18वीं लोकसभा का पहला सत्र अगले हफ्ते यानी 24 जून से शुरू होने वाला है। यह सत्र 9 दिन यानी 3 जुलाई तक चलेगा। 26 जून से लोकसभा स्पीकर के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। ऐसी खबरें हैं कि भाजपा ओम बिड़ला को दूसरी बार स्पीकर बना सकती है, वहीं चंद्रबाबू नायडू की TDP और नीतीश कुमार की JDU स्पीकर पद मांग रही हैं।
इधर विपक्षी खेमा I.N.D.I.A गुट भी लोकसभा में मजबूत स्थिति में है। ऐसे में उसे उम्मीद है कि डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष के किसी सांसद को मिलेगा। हालांकि सूत्रों के हवाले से इंडिया टुडे ने बताया है कि अगर विपक्ष के सांसद को डिप्टी स्पीकर पद नहीं मिलता है तो विपक्षी खेमा स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारेगा।
डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की परम्परा रही है। 16वीं लोकसभा में NDA में शामिल रहे अन्नाद्रमुक के थंबीदुरई को यह पद दिया गया था। जबकि, 17वीं लोकसभा में किसी को भी डिप्टी स्पीकर नहीं बनाया गया था।
अहम होता है स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद
स्पीकर का पद सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन की ताकत का प्रतीक होता है। वहीं लोकसभा के कामकाज पर स्पीकर का ही कंट्रोल होता है। संविधान में स्पीकर के साथ डिप्टी स्पीकर के चुनाव का भी प्रावधान है, जो स्पीकर की गैर-मौजूदगी में उसकी ड्यूटी पूरी करता है।
माना जा रहा है कि ओम बिड़ला को स्पीकर बनाने के साथ भाजपा की आंध्र प्रदेश अध्यक्ष डी. पुरंदेश्वरी को लोकसभा उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। पुरंदेश्वरी चंद्रबाबू नायडू की पत्नी नारा भुवनेश्वरी की बहन हैं। उन्होंने नायडू का उस वक्त समर्थन किया था, जब उनकी अपने ससुर एनटी रामाराव का तख्तापलट करने पर आलोचना हो रही थी। ऐसे में उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया जाता है तो नायडू पर सॉफ्ट प्रेशर रहेगा। उनकी पार्टी पुरंदेश्वरी का विरोध नहीं कर पाएगी। पूरी खबर यहां पढ़ें…
स्पीकर क्या है, उसका काम क्या होता है?
संविधान के आर्टिकल 93 और 178 में संसद के दोनों सदनों और विधानसभा अध्यक्ष पद का जिक्र है। आमतौर पर लोकसभा में नई सरकार बनते ही स्पीकर चुनने की परंपरा रही है। PM पद की शपथ लेने के तीन दिन के अंदर इनकी नियुक्ति होती है।
स्पीकर लोकसभा का प्रमुख और पीठासीन अधिकारी है। कुल मिलाकर लोकसभा कैसे चलेगी, इसकी पूरी जिम्मेदारी स्पीकर की होती है। वो संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का भी फैसला करता है। वह सदन के नेता के अनुरोध पर सदन की ‘गुप्त’ बैठक भी आयोजित कर सकता है।