एक तरफ देश की सबसे बड़ी सरकारी कंस्ट्रक्शन कपंनी एलएंडटी. दूसरी तरफ देश की दिग्गज आईटी कंपनी कॉग्निजेंट. मामला घूस लेकर सरकारी ठेका लेना. नतीजा अमेरिकी कोर्ट तक पहुंची बात. जी हां हम बात कर रहे हैं कॉग्निजेंट स्कैंडल मामले की. दरअसल अब इस मामले में अमेरिकी कोर्ट ने L&T के पूर्व चेयरमैन को गवाही देने के लिए कहा गया है. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला और कैसे हुआ ये सारा खेल.. देश की दिग्गज इंजीनियरिंग कंपनियों में शामिल लार्सन एंड टुब्रो कस्टमर्स के सामने इमेज क्लीयरेंस के लिए कॉग्निजेंट रिश्वत मामले में फंसी हुई है. दिग्गज कंस्ट्रक्शन कंपनियों में शामिल लार्सन एंड टुब्रो पर कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजीज से परमिट के लिए घूस लेने का आरोप है. अब इसी मामले में मामले में बड़ा अपडेट आया है. कॉग्निजेंट पर आरोप है कि उसने अपने कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्टर एलएंडटी (L&T) के जरिए कथित रूप से सरकारी अधिकारियों को प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए साल 2013-2014 में 7,70,000 की रिश्वत दी थी. इसका मकसद कंपनी के पुणे के नजदीक बन रहे कैंपस के लिए इनवायरमेंट और दूसरे क्लियरेंसेज हासिल करना था.
लेकिन जैसे ही ये मामला सामने आया L&T की पेशी अमेरिकी कोर्ट में हो गई जिसपर अब सुनवाई हो रही है. अब इस मामले में अमेरिकी सरकार ने लार्सन एंड टुब्रो के अध्यक्ष एसएन सुब्रमण्यम से बयान मांगा है कि क्या कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस ने 2013 और 2015 के बीच भारत की सबसे बड़ी निर्माण कंपनी के माध्यम से सरकारी अधिकारियों को अवैध भुगतान किया था?
मनीकंट्रोल कि रिपोर्ट के मुताबिक, अब इस मामले में घुस लेने वाले SN सुब्रमण्यम से गवाही देने को कहा है. न्यू जर्सी कोर्ट फाइलिंग के हवाले से कहा गया है कि अमेरिकी सरकार ने एलएंडटी के चार अन्य कर्मचारियों – रमेश वाडिवेलु, आदिमूलम त्यागराजन, बालाजी सुब्रमण्यम और टी नंदा कुमार और कॉग्निजेंट के दो पूर्व कर्मचारियों वेंकटेशन नटराजन और नागासुब्रमण्यम गोपालकृष्णन की गवाही भी इस मामले में मांगी है. जिस समय रिश्वत दी गई थी तब सुब्रमण्यन एलएंडटी के निर्माण व्यवसाय के प्रमुख थे.
क्या कहा गया रिपोर्ट में?
रिपोर्ट में कहा गया है कि गृह मंत्रालय ने मार्च 2023 में भेजे गए अमेरिकी विदेश विभाग के लेटर रोगेटरी या औपचारिक अनुरोध को खारिज कर दिया. इसके बाद न्याय विभाग ने दोनों देशों के बीच पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) के तहत अपने भारतीय समकक्ष से मदद मांगी. एमएलएटी अनुरोध जनवरी में किया गया था, लेकिन कॉग्निजेंट के पूर्व मुख्य परिचालन अधिकारी गॉर्डन कोबर्न के एक वकील ने जुलाई में अदालती फाइलिंग में इसका खुलासा किया था, जो मुकदमे को सितंबर से मार्च 2025 तक स्थानांतरित करना चाहते थे. कोबर्न ने अक्टूबर 2016 में कॉग्निजेंट से इस्तीफा दे दिया जब कंपनी ने अमेरिकी अधिकारियों को सूचित किया कि भारत में किए गए कुछ भुगतानों से अमेरिकी विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) का उल्लंघन हो सकता है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कानून अमेरिकी नागरिकों और संस्थाओं को विदेशी सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने से रोकता है.
घूस के दोनों मामले पुणे और चेन्नई से जुड़े हैं
यह मामला Cognizant के पुणे और चेन्नई कैंप्सेज से जुड़ा है. इसलिए कानूनी प्रक्रिया इंडिया और अमेरिका दोनों में चल रही है. कॉग्निजेंट के दुनियाभर में 3,47,000 एंप्लॉयीज हैं, जिनमें से 2,54,000 इंडिया में हैं. आरोप है कि कॉग्निजेंट ने अपने कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्टर L&T के जरिए कथित रूप से सरकारी अधिकारियों को 2013-2014 में 7,70,000 की रिश्वत दी थी. इसका मकसद कंपनी के पुणे के नजदीक बन रहे कैंपस के लिए इनवायरमेंट और दूसरे क्लियरेंसेज हासिल करना था.
लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) और कॉग्निजेंट के कई शीर्ष अधिकारी रिश्वतखोरी मामले में कथित संलिप्तता के लिए जांच के दायरे में हैं. चेन्नई की Vigilance and Anti Corruption Unit की जांच में कई पूर्व और वर्तमान अधिकारियों के नाम सामने आए हैं. यूनिट ने इन अधिकारियों पर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी, राज्य आवास और शहरी विभाग के अधिकारियों और राज्य सरकार के एक मंत्री को रिश्वत देने के लिए आपराधिक साजिश रचने का आरोप लगाया है. अधिकारियों ने KITS कैंपस सुविधा के निर्माण के दौरान अधिकारियों को रिश्वत दी, जिसे 2011 और 2016 के बीच बनाया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआईआर में एलएंडटी के अधिकारियों के नाम हैं, जिनमें सीईओ और एमडी एसएन सुब्रमण्यन, पूर्व निर्माण प्रभाग प्रमुख वी रमेश, चेन्नई बिजनेस यूनिट के पूर्व प्रमुख के कन्नन और वरिष्ठ वीपी एमवी सतीश शामिल हैं. मामले में कॉग्निजेंट के जिन अधिकारियों का नाम लिया गया है उनमें पूर्व वीपी (प्रशासन) आर श्रीमणिकंदन और पूर्व सीओओ टी श्रीधर थिरुवेंगदम शामिल हैं. NOC पाने के लिए राज्य के अधिकारियों को 12 करोड़ रुपये से अधिक की रिश्वत दी थी. इसमें कहा गया है कि निर्माण कार्य एक साल से अधिक समय से औपचारिक मंजूरी के बिना चल रहा था. एफआईआर के मुताबिक, राज्य सरकार से डील करने के लिए कंसल्टेंसी फर्म के अधिकारियों को 3 करोड़ रुपये की रिश्वत भी दी गई थी.
किसने की थी शिकायत
इस मामले में शिकायत दिल्ली के पर्यावरण कार्यकर्ता और रिटायर्ड पुलिस अफसर प्रीतपाल सिंह ने की थी. उन्होंने शिकायत में अमेरिका में कॉग्निजेंट की पेरेंट कंपनी के खिलाफ चल रही अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन की जांच के बारे में भी बताया था. इस रिश्वत कांड का खुलासा 2016 में हुआ था, जब अमेरिकी पेरेंट कंपनी का ऑडिट चल रहा था.
पुणे सेशन कोर्ट ने 19 अप्रैल, 2023 को महाराष्ट्र के एंटी-करप्शन ब्यूरो को मामले की जांच करने का आदेश दिया था. उसने कहा था कि SEC की जांच से पता चलता है कि कॉग्निजेंट ने फॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट का उल्लंघन किया है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि मामले की जांच जल्द पूरी होनी चाहिए ताकि अहम सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गुंजाइश न हो.
एसीबी ने जांच के लिए SEC डॉक्युमेंट्स को बनाए आधार
L&T ने कथित रूप से अपनी सफाई में कहा था कि परमिट हासिल करने के लिए घूस देना मजबूरी थी. शिकायतकर्ता ने कहा कि कॉग्निजेंट की इंडियन सब्सिडियरी ने रिश्वत को अपनी मंजूरी दी थी. इसका पेमेंट बाद में एलएंडटी को कर दिया गया. इस मामले की जांच में एसीबी ने ज्याादतर SEC के डॉक्युमेंट्स को आधार बनाया. एसीबी ने इस मामले में कॉग्निजेंट के अधिकारियों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत मामला दायर किया. इनमें कंपनी के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट श्री मणिकनंदन राममूर्ति सहित सहित कंपनी के कुछ अधिकारियों के साथ कुछ सरकारी अधिकारी शामिल थे. अभी इस मामले से जुड़ी जानकारी जुटाई जा रही है और घूस लेने वाले सरकारी अधिकारियों की पहचान की जा रही है.
पिछले साल शुरू होनी थी सुनवाई
एक दूसरे मामले में कॉग्निजेंट के पूर्व प्रेसिडेंट और सीएफओ Gordon Coburn और पूर्व लीगल अफसर Steven Schwartz पर चेन्नई में किट्स कैंपस बनाने के लिए परमिट हासिल करने के वास्ते 25 लाख डॉलर की घूस देने का आरोप है. अमरिका में इस मामले की जांच चल रही है. घूस का पैसा एलएंडटी के जरिए दिया गया. कोबर्न और Schwartz के खिलाफ न्यू जर्सी कोर्ट में मामले की सुनवाई 3 अक्टूबर, 2023 को शुरू होनी थी. लेकिन, इसमें देर हो रही है.
चेन्नई मामले की सुनवाई जारी है
सुनवाई में देर की वजह मुख्य गवाह श्रीमणिकनंदन राममूर्ति का उपलब्ध नहीं होना है. राममूर्ति अमेरिका जाने में असमर्थ हैं, क्योंकि इंडिया में ईडी ने उनका पासपोर्ट जब्त किया हुआ है. उन पर इस घूस कांड में सीधे तौर पर शामिल होने के आरोप हैं. बताया जाता है कि घूस के पैसे के पेमेंट में भी उनकी भूमिका थी. आरोप है कि घूस का पैसा कई चैनल से होकर अफसरों तक पहुंचा था. बाद में कंपनी ने यह पैसा एलएंडटी को वापस कर दिया था. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे मामले में एसीबी की शिकायत पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है जबकि चेन्नई मामले में सुनवाई जारी है.