30 मार्च 2016 को नक्सलियों ने मैलावाड़ा गांव की बीच बस्ती में एक पुल के पास ब्लास्ट कर सीआरपीएफ के मिनी ट्रक को उड़ा दिया था, जिसमें 7 जवान शहीद हो गए थे। इस घटना को लेकर पूरा गांव महीनों सदमे में था, क्योंकि ब्लास्ट बीच बस्ती में हुआ था और किसी को भनक नहीं लग पाई थी। इसके बाद मैलावाड़ा गांव के लोगों को महीनों थाने के चक्कर काटने पड़े थे।
इसके बाद ग्रामीणों ने सबक लिया। दोबारा मैलावाड़ा में जवान नक्सलियों के एंबुश में न फंसें इसको लेकर जवानों के साथ ग्रामीण भी अलर्ट हैं। यहां के युवा जिस जगह ब्लास्ट हुआ था्र वहां सड़क के दोनों ओर अब झाड़ियों को पनपने ही नहीं देते हैं। ब्लास्ट की जगह से एक किलोमीटर सड़क के दोनों ओर 50-50 मीटर जंगल को ग्रामीण साफ रखते हैं, जिससे जवानों को दूर तक आसानी से सब कुछ नजर आए।
मैलावाड़ा बस्ती के सभी लोग इस श्रमदान में योगदान देते हैं। गांव के पास के पुल-पुलियों के नीचे सफाई करते हैं। ग्रामीणों ने बताया एक घटना के बाद पूरा गांव बदनाम हो गया था। दोबारा हमारे गांव के पास ऐसी वारदात न हो इसलिए हम सफाई करते हैं। ग्रामीणों ने बताया साल में 2 से 3 बार सड़क के दोनों ओर सफाई करते हैं।
गांव के युवाओं ने बताया महीनों थाने के चक्कर और पूछताछ से हम परेशान हो गए थे। सुबह से शाम तक थाने में बैठना पड़ता था। नक्सली वारदात कर भाग गए थे पर परेशानी ग्रामीणों को उठानी पड़ी थी। मैलावाड़ा जिले का ऐसा पहला गांव हैं जहां बस्ती में शराब बेचने पर प्रतिबंध है। पकड़े जाने पर जुर्माना लगता है। यहां हल्बा और कलार समाज के लोग रहते हैं। मैलावाड़ा में ब्लास्ट के बाद महीनों बाद भी गांव सदमे से नहीं उबर पाया था इसके बाद से जवानों की सुरक्षा को लेकर ग्रामीण खुद सतर्क रहते हैं।
गांव पर दोबारा नक्सली वारदात का धब्बा न लगे और बदनामी न हो…इसलिए ऐसा
ग्रामीण संपत सिन्हा,रामचन्द्र,महावीर युवा श्रवण ने बताया 2016 कि नक्सली वारदात से पूरा गांव काफी डरा हुआ है। गांव पर दोबारा नक्सली वारदात का धब्बा न लगे इसके लिए सड़क के दोनों ओर जवानों को दूर तक दिख सके, झड़ियों में कोई छिप कर वारदात को अंजाम न दे सके इसलिए साल में दो बार गांव के दोनो तरफ मुख्य सड़क के किनारे सफाई कर देते हैं।