बीएससी नर्सिंग की 7631 सीटें: दस साल में तैयार होंगी 50 हजार नर्सें, लेकिन रोजगार का सवाल बरकरार

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राज्य में निजी नर्सिंग कॉलेजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल से हर साल औसतन 6 कॉलेजों को मंजूरी मिलती है। सत्र 2018-19 में 94 कॉलेज थे, जो अब 131 हो चुके हैं और इनमें बीएससी नर्सिंग की 7631 सीटें हैं। अगर हर साल 5,000 नर्सिंग छात्राएं पास हों, तो अगले 10 वर्षों में 50,000 नर्सें तैयार होंगी। 2003 से दिसंबर 2023 तक पहले ही 30,035 नर्सें रजिस्टर्ड हैं।

भास्कर की पड़ताल में सामने आया है कि इन नर्सों के पास रोजगार के अवसर सीमित हैं। सरकारी अस्पतालों में 60% से अधिक पद खाली हैं, लेकिन नियमित भर्तियां नहीं हो रही हैं। बड़े निजी अस्पताल ज्यादातर दक्षिण भारत की क्वालिफाइड नर्सों को प्राथमिकता देते हैं, जबकि छोटे और मझोले अस्पतालों में अधिक वैकेंसी नहीं है।

राज्य में 51 नर्सिंग कॉलेज आईएनसी से मान्यता प्राप्त नहीं हैं। राज्य हॉस्पिटल बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता का मानना है कि सरकार को नर्सिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ाने के बजाय उनकी गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। सवाल उठता है कि इतने कॉलेज खोलने की अनुमति क्यों दी जा रही है? मध्य प्रदेश में सीबीआई ने 690 में से 330 नर्सिंग कॉलेजों को अयोग्य घोषित किया है, ऐसी जांच यहां भी होनी चाहिए।

निजी नर्सिंग कॉलेज बन रहे नर्स बनाने की फैक्ट्री, लेकिन कैरियर का पक्का भविष्य नहीं दिखता।

सीमित विकल्प: सबसे बड़े अस्पताल में 2015 के बाद से नर्सों की भर्ती नहीं हुई राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल रायपुर में 2015 से नियमित नर्सिंग स्टाफ की भर्ती नहीं हुई है। इस अस्पताल में स्वीकृत पद 526 थे, जो बढ़कर 1,310 बिस्तरों के बावजूद नहीं बढ़े। वर्तमान में अस्पताल में 200 नियमित नर्सें हैं, जबकि 100 नर्सों को दैनिक वेतनभोगी के तौर पर नियुक्त किया गया है, जिन्हें सफाईकर्मियों के बराबर वेतन मिलता है।

जीरो परसेंटाइल का निर्णय सिर्फ निजी कॉलेजों को लाभ पहुंचा रहा है, राज्य को नहीं नर्सिंग सीटों को भरने के लिए अगर आईएनसी जीरो परसेंटाइल का आदेश जारी करता है, तो सभी प्रवेश परीक्षा में शामिल छात्र पात्र माने जाएंगे, जिससे आर्थिक रूप से केवल निजी कॉलेजों को लाभ होगा। इस प्रक्रिया में छात्रों के पास डिग्री तो होगी लेकिन नौकरी नहीं।

नर्सिंग पदों को भरने की मांग जारी है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे नर्सिंग स्टाफ की कमी का असर इलाज पर भी पड़ रहा है। नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन बार-बार हड़ताल और मंत्री से मुलाकात कर मांग कर रहा है, लेकिन परिणामस्वरूप सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं।

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