ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजधानी सहित अन्य शहरों के नगरीय निकाय चुनाव पर बड़ा पेंच आ गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग के डेटा बिना यहां चुनाव के लिए आरक्षण नहीं किया जा सकता। राज्य सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को ओबीसी का सर्वे करने के लिए 30 सितंबर तक का समय दिया है। तय समय में तक सर्वे होने के बाद सरकार आरक्षण का निर्णय लेती है और जल्द ही नोटिफिकेशन जारी हो जाता है तो दिसंबर में ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव हो सकेंगे।
आरक्षण की ये प्रक्रिया तय समय में नहीं हुई तो सरकार को बिना ओबीसी आरक्षण ही चुनाव कराने पड़ेंगे। इससे बड़ा बवाच मच सकता है। ऐसी दशा में सरकार के पास चुनाव टालने का ही विकल्प रहेगा। हालांकि इसके लिए भी सरकार को कानून में संशोधन करना पड़ेगा। रायपुर समेत राज्य के विभिन्न नगर निगमों का कार्यकाल दिसंबर में खत्म हो रहा है। 15 जनवरी तक नई कार्यकारिणी का गठन हो जाना चाहिए। पिछले सभी निगम चुनाव इसी तय समय पर हुए हैं। उस समय ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं था। अभी सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है कि नगरीय निकायों में ओबीसी के वास्तविक आंकड़ों के आधार पर ही आरक्षण लागू किया जाए।
देश में 2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है। इसलिए रायपुर नगर निगम समेत प्रदेश के किसी भी नगरीय निकाय में ओबीसी जनसंख्या के वास्तविक आंकड़े नहीं हैं। इसलिए राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को ओबीसी का सर्वे करने कहा है। आयोग 30 सितंबर तक सर्वे कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगा। 30 सितंबर तक सर्वे रिपोर्ट सौंपने पर शासन को 10-15 दिनों में नोटिफिकेशन जारी करना होगा। इस स्थिति में अक्टूबर में आरक्षण हो जाएगा। रिपोर्ट में देरी होने पर आरक्षण करना ही संभव नहीं हो सकेगा। जानकारों का कहना है कि इस स्थिति में ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव कराने होंगे।
उम्मीदवारों को नहीं मिलेगा वक्त
हर बार सितंबर में आरक्षण की प्रक्रिया की जाती रही है। नवंबर में आचार संहिता और दिसंबर में चुनाव हो जाते हैं। 15 जनवरी तक नई कार्यकारिणी शपथ ले लेती है। आरक्षण में पेंच फंसने की वजह से इस बार चुनाव की प्रक्रिया में देरी होने की संभावना है। बताया जा रहा है कि आरक्षण में देरी होने का नुकसान उम्मीदवारों को भी होगा। उन्हें प्रचार के लिए ज्यादा वक्त ही नहीं मिलेगा।
ऐसे समझें पूरा मामला
राज्य में जनसंख्या के आधार पर एससी, एसटी का आरक्षण 23 प्रतिशत लागू है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। अब यह गणना करनी है कि संबंधित नगरीय निकाय में ओबीसी की जनसंख्या कितनी है। राज्य में ओबीसी का आरक्षण 27 फीसदी लागू है। यदि किसी नगरीय निकाय में ओबीसी 27 फीसदी से कम है तो आरक्षण भी उसी के अनुसार तय होगा। जैसे 20 प्रतिशत ओबीसी हैं तो एससी-एसटी मिलाकर कुल आरक्षण 43 फीसदी हो रहा है। इस स्थिति में 7 प्रतिशत वार्ड जनरल में चले जाएंगे। इससे ओबीसी की सीटें कम हो जाएंगी। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक ओबीसी के वास्तविक टेडा जरूरी है।
आरक्षण के आधार
छग नगर पालिक अधिनियम 1961 की धारा 29 की उपधारा 1 के अनुसार एसटी, एससी आरक्षित वार्ड की संख्या संबंधित नगर निगम में एसटी, एससी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षित किए जाएंगे। रायपुर में जनसंख्या के आधार पर एससी के लिए नौ और एसटी के लिए तीन वार्ड आरक्षित किए गए हैं। आरक्षण के लिए एससी, एसटी और ओबीसी की जनसंख्या प्रतिशत को आधार माना जाएगा। जनसंख्या की नई जनगणना नहीं होने के कारण 2011 की जनगणना को ही आधार माना जाएगा।
परिसीमन इसलिए आरक्षण जरूरी
राज्य सरकार ने इस साल नगरीय निकाय का नए सिरे से परिसीमन कराया है। इसलिए आरक्षण भी नए सिरे से किया जाना है। रायपुर निगम के परिसीमन का अंतिम प्रकाशन हो चुका है। हालांकि परिसीमन के खिलाफ बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई है। इस संबंध में कोर्ट का फैसला नहीं आया है। जानकारों का कहना है कि कोर्ट के फैसले से पहले ही रायपुर निगम के परिसीमन का राजपत्र में प्रकाशन हो चुका है। इसलिए अब रायपुर में परिसीमन पर स्टे लगने के आसार कम हैं। इसलिए अफसर यह तय मान रहे हैं कि रायपुर में नए परिसीमन के अनुसार ही चुनाव होंगे। इस परिसीमन पर चुनाव होंगे तो आरक्षण भी नए सिरे से होगा।