छत्तीसगढ़ में गांजा तस्करी में लिप्त रेलवे पुलिस (GRP) के तीन बर्खास्त आरक्षकों की 1.50 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है। पुलिस की गहन वित्तीय जांच में यह खुलासा हुआ कि इन आरक्षकों ने अवैध रूप से कमाए गए पैसे से महंगे मकान, कार और बाइक खरीदी थीं। ये संपत्तियां उनके और उनके रिश्तेदारों के नाम पर रजिस्टर्ड थीं।
शुक्रवार को बिलासपुर के एसपी रजनेश सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गिरफ्तार आरक्षकों के नाम लक्ष्मण गाइन, संतोष राठौर और मन्नू प्रजापति हैं। चौथा आरोपी सौरभ नागवंशी भी इस गिरोह का हिस्सा था। सभी आरोपी फिलहाल जेल में बंद हैं।
कैसे हुआ मामला उजागर?
23 अक्टूबर को GRP ने योगेश सोंधिया और रोहित द्विवेदी नामक दो लोगों से 20 किलो गांजा बरामद किया था। जब इनसे पूछताछ की गई, तो खुलासा हुआ कि GRP के ये आरक्षक गांजा तस्करी में लिप्त थे। वे ट्रेन में पकड़े गए गांजे को जब्त करने के बजाय अपने साथियों को सौंप देते थे। ये साथी फिर गांजे को देश के अलग-अलग हिस्सों में सप्लाई कर देते थे।
पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत केस दर्ज कर मामला कोर्ट में पेश किया। साथ ही उनकी संपत्ति की जांच भी शुरू की गई।
तस्करी के जरिए खरीदी गई संपत्ति
जांच में पाया गया कि आरोपियों ने गांजा बेचकर लाखों-करोड़ों रुपए कमाए। इन पैसों से उन्होंने कई महंगी चीजें खरीदीं:
1. महंगी गाड़ियां:
– 20 लाख रुपए की *टाटा सफारी* कार लक्ष्मण गाइन ने अपने साले के नाम पर खरीदी थी।
– 2.80 लाख रुपए की *हार्ले डेविडसन बाइक* भी साले के नाम पर खरीदी गई।
– 5 लाख रुपए की *हुंडई वेन्यू कार* का इस्तेमाल आरोपी खुद कर रहा था।
2. मकान और जमीन:
– कोरबा में आरोपियों ने करोड़ों की जमीन और मकान खरीदे।
– कुछ संपत्तियां रिश्तेदारों के नाम पर रजिस्टर्ड हैं।
तस्करी का नेटवर्क और रूट
आरोपी नियमित रूप से ट्रेन के जरिए गांजा तस्करी करते थे। उनका नेटवर्क छत्तीसगढ़ के दुर्ग, गोंदिया, रायपुर, चांपा, सक्ती और रायगढ़ जैसे जिलों के अलावा अन्य राज्यों तक फैला था।
वे ट्रेन में पकड़े गए गांजे को जब्त करने के बजाय अपने सहयोगियों को दे देते थे, जो इसे खरीददारों तक पहुंचाते थे। खरीदार ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के जरिए पैसे भेजते थे।
यूपीआई और बैंक खातों से हुआ बड़ा खुलासा
पुलिस की फाइनेंशियल जांच में पता चला कि आरोपियों ने अपने नाम और रिश्तेदारों के नाम से कई बैंक और यूपीआई खाते बनाए थे। इन खातों के जरिए लाखों रुपए का लेनदेन हुआ।
– मन्नू प्रजापति ने अपने साले के खाते में करोड़ों रुपए ट्रांसफर किए।
– बाकी आरोपियों के खातों में भी भारी ट्रांजेक्शन मिले हैं।
– इन अकाउंट्स का इस्तेमाल गांजा खरीदने और बेचने के लिए किया जाता था।
GRP एंटी क्राइम यूनिट पर सवाल
जीआरपी का मुख्य काम रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। लेकिन इस मामले ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि एंटी क्राइम यूनिट क्यों बनाई गई और इसकी जिम्मेदारी इन चार आरक्षकों को क्यों दी गई?
बड़े सवाल:
1. इस टीम के गठन की अनुमति किसने दी?
2. चारों आरक्षकों को इस टीम में काम करने की छूट किसके इशारे पर दी गई?
3. इस गिरोह का मास्टरमाइंड कौन है?
एसपी रजनेश सिंह ने इन सवालों का जवाब देने से इनकार करते हुए कहा कि पुलिस केवल आपराधिक गतिविधियों की जांच कर रही है।
लापरवाही और जिम्मेदारी
इस मामले में यह भी सवाल उठता है कि जिन खातों में पैसे जमा किए गए, उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई। पुलिस को यह भी पता लगाना बाकी है कि गांजा तस्करी से जुड़े लोग किन-किन राज्यों में फैले हैं और उनका नेटवर्क कितना बड़ा है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
इस मामले ने स्थानीय लोगों को चौंका दिया है। रेलवे स्टेशन और ट्रेन में तैनात GRP के कर्मचारियों पर यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है, लेकिन जब सुरक्षा देने वाले ही अपराध में लिप्त हों, तो यह गंभीर चिंता का विषय है।
पुलिस की अगली कार्रवाई
पुलिस ने जब्त की गई संपत्ति और बैंक खातों की जांच रिपोर्ट सफेमा (SAFEMA) कोर्ट, मुंबई को भेज दी है। सफेमा कोर्ट फैसला करेगा कि इन संपत्तियों का क्या किया जाएगा।
पुलिस ने अब तक इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार किया है और अन्य संदिग्धों की तलाश जारी है।
यह मामला दिखाता है कि किस तरह कुछ अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर अवैध कामों में लिप्त हो जाते हैं। गांजा तस्करी जैसे अपराध केवल कानून-व्यवस्था को नहीं, बल्कि समाज को भी कमजोर करते हैं।
इस घटना से यह भी साफ होता है कि प्रशासनिक स्तर पर पारदर्शिता और कड़ी निगरानी की जरूरत है। बिना जवाबदेही के इस तरह के अपराधों को रोकना मुश्किल है।
समाज और पुलिस को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे अपराधी, चाहे वे किसी भी पद पर हों, अपने अपराधों के लिए सजा पाएं।