कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की हुई बैठक: भूपेश को राजनांदगांव से, धनेंद्र साहू को महासमुंद से और डहरिया को जांजगीर से चुना गया।

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दिल्ली में गुरुवार को कांग्रेस की केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक हुई। इसमें छत्तीसगढ़ समेत सभी राज्यों की लोकसभा सीटों पर चर्चा की गई। बैठक के बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रभारी सचिन पायलट ने कहा कि, जो भी जीतने की स्थिति में है उसे पार्टी आदेशित करेगी।

राजनांदगांव लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम तय माना जा रहा है। वहीं महासमुंद सीट से धनेंद्र साहू और जांजगीर-चांपा से पूर्व मंत्री शिव डहरिया के नाम पर मुहर लग सकती है। शिव डहरिया इससे पहले आरंग से विधानसभा चुनाव लड़ते रहे हैं।

प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने क्या कहा-

बैठक के बाद सचिन पायलट ने कहा कि, सभी मेंबर्स से अच्छे माहौल में विस्तार से चर्चा हुई है। सार्थक माहौल में सभी सीट पर लंबी चर्चा की गई है। जैसे ही सीईसी का निर्णय होगा, जो भी निर्णय होगा जल्द आपको बताया जाएगा। वहीं बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने पर उन्होंने कहा कि, जो भी व्यक्ति चुनाव जीतने की स्थिति में है उसको पार्टी आदेशित करेगी, अंतिम निर्णय CEC लेगी।

राजनांदगांव से भूपेश बघेल क्यों?

राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों के हिसाब से कांग्रेस के लिए ये मजबूत सीट है। भूपेश बघेल कांग्रेस सरकार में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे हैं, जो ओबीसी वर्ग से आते हैं और राजनांदगांव ओबीसी बाहुल्य क्षेत्र है।

यहां से बीजेपी ने सामान्य जाति के उम्मीदवार संतोष पांडेय को मैदान में उतारा है, जो इस समय इस सीट से मौजूदा सांसद भी हैं। जातिगत समीकरण और भूपेश की लोकप्रियता को भुनाने के लिए कांग्रेस राजनांदगांव से बघेल को उम्मीदवार बना सकती है।

दुर्ग से ताम्रध्वज साहू क्यों मिल सकता है टिकट?

ताम्रध्वज साहू इससे पहले दुर्ग लोकसभा के सांसद रह चुके हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में साहू ने बीजेपी की कद्दावर नेता सरोज पांडेय को हराया था। 2019 में हुए चुनाव में प्रतिमा चंद्राकर इस सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार थीं, लेकिन उन्हें हार का सामाना करना पड़ा।

बीजेपी के विजय बघेल को यहां प्रदेश में सबसे बड़ी लीड मिली थी। इस बार भी विजय बघेल ही बीजेपी के उम्मीदवार है, जिनका सामना ताम्रध्वज साहू से हो सकता है।

पिछली हार के बाद भी महासमुंद से धनेन्द्र साहू ही क्यों?

महासमुंद लोकसभा साहू बाहुल्य क्षेत्र हैं। इस सीट मे साल 2009 से लगातार साहू प्रत्याशी ही सांसद चुनकर आए हैं। बीजेपी ने इस बार साहू की जगह रूपकुमारी चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है, जो कि अघरिया समाज से आती हैं।

2019 के चुनाव में धनेन्द्र साहू को बीजेपी के चुन्नीलाल साहू से हार का सामना करना पड़ा था। छत्तीसगढ़ में ओबीसी वर्ग में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले साहू समाज से धनेन्द्र साहू जातिगत समीकरण के आधार पर कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

राज्य बनने के बाद साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में अजीत जोगी ने इस सीट से जीत दर्ज की थी। इसके बाद हुए सभी चुनाव में ये सीट बीजेपी के ही पास रही। 2014 में चंदूलाल साहू ने अजीत जोगी को हराकर सांसद बने और फिर 2019 में चुन्नीलाल साहू ने जीत हासिल की।

जांजगीर में शिव डहरिया पर दांव खेलने की वजह

विधानसभा के नतीजों के आधार पर जांजगीर लोकसभा इस समय कांग्रेस के लिए सबसे मजबूत सीट है। इस समय इस लोकसभा की सभी सीटें कांग्रेस के पास है। जांजगीर लोकसभा सीट SC वर्ग के लिए आरक्षित है। पूर्व मंत्री शिव डहरिया SC समाज से ही आते हैं।

पूर्व मंत्री रहने और अनुभव के आधार पर डहरिया को जांजगीर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया जा सकता है। डहरिया हमेशा आरंग से विधानसभा चुनाव लड़ते रहे हैं, ये पहली बार होगा, जब उनका क्षेत्र लोकसभा के लिए बदला जा सकता है। बीजेपी ने इस बार मौजूदा सांसद गुहाराम अजगले की टिकट काटकर कमलेश जांगड़े को प्रत्याशी बनाया है।

कोरबा से ज्योत्सना महंत होंगी रिपीट?

