भयंकर हीटवेव झेल रहे उत्तर-पश्चिम और सेंट्रल इंडिया के लोगों के लिए सुकून भरी खबर है। मानसून ने केरल में दस्तक दे दी है। मौसम विभाग ने 31 मई का अनुमान लगाया था, लेकिन ये एक दिन पहले ही पहुंच गया। अब मानसूनी हवाएं तेजी से पूर्वोत्तर की ओर बढ़ रही हैं। मौसम विभाग ने अनुमान लगाया है कि अब पूरे देश में तामपान कम होगा।
सवाल 1: मानसून ने केरल में दस्तक दी, आपके राज्य में कब तक पहुंचेगा?
जवाब: केरल पहुंचने के बाद मानसून पहले से तय रास्ते में पूर्वोत्तर की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। 8 जून तक मानसून दक्षिणी भारत और पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में पहुंच जाएगा। इसके बाद पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान की तरफ बढ़ेगा।
सवाल 2: क्या अब लोगों को भीषण गर्मी से राहत मिल जाएगी?
जवाब: मौसम विभाग का कहना है कि मानसून आने के बाद अगले 5 दिन उत्तर पश्चिम और सेंट्रल भारत का तापमान 2 से 4 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है। हालांकि, अभी गर्मी से पूरी तरह से राहत मिलने की संभावना नहीं है।
इसकी वजह ये है कि जून महीने में देश के उत्तरी पश्चिमी राज्य जैसे- हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में इस बार दोगुने दिन हीटवेव चलने की आशंका है। आमतौर पर जून महीने में हीटवेव के दिन 3 होते हैं, जबकि इस बार कम-से-कम 6 दिन हीटवेव चलने की आशंका है।
जून के पहले सप्ताह में मानसून दक्षिण-पूर्व-पूर्वोत्तर के राज्यों में छा जाएगा। इससे हवा में नमी बढ़ेगी, लेकिन हरियाणा, पंजाब, दिल्ली से लेकर मध्य भारत के राज्यों में आने वाली हवाएं उमस बढ़ाएंगी।
सवाल 3: पिछले साल के मुकाबले इस मानसून सीजन में कितनी बारिश होगी?
जवाब: मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के मुताबिक इस साल देश में मानसूनी बारिश सामान्य से थोड़ी ज्यादा रहने का अनुमान है। देश में 1 जून से 3 सितंबर यानी करीब 3 महीने मानसून का सीजन होता है। इस समय देश में सामान्य बारिश 721 मिमी होती है। पिछले साल इस समय के दौरान 639 मिमी बारिश हुई थी, जो सामान्य से करीब 11% कम थी।
मौसम विभाग का अनुमान है कि इस साल 870 मिमी बारिश होगी। मानसून सीजन के आखिरी पड़ाव यानी सितंबर तक प्रशांत महासागर में ला-नीना एक्टिव होगा। इसकी वजह से मानसून सीजन में अच्छी-खासी बारिश होने की संभावना है।
मौसम वैज्ञानिक महेश पलावत के मुताबिक मध्य भारत जैसे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस साल सामान्य से ज्यादा बारिश रहने की संभावना है। इसके अलावा उत्तरी भारत जैसे- हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड , पंजाब और हरियाणा और राजस्थान में सामान्य से ज्यादा बारिश होगी।
बिहार, झारखंड, ओडिशा में सामान्य या सामान्य से कम बारिश हो सकती है। इसकी वजह ये है कि पिछले कुछ सालों में बंगाल की खाड़ी से होकर चलने वाली मानसूनी हवा की दिशा बदल गई है। पहले ये हवा झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती थी, जबकि पिछले कुछ साल से ये हवा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से होकर गुजरती है।
सवाल 4: इस साल ज्यादा बारिश होने की वजह जिस ला-नीना को बताया जा रहा है, वह क्या है?
