बिन आंखों की बेटियों ने दिखाई हौसले की उड़ान:छत्तीसगढ़ में अंधविद्यालय की 70 छात्राएं करिअर में सफल होकर नजीर बनीं

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रायपुर योगिता, दुर्गेश्वरी, रोशनी…कंप्यूटर के सामने बैठी हैं। जैसे ही इंस्ट्रक्टर बोलते हैं, सभी हिंदी में कंपोज करने लगती हैं। सुनने में सामान्य लगे, पर ये काम दृष्टिहीन कर रही हैं। इनकी जिंदगी रोशन कर रहा है छत्तीसगढ़ में रायपुर का अंधविद्यालय प्रेरणा गुरुकुलम विद्यापीठम। इसके संस्थापक सदस्य डॉ. राकेश कामरान बताते हैं- 40 साल पहले शुरू हुए अंधविद्यालय में आज 125 छात्राएं हैं। इनमें से 70 ने अपने हुनर, हौसले और मेहनत से रोजगार हासिल कर लिया है। कई सरकारी अधिकारी भी हैं। ऐसी बच्चियों के संघर्ष की कहानियां सुनिए उन्हीं की जुबानी…

मुझे जन्म से ही मोतियाबिंद था। गांव वाले ताने मारते थे। तय किया कुछ बनकर जवाब दूंगी। प्राध्यापक परीक्षा पास की। दूसरे दिव्यांगों से 50 अंक ज्यादा थे, पर मुझे अयोग्य माना। मैंने हाई कोर्ट में चुनौती दी। न्याय मिला। कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बनी। जो ताने मारते थे, आज वे अपने बच्चों से कहते हैं भोजकुमारी जैसा बनो।

मैं जब नौवीं में थी, रोशनी चली गई। गुरुकुलम में रहकर एमए किया। बैंक पीओ बन गई। लोग कहते कि दिव्यांग होने से नौकरी पा गई। मैंने अपने अधिकारी से कस्टमर विंडो पर बैठाने को कहा। उन्होंने मौका दिया। रायपुर के यूनियन बैंक में केवाईसी, अकाउंट स्टेटमेंट का काम देख रही हूं। अंधता कठिनाई पैदा कर सकती है, पर रास्ते बंद नहीं कर सकती।

मैं दो साल की थी, तभी मोतियाबिंद हो गया। दृष्टिबाधित बच्चों के स्कूल में रहकर बीएड कर लिया। गंभीर रूप से बीमार हुई। रायपुर छोड़कर घर आ गई। उसके बाद मैंने एसएससी पास किया। इस साल एसएससी में मुझे मल्टी टास्किंग कर्मचारी के रूप में पुणे में पदस्थ कर दिया गया। यहां भी भेदभाव कम नहीं था। पर मैंने उन्हें अपने काम से जवाब दिया।

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