रायपुर के नजदीक एक ऐसा मंदिर जहां साल में तीन बार शिवलिंग का रूप बदलता है, होलिका दहन पर लगता है मेला…!

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छत्तीसगढ़ के रायपुर के धरसींवा में एक ऐसा शिव मंदिर है, जहां हर साल होली की रात को भव्य मेला लगता है। ऐसी मान्यताएं हैं कि शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग साल में 3 बार स्वरूप बदलता है। मोहदा गांव में भक्तों की हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है। यह जगह महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि के रूप में विख्यात है, जिसे मोहदेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।

रायपुर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर रायपुर-बिलासपुर मुख्य मार्ग में तरपोंगी से लगा हुआ। मोहदा का यह प्राचीन शिव मंदिर पूरे छत्तीसगढ़ मे विख्यात है। जहां छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से शिव भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

200 साल पुराना है शिवलिंग

यहां होलिका दहन करने के बाद यहां के रानीसागर तालाब में स्नान कर शिवलिंग की पूजा-अर्चना कर दुग्धाभिषेक, रूद्राभिषेक और जलाभिषेक करते हैं। ग्रामीणों की मानें तो यह शिवलिंग करीब 200 साल पहले का माना जा रहा है।

होली की रात लगेगा मेला

स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां हर तरह की मन्नतें पूरी होती हैं। कई जिले से भक्त और प्रांतों से आते हैं। शिवलिंग का महाभिषेक करते हैं। हर साल लोग यहां आने के लिए होली का इंतजार करते हैं। इस साल भी 25 मार्च को मेला लगेगा।

तीन बार स्वरूप बदलता है शिवलिंग

ऐसा कहते हैं कि यहां के भू-फोड़ शिवलिंग साल में तीन बार अपना रूप खुद ही बदलता है। हर चार महीने में काले, भूरे और खुर-दुरे स्वरूप में अपना रूप बदलता है, जो अपने आप में अनूठा है। जानकारों की मानें तो होलिका दहन की रात शिवलिंग का दर्शन करना काफी फलदायी माना जाता है।

आदिकाल से लग रहा मेला

जनश्रुतियों के अनुसार यहां शिव मेला आदिकाल से ही हर साल होलिका दहन की रात को लगते आ रहा है। इसलिए ग्रामीण यहां आकर मनोवांछित फल की कामना करते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो मेला लगना यहां कब से शुरू हुआ है, इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है। पूर्वजों के जमाने से यहां मेला लगते आ रहा है, इसलिए यह परंपरा आज भी जीवित है।

महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि

ऐसी मान्यताएं हैं कि महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि होने के कारण यह स्थल आज भी काफी पवित्र माना जाता है। महर्षि की तपोभूमि होने के कारण मोहदेश्वर महादेव का दर्शन काफी चमत्कारी और फलदायी माना जाता है। सावन, महाशिवरात्रि, मार्च-अप्रैल और अक्टूबर के महीनें में भी यहां आस्था का जनसैलाब उमड़ता है। यहां की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।

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