‘डेढ़ साल पहले काम के लिए लीबिया गया था। एजेंट ने कहा था 500 से 700 डॉलर महीने मिलेंगे। मुझे सीमेंट कंपनी में ड्राइवर का काम मिला। 14 घंटे काम करता था। सैलरी कभी 200 डॉलर मिलती, कभी 250 डॉलर। कभी-कभी तो 100 डॉलर ही मिलते थे। मेरे साथ कुछ और लोग थे। हम पूरी सैलरी मांगते, तो धमकी मिलती। बोला जाता था, ‘ये दुबई नहीं, लीबिया है। मिट्टी में मिला देंगे।’
सत्यम यादव UP के कुशीनगर के रहने वाले हैं। सितंबर, 2023 में वे 5 लोगों के साथ दुबई के रास्ते लीबिया पहुंचे थे। करीब 17 महीने बाद 5 फरवरी को विदेश मंत्रालय की मदद से भारत लौट आए। उनके साथ 15 लोग और थे
ये सभी 5 महीने से वतन वापसी की कोशिश कर रहे थे। इन लोगों ने बताया कि कैसे उन्हें अच्छी नौकरी के नाम पर फंसाया गया। टूरिस्ट वीजा पर लीबिया ले जाकर पासपोर्ट छीन लिया और मारपीट की गई। ये लोग जिस वक्त लीबिया गए थे, तब भारत सरकार ने गृह युद्ध की वजह से लीबिया जाने पर रोक लगा रखी थी।
आगे की कहानी इन्हीं लोगों से ही सुनिए… लीबिया में काम कर रहे मजदूरों के हालात समझने के लिए हमने भारत लौटे लोगों से बात की। ये सभी बेनगाजी में ‘लीबियन सीमेंट कंपनी’ (LCC) में काम करते थे। LCC लीबिया की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनियों में एक है। 1968 में बनी इस कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, इसके तीन प्लांट में हर साल 29 लाख टन सीमेंट का प्रोडक्शन होता है।
मजदूरों ने अपनी कहानी सुनाते हुए दो नाम बार-बार लिए। रामनाथ चौहान और अबू बकर। रामनाथ चौहान उत्तर प्रदेश के देवरिया के रहने वाले हैं और 13-14 साल से लीबिया में काम कर रहे हैं। मजदूर बताते हैं कि वे रामनाथ के जरिए ही लीबिया पहुंचे थे।
वहीं, अबू बकर लीबियन सीमेंट कंपनी में कॉन्ट्रैक्टर है। लीबिया का रहने वाला है, लेकिन दुबई से काम करता है। अबू बकर दुबई से ही लोगों को लीबिया भेजता है।