कोयला और शराब घोटाले के बाद हाल ही में एक और घोटाले का खुलासा हुआ है, वह है चावल घोटाला । सदन में मंत्री के जवाब के मुताबिक यह घोटाला करीब 216 करोड़ का है। गरीबों का चावल माफियाओं को पहुंचाया जाता रहा। और भी तमाम हथकंडों से सरकारी चावल पर डंडी मारी जाती रही। नागरिक आपूर्ति निगम यानी नान के चावल की सप्लाई से जुड़े मिलर्स के ठिकानों पर छापे के बाद कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। सबसे बड़ा खुलासा तो यही है कि इन्कम टैक्स की टीम को राजधानी के रामसागरपारा में एक एजेंट के पास 90 लाख रुपए का डीओ यानी डिलिवरी ऑर्डर मिला है। इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट की जांच जारी है। अब चलते हैं फ्लैशबैक में नान में ईओडब्ल्यू और एसीबी के छापे पड़े थे। इन छापों के बाद यह पता चला कि नान में गाड़ी लगाने से लेकर सामान लोड करने, डिस्पैच करने सबका कमीशन फिक्स था। कमीशन देने पर ही गाड़ियां थीं और माल लोड होता था। महीने में कलेक्शन होता था। इसके बाद सर्व संबंधितों को हिस्सा पहुंचाया जाता था। नान में भ्रष्टाचार के कलेक्शन का पूरी ईमानदारी से हिसाब रखा जाता था। इसके कुछ पन्ने जो बाहर आए थे, उसमें यह पता चला था कि आईएएस कॉलोनी के कुछ बंगलों में पिज्जा पहुंचाने से लेकर अधिकारियों के मोबाइल भी रिचार्ज किए जाते थे। और भी कई किस्से हैं, जिन्हें लेकर आज भी विवाद की स्थिति बनी हुई है। इन कथित किस्सों के बजाय हम गरीबों के चावल में होने वाली हेराफेरी पर फोकस करें तो पता चलता है कि नान और खाद्य विभाग के अधिकारियों तक गरीबों के राशन का हिस्सा पहुंच रहा है। पिछली सरकार में जब ईडी ने कस्टम मिलिंग की जांच शुरू की, तब उसमें भी कई तरह की गड़बड़ियां पकड़ीं। इसकी जांच अब भी जारी है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि गरीबों को मुफ्त या रियायती दर पर राशन देने के पीछे शासन-प्रशासन का जनकल्याणकारी उद्देश्य है या फिर कोई इस योजना के बहाने स्वार्थ सिद्ध कर रहा है। यदि सरकारें अच्छे उद्देश्य से राशन दे रही हैं तो कौन लोग हैं, जो इसमें गड़बड़ी कर रहे हैं। 6 साल पहले बड़ी गड़बड़ी सामने आ चुकी थी, फिर इस पर रोक क्यों नहीं लगाई गई? गरीबों को चावल ही नहीं, बल्कि नमक और चना बांटने जैसी योजनाओं के पीछे भले ही अच्छी सोच जुड़ी है, लेकिन कुछ नेता, अफसर, मिलर और दुकानदार इसमें घुन लगाने पर आमादा हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का रवैया अपनाया है तो यह जमीन पर तेजी से दिखाई दे, तब जाकर गरीबों का पेट भरेगा, अन्यथा नेता, अफसर और मिलरों की तोंद यूं ही बढ़ती रहेगी। ऐसे अफसरों को भी पहचानने की जरूरत है, जो ‘ऊंची बोली’ लगाकर अहम पदों पर बैठे हुए हैं या येन-केन-प्रकारण कार्रवाई से बचते चले आ रहे हैं।
जमीलुद्दीन आली ने लिखा है-
दरिया दरिया घूमे मांझी पेट की आग बुझाने,
पेट की आग में जलने वाला किस-किस को पहचाने।
भाषणों से प्रभावित होकर लोग वोट देते हैं, लेकिन यह नहीं पहचान पाते कि उनका पेट भरने के पीछे मंशा अपना घर भरने की तो नहीं है।