नामांकन की आखिरी तारीख से पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित करने में हुई देरी ने रायपुर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हताश कर दिया। विरोध और हंगामे के डर से कांग्रेस ने सूची को गोपनीय रखा, जबकि कई प्रत्याशियों को फोन पर जानकारी दी गई। राजीव भवन में कार्यकर्ताओं ने आधी रात तक टिकट का इंतजार किया, लेकिन पूरी सूची सुबह तक जारी नहीं हो पाई।
अब जानिए कैसा था कांग्रेस भवन में रात का माहौल..
समय रात के 1 बजकर 40 मिनट। जगह- छत्तीसगढ़ कांग्रेस मुख्यालय, राजीव भवन। आधी रात का वक्त, लेकिन यहां उम्मीदें अब भी जिंदा थीं। राजीव भवन के बाहर खड़े कुछ कार्यकर्ता अपने मोबाइल स्क्रीन पर बार-बार आंखें गड़ाए हुए थे। इंतजार था कांग्रेस की पार्षद प्रत्याशियों की लिस्ट का।
कुछ कार्यकर्ता, जो सुबह से उम्मीदों के साथ यहां डटे थे, थक-हारकर घर लौट चुके थे। लेकिन कुछ की आंखों में अभी भी आस थी कि नामांकन की आखिरी तारीख को पार्टी कोई फैसला लेगी। जैसे-जैसे रात गहराती गई, इन कार्यकर्ताओं की उम्मीदें भी धुंधली पड़ने लगीं।
सुबह 3 बजे मायूसी का आलम
आखिरकार सुबह 3 बजे के करीब कार्यकर्ताओं ने राजीव भवन से मायूस होकर लौटने का फैसला किया। कुछ ही समय बाद, कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों की लिस्ट मीडिया ग्रुप्स में वायरल होनी शुरू हुई। हालांकि, यह लिस्ट भी अधूरी थी। रायपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से केवल 66 वार्डों के प्रत्याशियों के नाम ही इसमें थे।
इस लिस्ट को आधिकारिक रूप से कांग्रेस ने सुबह 3:30 बजे तक भी जारी नहीं किया था। सुबह 5 बजकर 34 मिनट पर रायपुर नगर निगम के पार्षद प्रत्याशियों की लिस्ट आधिकारिक मीडिया ग्रुप में जारी की गई। और ये वही लिस्ट थी मीडिया ग्रुप्स में वायरल हो रही थी यानि 4 वार्डों में किसी भी प्रत्याशी का नाम नहीं था।
महापौर और अध्यक्षों की लिस्ट भी देर रात जारी हुई थी
ऐसा पहली बार नहीं था। इसके एक दिन पहले ही रविवार को नगर निगम महापौर, नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्षों की लिस्ट जारी करने के लिए कार्यकर्ताओं को पूरी रात इंतजार करना पड़ा था। यह लिस्ट सुबह 4:30 बजे कांग्रेस के आधिकारिक मीडिया ग्रुप में साझा की गई।
विरोध प्रदर्शन का डर
पार्टी की प्रत्याशी सूची जारी करने में हो रही इस देरी की एक बड़ी वजह लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शन थे। राजीव भवन में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की मौजूदगी में जमकर विरोध किया था। कुछ ने तो टिकट बेचने तक के आरोप लगा दिए।
कार्यकर्ताओं ने कह दिया कि अगर पैसा ही मापदंड है, तो बताइए कितना पैसा चाहिए हम देंगे। ये कार्यकर्ता अपने नेताओं को टिकट न दिए जाने की बात पर नाराज थे। ये वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
इसी कारण, पार्टी ने ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों की लिस्ट आधी रात के बाद या सुबह जारी करने का फैसला किया, ताकि विवाद टाला जा सके।
पहले से तय प्रत्याशियों को फोन पर मिली जानकारी के अनुसार, जिन प्रत्याशियों के नाम पहले से तय थे, उन्हें पार्टी ने फोन पर पहले ही सूचित कर दिया था। इससे वे समय रहते अपना नामांकन फॉर्म खरीद और जमा कर सकें। यही वजह थी कि 27 जनवरी को, भले ही लिस्ट जारी न हुई हो, लेकिन कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में नामांकन फॉर्म खरीदने की होड़ मची रही।
नामांकन फॉर्म जमा करने की जल्दबाजी
निवर्तमान महापौर एजाज ढेबर ने तो प्रत्याशियों की सूची जारी होने से पहले ही अपना नामांकन फॉर्म जमा कर दिया।एजाज ढेबर ने गाजे-बाजे के साथ बड़ी संख्या में सैकड़ों कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ जुलूस निकाला और शक्ति प्रदर्शन करते हुए ऑटो पर सवार होकर नामांकन फार्म जमा करने पहुंचे थे। उन्होंने बाकायदा रैली निकालकर यह काम किया। इस बार वे पार्षद पद के लिए खड़े हुए हैं।
रायपुर के 4 वार्डों में फंसा पेंच
रायपुर के 4 वार्डों में अब भी पेंच फंसा हुआ है। अंतिम समय तक प्रत्याशियों के नामों का ऐलान नहीं किया गया। जबकि 28 जनवरी नामांकन फॉर्म जमा करने की आखरी तारीख है। जानकारी के मुताबिक इन वार्डों में अब तक सहमति नहीं बन पाई है।
दरअसल मौलाना अब्दुल रऊफ वार्ड से अर्जुमन ढेबर को टिकट देने की चर्चा थी लेकिन उनके पति मेयर एजाज ढेबर भी चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में एक ही परिवार से दो लोगों को टिकट देने को लेकर फैसला नहीं हो पाया। बाकी जगहों में भी नामों को लेकर अंतिम समय तक सहमति नहीं बन पाई।
-वार्ड नंबर 45 मौलाना अब्दुल रऊफ वार्ड – अर्जुमन ढेबर, अफसाना बेगम, शिरीन शारिक
– वार्ड नंबर 47 मदर टेरेसा वार्ड – पैनल में नाम – तारामती ओझा, नंदलाल धीवर, ताराचंद साहू – वार्ड नंबर 52 डॉ राजेंद्र प्रसाद वार्ड – पैनल में नाम – (यहां सिंगल नाम राजकुमार साहू का भेजा गया था) – वार्ड नंबर 56 लेफ्टिनेंट अरविंद दीक्षित वार्ड – पैनल में नाम – आकाशदीप शर्मा, सुरजीत साहू
आधी रात की राजनीति
कांग्रेस की यह रणनीति विरोध को टालने और समय सीमा के भीतर प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने की थी। लेकिन विरोध, देरी और पारदर्शिता को लेकर सवाल अब भी बने हुए हैं। टिकट वितरण के इस ड्रामे ने एक बार फिर दिखाया कि राजनीति में फैसले कभी-कभी रात के अंधेरे में ही लिए जाते हैं।