ज्योत्सना महंत कोरबा की मौजूदा सांसद हैं। ज्योत्सना महंत के पति चरणदास महंत सक्ति विधानसभा क्षेत्र से विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। ऐसे में क्षेत्र में महंत परिवार की अच्छी पकड़ है, लेकिन यहां से बीजेपी ने सरोज पांडेय को टिकट देकर चौंका दिया है।

सरोज पांडेय अब तक दुर्ग से ही चुनाव लड़ती रहीं है। ऐसे में कोरबा लोकसभा क्षेत्र उनके लिए नया है। पिछले अनुभवों के आधार पर ही कोरबा लोकसभा से ज्योत्सना महंत को प्रत्याशी बनाया जा सकता है।

बस्तर में दीपक बैज या हरीश लखमा होंगे प्रत्याशी

बस्तर में लोकसभा की सीट के लिए कोंटा विधायक और पूर्व मंत्री कवासी लखमा ने अपने बेटे हरीश लखमा को प्रत्याशी बनाने की दावा ठोका है। बस्तर सीट से ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज पिछले चुनाव में जीतकर सांसद बने थे।

हालांकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें चित्रकोट सीट से हार का सामना करना पड़ा। बस्तर में कवासी लखमा का सियासी कद बड़ा है। ऐसे में पार्टी उनकी मांग को भी दरकिनार नहीं कर सकती इसलिए ये फैसला अब केन्द्रीय चुनाव समिति ही करेगी कि किसे टिकट दिया जा सकता है।

रायपुर से विकास उपाध्याय की दावेदारी क्यों मजबूत?

रायपुर लोकसभा क्षेत्र में विकास उपाध्याय कांग्रेस का जाना-पहचाना चेहरा है। विधानसभा चुनाव में रायपुर पश्चिम से भले ही विकास को हार मिली हो लेकिन कोई बड़ा विवाद उनके साथ नहीं जुड़ा रहा। वहीं हार के बाद भी विकास लगातार जमीनी स्तर पर एक्टिव दिखाई दे रहे हैं।

बीजेपी ने प्रदेश में सबसे ज्यादा लीड से विधानसभा चुनाव जीतने वाले नेता बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर लोकसभा का प्रत्याशी बनाया है। इसलिए उनके सामने सामान्य वर्ग के नेता विकास उपाध्याय का नाम आगे चल रहा है।

बिलासपुर से यादव समाज का प्रत्याशी हो सकता है

कांग्रेस इलेक्शन में सभी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है। प्रदेश में ओबीसी वर्ग के तीन बड़े समाज हैं, जिनमें साहू, कुर्मी और यादव समाज शामिल हैं। बीजेपी ने साहू और कुर्मी समाज से प्रत्याशी उतारा है।

ऐसे में जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस बिलासपुर से यादव समाज का प्रत्याशी उतार सकती है। इनमें विष्णु यादव और देवेन्द्र यादव का नाम आगे है। हालांकि रामशरण यादव का नाम भी इससे पहले चल चुका है।

सरगुजा से शशि सिंह का नाम आगे

सरगुजा लोकसभा से महिला प्रत्याशी शशि सिंह का नाम आगे चल रहा है। युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव और जिला पंचायत सदस्य शशि सिंह प्रदेश के आदिवासी नेता और पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की बेटी हैं। इन दिनों वे बेहद सक्रिय हैं।

11 सीटों में महिला प्रत्याशियों का समीकरण साधने के लिए शशि सिंह को प्रत्याशी बनाया जा सकता है। सरगुजा कांग्रेस के लिए इस समय सबसे कमजोर सीट है और शशि सिंह नया चेहरा हैं। कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए चिंतामणि महाराज को यहां से उम्मीदवार हैं।

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