क्या आप जानते हैं कि राजस्थान में पहले विधानसभा चुनाव के बाद दो मुख्यमंत्री थे? शायद नहीं! ये सच है। दरअसल 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में अजमेर-मेरवाड़ा में 30 सीटों के लिए अलग चुनाव हुए थे।
क्या आप जानते हैं कि राजस्थान में पहले विधानसभा चुनाव के बाद दो मुख्यमंत्री थे? शायद नहीं! ये सच है। दरअसल 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में अजमेर-मेरवाड़ा में 30 सीटों के लिए अलग चुनाव हुए थे। जहां भी राजस्थान की तरह कांग्रेस को बहुमत मिला था। ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री टीकाराम पालीवाल तो अजमेर मेें हरिभाऊ उपाध्याय को मुख्यमंत्री चुना गया। उस समय विधानसभा चुनाव में 26 सीटों से प्रत्याशी भी एक की जगह दो- दो चुने गए थे। एससी व एसटी को प्रतिनिधित्व देने के लिए राजस्थान की 20 और अजमेर- मेरवाड़ा की 6 सीटों से दो-दो विधायक चुने गए थे।
140 विस क्षेत्र से चुने गए 160 विधायक : राजस्थान में 140 सीटों से 160 विधायक चुने गए थे। एससी व एसटी को प्रतिनिधित्व देने के लिए 20 सीटों पर दो- दो प्रत्याशी चुने गए थे। लक्ष्मणगढ़, खेतड़ी व चूरू के अलावा हिंडौन, लक्ष्मणगढ़-राजगढ़, बैर, बाड़ी,टोंक, जयपुर-चाकसू, लालसोट-दौसा, बड़ी सादड़ी-कपासन,शाहपुरा-घनेड़ा, रेलमगरा, लाड़पुरा, झालरापाटन व रायसिंहनगर- करणपुर से सामान्य के साथ एक-एक एससी उम्मीदवार का चुनाव हुआ। डूंगरपुर, प्रतापगढ़- निंबाहेड़ा, सायरा तथा सराड़ा-सलूम्बर से सामान्य के साथ एक-एक एसटी का विधायक चुना गया था।
विलय में देरी की वजह से हुए अलग चुनाव
1949 में राजस्थान का एकीकरण होने के बाद भी अजमेर- मेरवाड़ा उसमें शामिल नहीं हुआ था। ऐसे में लोकतांत्रिक सरकार के गठन के लिए 1952 में हुए पहले चुनाव में 30 सदस्यीय विधानसभा के अलग चुनाव हुए थे। जिसमें कांग्रेस को 21 सीटों के साथ बहुमत मिला था। एससी के प्रतिनिधित्व के लिए यहां भी अजमेर प्रथम (दक्षिण- पश्चिम), अजमेर द्वितीय (पूरब), जेठाणा, नसीराबाद, केकड़ी तथा मसूदा से दो- दो सदस्य चुने गए थे। 1956 में विलय के बाद अजमेर- मेरवाड़ा को 1957 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में शामिल किया गया।
1952 के पहले विधानसभा चुनाव तक राजस्थान का हिस्सा नहीं होने की वजह से अजमेर- मेरवाड़ा का चुनाव अलग हुआ था। ऐसे में वर्तमान राजस्थान की दृष्टि से उस समय दो मुख्यमंत्री चुने गए थे। 1956 में विलय के बाद अजमेर- मेरवाड़ की विधानसभा सीटें 1957 के चुनाव में शामिल की गई। –अरविंद भास्कर, इतिहासकार.