पिछले दिनों 3 बांग्लादेशी भाई गिरफ्तार हुए। तीनों ने ही फर्जी सर्टिफिकेट बनवाए थे और बगदाद भागने की फिराक में थे। रायपुर में ये गिरफ्तार हुए। ये फेक डॉक्यूमेंट सिर्फ एक मार्कशीट के आधार पर बनाए गए। ये मार्कशीट भी फर्जी थी और इसे मात्र 5000 रुपए देकर बनवाया गया था। एटीएस और रायपुर पुलिस की टीम ने नागपुर और कोलकाता में छापेमारी की है। कुछ संदेहियों के खिलाफ ATS की जांच अभी भी जारी है।
सवाल ये है कि, बांग्लादेशी नागरिक रायपुर कहां से पहुंचे? रायपुर में क्या काम किया? आरोपियों के दस्तावेज बनाने में किसने मदद की? ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानेंगे इस रिपोर्ट में…
सवाल- छत्तीसगढ़ में कहां से पहुंचे, अभी कहां और कब से रह रहे थे?
मुंबई में गिरफ्तारी के बाद मुंबई एटीएस ने छत्तीसगढ़ एटीएस को सूचना दी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ से टीम मुंबई पहुंची। बांग्लादेश के रहने वाले गिरफ्तार आरोपियों मोहम्मद इस्माइल (27), शेख अकबर (23) और शेख साजन (22) को छत्तीसगढ़ पुलिस ने न्यायिक रिमांड ली। पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया।
इन्होंने 6 पेज का बयान दिया है। इसमें उन्होंने बताया है कि ये 2012 से छत्तीसगढ़ में रह रहे थे। आरोपियों ने अपने बयान में रायपुर के टिकरापारा, राजातालाब इलाकों में रहने की बात बताई।
आरोपियों ने शेख अली उर्फ अली चाचा की मदद ली और नागपुर से रायपुर पहुंचे। इसी अली चाचा ने टिकरापारा इलाके में 3 साल तक रहने व्यवस्था की।
टिकरापारा के बाद राजातालाब में मकान लेने की बात भी आरोपियों ने लिखित रूप से दी है। पुलिस आरोपियों के मकान मालिकों से भी पूछताछ कर रही है। हालांकि, मकान मालिक और आरोपियों के बयान में अलग-अलग जानकारी पुलिस को मिली है। मकान मालिक का नाम पुलिस ने इसलिए छिपाया है कि संदेह के आधार पर नाम लेने पर उनके घर हमला हो सकता है।
सवाल- कैसे बनाया फर्जी आधार कार्ड और दूसरे डॉक्यूमेंट्स?
एटीएस की जांच में ये बात सामने आई है, कि आरोपियों ने अपना पासपोर्ट, आधार कार्ड, पेन कॉर्ड समेत अन्य दस्तावेज बनाने के लिए फर्जी मार्कशीट का सहारा लिया। ये मार्कशीट बांग्लादेशी नागरिकों ने मोहम्मद आरिफ की मदद से बनवाई थी। इस मार्कशीट की मदद से ही बांग्लादेशी नागरिकों ने अपने बाकी दस्तावेज तैयार करवाए। मोहम्मद आरिफ का सत्कार कंप्यूटर सेंटर है।
इन लोगों ने अपना आधार कार्ड रायपुर के पते पर 2012 के हिसाब से बनवाया। इस आधार कार्ड को बनाने के लिए फर्जी मार्कशीट का ही सहारा लिया।
जब एटीएस को मार्कशीट पर संदेह हुआ, तो टीम उस स्कूल गई, जहां का मार्कशीट में नाम दर्ज था। वहां पता चला कि ये आरोपी वहां कभी नहीं रहे। फिर एटीएस की टीम जिला शिक्षा अधिकारी ऑफिस पहुंची और वहां से मार्कशीट की तस्दीक की। यहां पता चला कि मार्कशीट फर्जी है। सवाल- कैसे और क्यों बांग्लादेश से आए नागरिक, भाग क्यों रहे थे?
पुलिस को इन आरोपियों ने बताया है कि ज्यादातर बांग्लादेशी आमतौर पर बंगाल के मालदा, 24 परगना, मुर्शिदाबाद, दिनाजपुर और चपई नवाबगंज जैसे क्षेत्रों से भारत में दाखिल होते हैं। भारत आने के बाद सड़क, ट्रेन के रास्ते अलग–अलग राज्यों में चले जाते हैं।
हाल ही में रायपुर में पुलिस ने 2000 से ज्यादा लोगों का वेरिफिकेशन किया था। इन लोगों को उठाकर पुलिस लाइन लाया गया था। आशंका है कि, इसी के बाद ये तीनों आरोपी फरार होने की कोशिश कर रहे थे।
सवाल- और कौन-कौन जांच के दायरे में है, किस दिशा में जांच हो रही?
बांग्लादेशी नागरिकों ने अपना पासपोर्ट फर्जी दस्तावेजों की मदद से पूरी प्रक्रिया से बनवाया है। फर्जी सटिर्फिकेट होने के बाद भी उनका पासपोर्ट कैसे अप्रूव हो गया, इस दिशा में भी एटीएस जांच कर रही है।
सवाल- आरोपियों का मददगार कौन है उस पर क्या कार्रवाई हो रही?
तीनों बांग्लादेशी भाइयों ने पूछताछ में बताया है कि, शेख अली उन्हें नागपुर से रायपुर लेकर आया था। हालांकि शेख अली कहां रहता है, क्या करता है इसका पता उसकी गिरफ्तारी के बाद ही चल पाएगा। आरोपी भारत छोड़कर भाग ना जाए इसलिए रायपुर पुलिस ने केंद्रीय विदेश मंत्रालय काे पत्र लिखकर लुक आउट सर्कुलर भी जारी करवाया है। अलग–अलग राज्यों की एजेंसी से एटीएस और रायपुर पुलिस के अधिकारी संपर्क में है।
एटीएस की जांच में एक खुलासा और हुआ है कि तीनों ने बगदाद जाने के लिए ढाई लाख रुपए शेख अली को दिए हैं। शेख अली ने उनके दस्तावेज फरवरी 2025 में दिए। दस्तावेज मिलने के बाद ये तीनों रायपुर से मुंबई के लिए 10 फरवरी को रवाना हुए, लेकिन मुंबई पुलिस के हत्थे चढ़ गए।
सवाल- आगे क्या कार्रवाई हो रही है?
गृह विभाग को प्रदेश में 1500 बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के होने की जानकारी मिली है। प्रदेश में बिना किसी पहचान पत्र के रहने वालों की धरपकड़ के लिए गृह विभाग जल्द ही एसओपी जारी करेगा। ये दुर्ग–भिलाई, मोहल मानपुर, रायपुर, कवर्धा, रायगढ़, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, कोरिया और सरगुजा में अपने परिचितों और समाज के लोगों के साथ रह रहे हैं।