झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 13 नवंबर को समाप्त हुआ, जिसमें कुल 65% मतदान हुआ। इस बार ग्रामीण इलाकों में अधिक मतदान हुआ, जबकि शहरी इलाकों में यह अपेक्षाकृत धीमा था। हालांकि, मतदान का अंतिम आंकड़ा अभी आना बाकी है।
इस चुनाव में आदिवासी रिजर्व 43 सीटों में से 20 सीटों पर 3% अधिक वोटिंग हुई है, जो कि सरकार की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण हो सकती है। वहीं, 43 में से 28 सीटों पर, जो पहले UPA (अब INDIA) ने जीती थीं, वहां भी 3% तक की बढ़ोत्तरी हुई है। भाजपा द्वारा जीती गई 13 सीटों पर भी 2% तक का इज़ाफा देखा गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि का मतलब यह हो सकता है कि सीटिंग विधायकों के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि अधिक वोटिंग आम तौर पर एंटी इनकंबेंसी का संकेत होती है। सीनियर जर्नलिस्ट ज्ञान रंजन सिंह ने कहा कि झारखंड में आमतौर पर हर चुनाव में करीब 50% सीटिंग विधायक हार जाते हैं, और बढ़ी हुई वोटिंग से यह ट्रेंड और मजबूत हो सकता है।
आदिवासी क्षेत्रों में वोटिंग में वृद्धि यह संकेत देती है कि एंटी इनकंबेंसी ज्यादा हो सकती है, हालांकि इस पर फिलहाल कोई निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है।
युवाओं और महिलाओं के मुद्दे भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण हैं। युवाओं ने रोजगार को प्राथमिक मुद्दा बताया, जबकि महिलाओं ने मईंया सम्मान योजना और गोगो दीदी योजना से जुड़ा समर्थन जताया।
अंततः, पिछले चुनावों के आंकड़ों से यह साफ है कि जब वोटिंग प्रतिशत बढ़ा, राज्य में स्थिर सरकार बनी। 2005 और 2009 में कम मतदान के साथ सरकारें अस्थिर रहीं, जबकि 2014 और 2019 में उच्च मतदान के बाद स्थिर सरकारें बनीं।