जवाब: अल-नीनो हो या ला-नीना, ये दोनों ही भौगोलिक घटनाएं दुनिया के सबसे बड़े महासागर प्रशांत महासागर में होती हैं। ये महासागर एशिया और अमेरिका के बीच में स्थित है।
आमतौर पर प्रशांत महासागर में हवाएं साउथ अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया की ओर बहती हैं। इन हवाओं को ट्रेड विंड कहते हैं। धरती पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। ऐसे में कॉरिऑलिस प्रभाव की वजह से समुद्र में ये हवाएं उल्टे डायरेक्शन यानी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हैं।
इस नॉर्मल सिचुएशन में गर्म हवाएं ऑस्ट्रेलिया के करीब आकर प्रशांत महासागर में जमा हो जाती हैं। पानी गर्म होने की वजह से वाष्प जल्दी बनती है। इस कारण ऑस्ट्रेलिया और इसके आसपास इलाकों में तेज बारिश होती है। जबकि समुद्र के नीचे से ठंडा पानी साउथ अमेरिका के तटों पर प्रशांत महासागर के सतह पर आकर जमा होता है।
जब ला-नीना आता है…
ला-नीना के दौरान प्रशांत महासागर के ऊपर बहने वाली ट्रेड विंड और ज्यादा मजबूत हो जाती है। इसकी वजह से और ज्यादा गर्म पानी ऑस्ट्रेलिया के करीब आकर जमा हो जाता है।
इसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया और एशिया में भारी बारिश होती है। वहीं, साउथ अमेरिका और इसके आसपास के देशों में भीषण सूखे की स्थिति बन जाती है। ये आमतौर पर 3 से 4 साल तक एक्टिव रहता है।
जब अल-नीनो आता है…
समुद्र के ऊपर चलने वाली हवाएं यानी ट्रेड विंड कमजोर हो जाती है। इसकी वजह से प्रशांत महासागर में समुद्र के नीचे से ठंडा पानी सतह तक नहीं आता है। हवाओं के साथ गर्म पानी भी ऑस्ट्रेलिया के करीब समुद्र में जमा नहीं होता है।
इसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया और एशिया के आसपास बारिश नहीं होती है और सूखे की स्थिति बन जाती है। वहीं साउथ अमेरिका के आसपास के देशों में भारी बारिश होती है। अल-नीनो 6 से 12 महीने तक एक्टिव रहता है।
IMD की मौसम वैज्ञानिक गायत्री वाणी कांचीभोटला ने बताया कि इस साल ला-नीना की वजह से सामान्य से ज्यादा बारिश होने का अनुमान है। भारत के लिए आमतौर पर ला-नीना का असर अच्छा होता है। हालांकि, इसकी वजह से कई बार भारी बारिश होती है। इसके कारण देश के कई हिस्सों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है।
सवाल 5: 2024 से पहले ला-नीना कब एक्टिव हुआ था और इसका क्या असर देखने को मिला था?
जवाब: मौसम वैज्ञानिक महेश पलावत बताते हैं कि 2024 से पहले 2020, 2021 और 2022 में लगातार तीन साल ला-नीना एक्टिव रहा था। इस दौरान भारत में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी। 2023 में अलनीनो एक्टिव हो गया था। इसकी वजह से भारत और पूरे दक्षिण एशिया में काफी कम बारिश हुई थी।
भारत की तरह इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, बांग्लादेश और उनके पड़ोसी देशों में भी ला-नीना के दौरान अच्छी बारिश होती है। इस साल मई की शुरुआत में ही इंडोनेशिया में बाढ़ आ चुकी है। दूसरी ओर उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी क्षेत्रों जैसे- पनामा, कोस्टा रिका, कोलंबिया में सूखा आम बात है, जहां सर्दियां सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाती हैं।
कैलिफोर्निया और फ्लोरिडा में भी भीषण गर्मी पड़ती है। इसी समय कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी तट पर भारी बारिश होने की वजह से बाढ़ आ जाती है। दक्षिण अफ्रीका में भी सामान्य से ज्यादा बारिश होती है।
ला-नीना के दौरान अटलांटिक महासागर पर तूफान की गतिविधि बढ़ जाती है। ला-नीना साल 2021 के दौरान अटलांटिक महासागर पर रिकॉर्ड 30 तूफान पैदा हुए थे। जब भी ला-नीना मजबूत होती है तो उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भयावह बाढ़ आती है।
साल 2010 इसका उदाहरण है। जब ला-नीना की वजह से ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में भयावह बाढ़ की वजह से 10,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई। इसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया का 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा नुकसान हुआ था।
सवाल 6: ला-नीना कितने समय तक एक्टिव रहता है?
जवाब: ला-नीना लगातार 3 से 4 साल तक एक्टिव रह सकता है। पिछली बार 2020 में ला-नीना आया था, जो लगातार तीन साल एक्टिव रहा।