दुर्ग जिले के तीन दिव्यांग बच्चों ने हाल ही में रुड़की में आयोजित एक महत्वपूर्ण संगीत प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त कर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया है। इस प्रतियोगिता में देशभर से हजारों की संख्या में नेत्रहीन बच्चों ने भाग लिया था। यह नेशनल प्रतियोगिता विशेष रूप से उन बच्चों के लिए आयोजित की जाती है, जिनके पास संगीत में गहरी रुचि और प्रतिभा होती है। इस मंच पर वे अपने हुनर को दिखा सकते हैं और अपनी मेहनत के बल पर समाज में नई ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं।
प्रतियोगिता में भाग लेने वाले दुर्ग के तीन बच्चे – आयुष गुप्ता, विवेक यादव और लेमन बोरकर – ने अपनी अद्भुत प्रस्तुति से सभी का दिल जीत लिया। इन बच्चों ने नेत्रहीन होते हुए भी भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत का एक बेहतरीन संयोजन पेश किया। उनकी आवाज़ की गहराई, सुरों की सही पकड़ और गायन शैली ने निर्णायकों को इतना प्रभावित किया कि वे उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सके।
आयुष गुप्ता, जिनकी गायन में विशेष रुचि रही है, ने प्रतियोगिता में अपने प्रदर्शन से सभी को हैरान कर दिया। आयुष ने बताया कि संगीत उनके लिए सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि उनका जीवन है। उनका कहना था कि शास्त्रीय संगीत से अपनी यात्रा शुरू करने के बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपनी आवाज़ को अलग-अलग संगीत विधाओं में निखारा और अब वे इसके जरिए अपनी पहचान बना रहे हैं।
आयुष के परिवार के लिए यह एक गर्व का क्षण था। आयुष की मां ने बताया कि बचपन से ही आयुष को संगीत में गहरी रुचि थी। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका बेटा इतना बड़ा मुकाम हासिल करेगा। हालांकि, आयुष ने हमेशा हमें आश्वस्त किया कि वह अपनी आवाज़ और संगीत के माध्यम से कुछ खास करेगा। अब जब आयुष ने यह उपलब्धि प्राप्त की है, तो न केवल आयुष, बल्कि उसके पूरे परिवार के लिए यह गर्व का पल है।
यह आयोजन उन बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है जो शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। आयुष, विवेक और लेमन ने यह साबित कर दिया कि अगर कोई ठान ले, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है। इस प्रकार की प्रतियोगिताएं दिव्यांग बच्चों को अपनी छिपी हुई प्रतिभाओं को उजागर करने का अवसर देती हैं, जो उन्हें समाज में एक नई पहचान दिलाती हैं।
आयुष, विवेक और लेमन की सफलता यह संदेश देती है कि किसी भी परिस्थिति में, अगर मेहनत और समर्पण हो, तो कोई भी सपना साकार किया जा सकता है। यह भी दर्शाता है कि दिव्यांग बच्चों को सिर्फ शारीरिक सीमाओं के कारण पीछे नहीं छोड़ा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें भी समान अवसर मिलना चाहिए। इस प्रतियोगिता के माध्यम से इन बच्चों ने अपनी क्षमताओं का पूरा प्रदर्शन किया और सभी को यह दिखा दिया कि वे किसी भी मामले में किसी से पीछे नहीं हैं।
इन बच्चों की सफलता न केवल उनके लिए बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ी प्रेरणा है। यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे किसी भी शारीरिक चुनौती के बावजूद लोग अपनी मेहनत और हुनर से बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे बच्चों को सही दिशा में मार्गदर्शन देने और उनके सपनों को पूरा करने में परिवार और समाज का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
कुल मिलाकर, इस संगीत प्रतियोगिता ने दिव्यांग बच्चों को एक ऐसा मंच दिया, जहाँ वे अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित कर सकते थे और साबित कर सकते थे कि उनके पास भी हर वह क्षमता है जो किसी सामान्य बच्चे में होती है। आयुष, विवेक और लेमन की सफलता सभी दिव्यांग बच्चों के लिए एक उज्जवल भविष्य की उम्मीद जगा रही है।