्टर्ड करने के लिए किया जा रहा था। हमें लगता है कि आज का कदम ऐसे बाल विवाह को रोकने में भूमिका निभाएगा।”
12 फरवरी को सीएम सरमा ने कहा था कि उनकी सरकार राज्य में बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के लिए एक मजबूत कानून लाने की योजना बना रही है।
उन्होंने कहा था कि एक विशेषज्ञ समिति यह देखेगी कि बहुविवाह और यूसीसी दोनों को एक ही कानून में कैसे शामिल किया जाए।