शादी के सात महीने बाद पत्नी ससुराल छोड़कर मायके में रहने लगी। पति और उसके परिजनों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज करा दिया। हालांकि कोर्ट ने सभी को इस मामले में बरी कर दिया था। इधर, पति ने इन सबके बावजूद दोबारा साथ रहने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया, लेकिन यहां पत्नी ने शर्त रखी कि वह अपने माता- पिता को छोड़कर उसके साथ रहेगा तो वह आने के लिए तैयार है, इसके बाद पति ने आवेदन वापस ले लिया।
इसके बाद फैमिली कोर्ट में तलाक की मांग करते हुए याचिका लगाई, लेकिन कोर्ट ने इसे नामंजूर कर दिया। इस पर हाई कोर्ट में अपील की। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने तलाक मंजूर किया है। दो माह के भीतर पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में एकमुश्त 5 लाख रुपए देने के आदेश दिए गए हैं।
बालोद में रहने वाले शख्स की बालोद में ही रहने वाली महिला के साथ 27 अप्रैल 2007 को हिंदू रीति-रिवाज से हुई थी। शादी के 7 महीने बाद पत्नी बगैर किसी कारण के मायके में जाकर रहने लगी। पति और उसके परिजनों के खिलाफ थाने में आईपीसी की धारा 498ए के तहत केस दर्ज कराया।
हालांकि सभी को कोर्ट ने इस मामले में बरी कर दिया था। इधर, पत्नी ने फैमिली काेर्ट में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए आवेदन दिया था। उसने आरोप लगाया कि शादी के कुछ समय बाद पति और उसके परिवार ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। गर्भावस्था के दौरान भी उसे प्रताड़ित किया गया। 11 जून 2008 को बेटी के जन्म के बाद पति ने उसकी देखभाल नहीं की।
उसने कोर्ट में कहा कि वह पति के साथ रहना चाहती है। वहीं, पति ने पत्नी के आरोपों को खारिज किया। उसने कहा कि पत्नी खुद उसे छोड़कर मायके चली गई। उसने पति और उसके परिवार पर दहेज प्रताड़ना का केस किया, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। पत्नी की अपील भी सत्र न्यायालय ने खारिज कर दी। उसने घरेलू हिंसा का मामला भी लगाया, जिसे भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।
पति माता-पिता को छोड़े तो साथ रहने तैयार पति ने पत्नी के साथ रहने के लिए कोर्ट में आवेदन दिया था, लेकिन पत्नी ने यहां शर्त रखी कि वह अपने माता-पिता को छोड़ दे, तभी साथ रहेगी। इसके बाद पति ने आवेदन वापस ले लिया और तलाक की अर्जी दी। लेकिन फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। पत्नी ने भरण-पोषण के लिए भी आवेदन दिया, जिसे कोर्ट ने नामंजूर कर दिया। इसके खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
पति ने कहा- घर जमाई बनने किया मजबूर पति ने हाई काेर्ट में की गई अपील में बताया कि पत्नी 2008 से अलग रह रही है। उसने पुलिस में कई शिकायतें कीं। पति पर माता-पिता को छोड़ने का दबाव बनाया। उसे घर जमाई बनने के लिए मजबूर किया। उसके चरित्र पर भी शक किया। हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी ने कभी वैवाहिक जीवन बचाने की कोशिश नहीं की।
उसने बिना कारण पति का घर छोड़ दिया था। केस दर्ज कराया। यह क्रूरता है। इस आधार पर हाई कोर्ट ने 28 अप्रैल 2007 को हुए विवाह को शून्य घोषित किया है। साथ ही, पति को आदेश दिया कि वह पत्नी को दो महीने के भीतर 5 लाख रुपये गुजारा भत्ता दे।