छत्तीसगढ़ में देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण से सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर को मिला नया जीवन
आलेख: श्री लक्ष्मीकांत कोसरिया, उप संचालक, जनसंपर्क
रायपुर, 05 नवंबर 2024
छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा राज्य के पारंपरिक देवगुड़ी स्थलों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में किए जा रहे प्रयासों ने राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने इन स्थलों को राज्य की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा बताते हुए उनके संरक्षण और संवर्धन के लिए विशेष कदम उठाने पर जोर दिया है।
देवगुड़ी स्थल छत्तीसगढ़ के जनजातीय समुदायों की धार्मिक आस्था और परंपरा के केंद्र हैं। इन पवित्र स्थलों में डोकरी माता गुड़ी, सेमरिया माता, और माँ दंतेश्वरी जैसे स्थान शामिल हैं, जो न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जैव विविधता के संरक्षण में भी योगदान करते हैं।
छत्तीसगढ़ वन विभाग ने अब तक 1,200 से अधिक देवगुड़ी स्थलों का दस्तावेजीकरण और संरक्षण किया है। इन स्थलों के संरक्षण में पारंपरिक वनस्पति प्रजातियों जैसे साल, सागौन, बांस, और आंवला का रोपण किया गया है। साथ ही, इन स्थलों पर पर्यावरणीय रूप से अनुकूल संरचनाओं और पगडंडियों का निर्माण किया गया है।
वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री व्ही. श्रीनिवास राव ने बताया कि मुख्यमंत्री श्री साय और वन मंत्री श्री केदार कश्यप के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ वन विभाग इन स्थलों को संरक्षित करने के लिए सतत प्रयासरत है। इन स्थलों की जैव विविधता को पुनर्जीवित करने के लिए गैर-विनाशकारी कटाई और पारंपरिक प्रथाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
राज्य जैव विविधता बोर्ड ने इन देवगुड़ी स्थलों को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के लोक जैव विविधता पंजिका में पंजीकृत करने की प्रक्रिया शुरू की है। इन प्रयासों के तहत शोध कार्य भी किए जा रहे हैं, ताकि इन स्थलों की सांस्कृतिक और जैव विविधता की महत्ता को सुरक्षित रखा जा सके।
हालांकि, अतिक्रमण, शहरीकरण, और परंपरागत विश्वासों में कमी जैसी चुनौतियाँ इन स्थलों के संरक्षण के लिए बाधा उत्पन्न कर रही हैं। इसके बावजूद, वन विभाग और स्थानीय जनजातीय समुदाय मिलकर इन स्थलों को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत हैं।
देवगुड़ी स्थलों का यह संरक्षण अभियान न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देता है, बल्कि क्षेत्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।