छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड ने मस्जिदों में जुमे की नमाज के बाद होने वाली तकरीर के विषय के लिए अनुमति लेने का आदेश जारी किया है, ताकि विवादित मुद्दों पर तकरीर न हो। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि धर्म और राजनीति का मिश्रण न हो, और मुस्लिम समुदाय को केंद्र की योजनाओं के बारे में सही जानकारी मिल सके। नए नियम के तहत, मस्जिदों के मुतवल्ली (प्रबंधक) को तकरीर के विषय को वक्फ बोर्ड के व्हाट्सएप ग्रुप में भेजना होगा, जहां बोर्ड के सदस्य इसे मॉनिटर करेंगे और विवादास्पद विषयों को संशोधित करने के बाद ही अनुमति देंगे।
इस निर्णय पर विवाद हो गया है। सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसे संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए सवाल उठाया कि अब भाजपाई बताएंगे कि हमें किस विषय पर तकरीर करनी है। वहीं, सीएम साय के मीडिया सलाहकार पंकज कुमार झा ने ओवैसी को जवाब देते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड पूरी तरह से स्वतंत्र है और इसमें कांग्रेस के नियुक्त सदस्य भी हैं, इसलिए ओवैसी को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
पूर्व वक्फ बोर्ड अध्यक्ष सलाम रिजवी ने इस निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है जो इमामों को तकरीर पर निर्देशित करता हो। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक लोग इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए बढ़ावा दे रहे हैं। वहीं, बस्तर संभाग के मुस्लिम समाज ने भी इस आदेश पर नाराजगी जताई है और इसे वापस लेने की मांग की है।
छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड के इस फैसले से राज्य में धार्मिक तकरीरों पर सरकार की नजर रखने का मुद्दा फिर से चर्चा में है।