रायगढ़ : रायगढ़ मेडिकल कॉलेज सहित प्रदेश के दो अन्य मेडिकल कॉलेज को एनएमसी ने फैकल्टी की कमी के कारण शोकॉज नोटिस भेजा है। हालांकि मेडिकल कॉलेज में आधी-अधूरी के साथ अपने बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ है। दो साल बाद भी अधिकांश सुविधा नहीं है।
मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन सुविधा पर जोर नहीं दिया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज के अफसर ने बताया कि बायोमैट्रिक्स में टेक्निकल परेशानी होने के कारण प्रोफेसर और डॉक्टर सहित फैकल्टी की फिंगर नहीं अपलोड हो रहा था। इस वजह एनएमसी ने उन्हें शोकॉज नोटिस भेजा है। इसकी जानकारी एनएमसी को भेज दी है और बायोमैट्रिक्स का सुधार कार्य कराया जा रहा है। इधर, हॉस्पिटल में हर महीने 15 हजार मरीज ओपीडी में जांच कराने पहुंच रहे हैं। वहीं 5 हजार मरीज भर्ती भी किए जा रहे हैं, लेकिन यहां भर्ती मरीजों को सुविधा नहीं मिलने के कारण परेशानी उठानी पड़ रही है। वैसे तो मेडिकल कॉलेज में 13 विभागों के एक्सपर्ट डॉक्टर हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के लिए मरीजों को भटकना पड़ता है। मेडिकल कॉलेज में कितने प्रोफेसर हैं, इसकी भी जानकारी कॉलेज की अधिकारियों को नहीं है।
दोपहर के बाद नहीं होता पोस्टमार्टम दरअसल, मेडिकल कॉलेज में अपनी खुद की मरच्यूरी नहीं है। फांसी, कीटनाशक और एक्सीडेंट जैसे मामलों में मौत होने में परिजन को परेशानी उठानी पड़ती है। दोपहर बाद जिला अस्पताल में पीएम नहीं होता। मेडिकल कॉलेज से शव जिला अस्पताल भेज दिया जाता है। वहां से एक दिन इंतजार के बाद शव सौंपा जाता है। लैलूंगा, घरघोड़ा, सारंगढ़ व बाहरी प्रांत से आए लोगों को ज्यादा दिक्कत होती है।
ब्लड बैंक के लिए मिला मेडिकल कॉलेज को लाइसेंस दरअसल, मेडिकल कॉलेज में ब्लड की ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है। मरीज के परिजन को मेडिकल कॉलेज से शहर की तरफ दौड़ लगानी पड़ती थी। परेशानी को देखते हुए मेडिकल कॉलेज के अफसरों के साथ शहरवासी भी ब्लड बैंक की मांग कर रहे थे। अब शासन से ब्लड बैंक के लिए अनुमति मिल गई है। जल्द ही लोगों को मेडिकल कॉलेज में ब्लड बैंक की सुविधा मिलेगी।
नहीं खुली जेनरिक दवा दुकान मेडिकल कॉलेज द्वारा शासन को मेडिकल कॉलेज में मेडिकल कॉलेज खोलने पत्र लिया था। शासन से मेडिकल दुकान की जगह जेनरिक दवा दुकान धनवंतरी खोलने कहा। यह 6 महीने बाद भी नहीं खुल सकी है। निशुल्क दवा वितरण में जो दवा नहीं मिलती है, उसे बाहर से खरीदनी पड़ती है। यहां इलाज कराने वाले मरीज मजदूर और ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं। ऐसे में महंगी दवाइयों की जगह उन्हें जेनरिक दवा मिलता तो बेहतर होता।