बरसात के दिनों में अधिकतर लोग दूध के सेवन को बंद कर देते हैं। मगर कुछ सामान्य बदलाव लाकर दूध को हेल्दी बनाकर इसके पोषक तत्वों को ग्रहण किया जा सकता है। जानते हैं एक्सपर्ट से मानसून में दूध पीने का सही तरीका मानसून के दौरान बार बार होने वाली बारिश की फुहारों से उमस की समस्या का सामना करना पड़ता है। दरअसल, वातावरण में मौजूद नमी का स्तर बक्टीरियल इंफेक्शन के बढ़ने का कारण साबित होने लगता है। इससे खान पान की वस्तुओं में संक्रमण के जोखिम का खतरा बढ़ जाता है। खासतौर से डेयरी प्रोडक्टस में दूध के सेवन से पहले कुछ बातों का ख्याल रखना आवश्यक है। हांलाकि बरसात के दिनों में अधिकतर लोग दूध के सेवन को बंद कर देते हैं (Side effect of giving up milk)। मगर कुछ सामान्य बदलाव लाकर दूध को हेल्दी बनाकर इसके पोषक तत्वों को ग्रहण किया जा सकता है। जानते हैं एक्सपर्ट से मानसून में दूध पीने का सही तरीका (right way to drink milk)। इस बारे में न्यूट्रिशनिस्ट शिखा द्विवेदी बताती हैं कि दूध को एक संपूण आहार माना जाता है। इसके सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) बढ़ने लगती है और ऊर्जा के स्तर में सुधार आता है। इसके सेवन से शरीर दिनभर एक्टिव रहता है और हड्डियों से संबधित समस्याएं भी कम होने लगती हैं। मगर मानसून के मौसम में संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है। वे लोग, जिनता पाचनतंत्र कमज़ोर है, उन्हें दूध को मॉडरेट ढ़ग से पीना चाहिए।
दूध का सेवन न करने से शरीर को होने वाले नुकसान (Side effect of giving up milk)
1. इम्यून सिस्टम कमज़ोर होना
दूध में इम्युनोग्लोबुलिन की मात्रा पाई जाती है, जो प्रोटीन के रूप में शरीर के इम्यून सिस्टम को बूस्ट करते हैं। इससे शरीर बैक्टीरियल इंफेक्शन से लड़ने में सक्षम हो पाता है। साथ ही मौसमी बीमारियों के प्रहार से भी मुक्ति मिल जाती है।
2. थकान और कमजोरी
दूध ऊर्जा का एक मुख्य स्रोत है। दूध का सेवन न करने से शरीर में थकान और कमजोरी का सामना करना पड़ता है। वे लोग जो मानसून में इनडाइजेशन का सामना करते हैं, वे दूध को पीने के तरीके में सामान्य बदलाव ला सकते हैं। इसके अलावा दूध को दही और लस्सी से स्वैब कर सकते हैं।
3. पाचन संबंधी समस्याएं
दूध में प्रोबायोटिक प्रॉपर्टीज़ पाई जाती है। इससे डाइजेशन को बूस्ट करने में मदद मिलती है और आंतों के स्वास्थ्य को मज़बूती मिलती है। ऐसे में दूध को लगातार स्किप करने से ब्लोटिंग, कब्ज या दस्त का सामना करना पड़ता है।