छत्तीसगढ़ शराब घोटाला केस में एक नया मोड़ आया है, जिसमें अब शराब निर्माण कंपनियों को भी आरोपी बनाने की मांग की गई है। यह आवेदन अनवर ढेबर के वकील अमीन खान की ओर से अदालत में प्रस्तुत किया गया। वकील का आरोप है कि, जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने खुद कहा है कि शराब निर्माताओं ने 1200 करोड़ रुपये कमाए, तो फिर ED इन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है?
आवेदन में क्या कहा गया?
वकील ने भाटिया वाइन एंड मर्चेंट प्राइवेट लिमिटेड, छत्तीसगढ़ डिस्टलरीज, और वेलकम डिस्टलरीज जैसी शराब कंपनियों और उनके मालिकों को आरोपी बनाने की मांग की है। इन कंपनियों पर आरोप है कि उन्होंने नकली शराब बनाने से लेकर फर्जी होलोग्राम लगाने जैसे कई अवैध काम किए।
यह आवेदन कोर्ट में मंजूर भी हो गया है, और 20 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई होगी।
1200 करोड़ का हेरफेर
ED की चार्टशीट में इस घोटाले के बारे में बताया गया है कि शराब निर्माता कंपनियों ने 1200 करोड़ रुपये की राशि गड़बड़ी के जरिए कमाई। वकील अमीन खान का सवाल है कि यदि कंपनियां दबाव में काम कर रही थीं, जैसा कि ED ने दावा किया है, तो उन्होंने इतने सालों तक इसकी शिकायत क्यों नहीं की? अगर दबाव था तो अब तक किसी ने क्यों नहीं बताया?
उनका आरोप है कि ED जानबूझकर इन कंपनियों को बचा रही है, जबकि उन्हें भी इस मामले में आरोपी बनाया जाना चाहिए।
20 दिसंबर को होगी सुनवाई
ED के वकील सौरभ पांडेय ने कहा कि वे इस आवेदन पर अपना जवाब दाखिल कर चुके हैं, और अब इस मामले की सुनवाई 20 दिसंबर को PMMLA स्पेशल कोर्ट में होगी।
शराब निर्माता कंपनियों पर अभी तक कोई एक्शन नहीं
चौंकाने वाली बात यह है कि ED और EOW ने अब तक तीनों डिस्टलरी कंपनियों के संचालकों और संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। ना ही किसी की गिरफ्तारी हुई है। इस पर वकील का कहना है कि ये कंपनियां, जिनकी बड़ी भूमिका रही है, अब तक बचती रही हैं।
नकली होलोग्राम और शराब की घेराबंदी
इस घोटाले में नकली शराब बनाने और फर्जी होलोग्राम लगाने का भी खुलासा हुआ था। प्रिज्म होलोग्राफी सिक्योरिटी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड ने 2019 से 2022 के बीच छत्तीसगढ़ की डिस्टलरियों को नकली होलोग्राम सप्लाई किए थे, जिनका इस्तेमाल अवैध शराब की बोतलों पर किया जाता था।
यूपी STF की पूछताछ से खुलासा
यूपी STF ने अनवर ढेबर और एपी त्रिपाठी से पूछताछ के दौरान इस बात का खुलासा किया था कि डिस्टलरी कंपनियां सबसे बड़ी लाभार्थी थीं। इन दोनों ने यह जानकारी दी थी कि इन कंपनियों को प्रिज्म होलोग्राफी से नकली होलोग्राम मिलते थे और अवैध शराब पर उन्हें चिपकाया जाता था।
यह मामला बहुत ही गंभीर मोड़ पर पहुंच चुका है, क्योंकि इसमें न केवल आर्थिक अनियमितताएं हैं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया गया है। अब देखना होगा कि अदालत इस मामले में आगे क्या कदम उठाती है और क्या ED पर दबाव बनता है कि वह शराब कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई करे।