भारतीय समाज प्राचीनकाल से ज्ञानी…!

Spread the love

भारत में प्राचीन समय से समाज हमेशा ज्ञान की ओर उन्मुख था, लेकिन इस ज्ञान का उद्देश्य कभी भी व्यक्तित्व या लोक से अलग नहीं रहा। यह ज्ञान समाज के हर वर्ग को एक साथ जोड़ने वाला था। हमारी पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत ज्ञान केवल व्यक्तिगत उन्नति का नहीं, बल्कि समुदाय और प्रकृति से जुड़ाव का एक माध्यम था। इस दृष्टि से, भारतीय शिक्षा की विशेषता थी कि यह कभी भी समाज से कटकर नहीं थी।

महात्मा गांधी ने 20 अक्टूबर 1931 को चाथम हाउस, लंदन में अपने प्रवचन में भारतीय शिक्षा व्यवस्था का उदाहरण देते हुए कहा था कि अंग्रेजों ने भारत में आकर हमारे ज्ञान के स्रोतों को नष्ट कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हमारी शिक्षा का यह “रमणीय वृक्ष” नष्ट हो गया। ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय शिक्षा केंद्रों को योजनाबद्ध तरीके से समाप्त किया गया, जिससे वंचित और पिछड़े समुदायों के लोग शिक्षा से वंचित रह गए।

आज भी, हम अपनी पाठ्यपुस्तकों में शहरों को स्वच्छता के प्रतीक के रूप में दिखाते हैं, जबकि गांवों को अस्वच्छता के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है और बच्चों में ग़लत सोच पैदा करता है। यह दर्शाता है कि शिक्षा वस्तु-केन्द्रित नहीं बल्कि समाज-केन्द्रित होनी चाहिए।

भारत में, ज्ञान का स्वरूप उपादान नहीं, बल्कि निमित्त है। हम कर्तव्य परायण संस्कृति में विश्वास करते हैं, न कि केवल अधिकारों के प्रति। भारतीय दृष्टिकोण में, हम अपने कर्मों को धर्म से जोड़ते हैं, जिससे समाज की सेवा और कल्याण संभव होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *