लोकसभा और विधानसभा के साथ चुनाव कराने में कितना ज्यादा खर्च? चुनाव आयोग ने बताया…

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पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंड की अध्यक्षता में ‘एक देश एक चुनाव’ को लेकर बनी समिति ने राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

18626 पेजों की इस रिपोर्ट में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव को साथ कराने और एकल मतदाता सूची तैयार करने की बात कही गई है।

वहीं चुनाव आयोग के पोल पैनल ने उच्च स्तरीय समिति को स्पष्ट बता दिया है कि अगर विधानसभा औऱ लोकसभा के चुनाव साथ में कराए जाते हैं तो अतिरिक्त 8 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा।

यह खर्च केवल ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की खरीद में आएगा। 

एक देश एक चुनाव के लिए बनी समिति ने स्टेकहोल्डर्स से 161 दिनों तक बातचीत की। इसी क्रम में 20 फरवरी को चुनाव आयोग को भी पत्र लिखा गया था और विचार मांगे गए थे।

चुनाव आयोग ने भी कोविंद की समिति को फंड की जरूरत को लेकर जानकारी दे दी है। यही बात चुनाव आयोग ने 17 मार्च 2023 को लॉ कमीशन को भी बताई थी। इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है। 

चुनाव आयोग ने यह भी बताया है कि जिस सामान, ईवीएम या फिर कर्मचारियों को लेकर बात की गई है उसमें स्थानीय निकाय के चुनावों को शामिल नहीं किया गया है।

नगर निगम और पंचायत के चुनाव कराने की जिम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग की होती है। चुनाव आयोग ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में बदलाव करने के लिए पूरे सिस्टम में बड़े बदलाव की जरूरत पड़ेगी। 

मार्च 2023 को चुनाव आयोग ने बताया था कि वोटिंग बूथ को भी बढ़ाने की जरूरत है। 2019 में 10.38 लाख पोलिंग बूथ थे जिन्हें 2024 तक बढ़ाकर 11.93 लाख किया जाना चाहिए। वहीं पोलिंग बूथ बढ़ने की वजह से ज्यादा कर्मचारियों, ईवीएम और वीवीपैट की भी जरूरत पड़ेगी।

केंद्रीय बलों के जवानों की भी संख्या बढ़ानी पड़ेगी। सुरक्षाबलों की संख्या में कम से कम 50 फीसदी वृद्धि की जरूरत होगी। वहीं अगर विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ कराए जाते हैं तो यह संख्या और बढ़ जाएगी। 

चुनाव आयोग ने बताया था कि ईवीएम बनाने वाली दो कंपनियों BEL और ECIL को समय भी चाहिए। अनुमान है कि करीब 53.57 लाख बैलट यूनिट और 38,67 लाख कंट्रोल यूनिट और 41.65 लाख वीवीपैट की जरूरत होगी। इसमें करीब 8 हजार करोड़ रुपये का खर्च आने वाला है। 

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