टीन के चद्दरों से बना क्लासरूम… सोने के लिए मचान और चटाई पर खाना… ये है अबूझमाड़ के जंगल में चल रहा भूमकाल आवासीय स्कूल। इंफ्रास्ट्रक्चर चाहे बहुत बेहतर न हो, लेकिन इस स्कूल की वजह से छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के रेकावाया में नई पीढ़ी शिक्षित हो रही है। इस स्कूल को सरकार नहीं, 12 गांवों के लोग आपस में चंदा करके चलाते हैं। यहां पढ़ रहे 115 बच्चों के रहने, खाने-पीने की सारी व्यवस्थाएं गांव वाले ही करते हैं। शिक्षक भी गांव के ही पढ़े-लिखे युवा हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों को कोई सर्टिफिकेट नहीं मिलता, लेकिन उन्हें पांचवीं तक की पढ़ाई कराई जाती है। इसके बाद आगे की पढ़ाई वे जंगल से बाहर पोटाकेबिन से करते हैं।
गांव में रहने वाले लालू ने भी इसी स्कूल से पढ़ाई की है। वे बताते हैं- यहां पांचवीं तक की पढ़ाई करने के बाद मुझे पोटाकेबिन भेजा गया। वहां चौथी क्लास में एडमिशन कराया जाता है। वहां सर्टिफिकेट भी मिलता है। यहीं से मैंने दसवीं की।