75 दिनों तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा इस साल 77 दिनों तक मनाया जाएगा। 4 अगस्त को पाटजात्रा विधान पूरा कर दशहरा पर्व की शुरुआत होगी। वहीं, 19 अक्टूबर को मावली माता की डोली की विदाई के बाद पर्व खत्म होगा। इस साल दशहरा मनाने 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च हो सकता है। मां दंतेश्वरी मंदिर समिति और दशहरा समिति आयोजन की तैयारियों में जुट गई है।
जगदलपुर मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि, मावली माता की डोली मंगलवार और शनिवार को विदा होती है। लेकिन इस साल कुटुंब जात्रा विधान बुधवार को पड़ रहा है। इस विधान के बाद ही माता की डोली यहां से दंतेवाड़ा के लिए विदा होगी। दो दिन के अंतराल होने से इस साल पर्व 75 की जगह 77 दिनों तक मनाया जाएगा।
जानिए किस दिन होगी कौन सी रस्म
- 4 अगस्त- पाटजात्रा विधान
- 16 सितंबर – डेरी गड़ाई विधान
- 2 अक्टूबर- काछनगादी विधान
- 3 अक्टूबर – कलश स्थापना विधान
- 4 अक्टूबर- जोगी बिठाई विधान
- 5 अक्टूबर – फूल रथ परिक्रमा
- 10 अक्टूबर – बेल जात्रा विधान
- 11 अक्टूबर -निशा जात्रा विधान
- 12 अक्टूबर – जोगी उठाई विधान
- 13 अक्टूबर – भीतर रैनी विधान
- 14 अक्टूबर – बाहर रैनी विधान
- 15 अक्टूबर- मुरिया दरबार
- 16 अक्टूबर – कुटुंब जात्रा, देवी-देवताओं की विदाई
- 19 अक्टूबर – मावली माता की डोली विदाई
ये है मान्यता
बस्तर के इस पर्व से जुड़े मांझी चालकी ने बताया कि, दशहरा पर्व की शुरुआत पाटजात्रा रस्म के साथ होती है। लकड़ी का रथ निर्माण करने के लिए लकड़ी से ही हथौड़े तैयार किए जाते हैं। उसे टूरलू खोटला कहा जाता है। लकड़ी को बिलोरी गांव से लाया जाता है।
सिरहसार भवन के पास पूजा-अर्चना कर रथ निर्माण का काम किया जाता है। लकड़ी की पूजा अर्चना करने के बाद बकरा और मोंगरी मछली की बलि दी जाती है। यह परंपरा करीब 616 सालों से चली आ रही है।