इंद्रावती नदी सूखने से बस्तर में हाहाकार, ओडिशा में लहलहा रही हैं फसलें
बस्तर की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी गंभीर जल संकट से जूझ रही है। हालत इतनी खराब है कि जहां कभी नदी का पानी बहता था, अब वहां बच्चे और युवा क्रिकेट और वॉलीबॉल खेल रहे हैं।
✅ इंद्रावती नदी ओडिशा से निकलकर छत्तीसगढ़ के बस्तर के लोगों के लिए जल का मुख्य स्रोत है।
✅ लेकिन ओडिशा सरकार नदी के अधिकतर पानी का उपयोग कर रही है, जिससे बस्तर में जल संकट गहरा गया है।
✅ इससे गर्मी के मौसम में खेत सूख गए हैं और पीने के पानी तक की भारी किल्लत हो गई है।
✅ स्थानीय किसान और ग्रामीण हैंडपंप और तालाबों के सहारे किसी तरह गुजारा कर रहे हैं, लेकिन जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है।
बस्तर के किसानों और ग्रामीणों को इस समस्या से राहत कब मिलेगी, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
ओडिशा में लहलहाती फसलें, बस्तर में सूखे की मार
हरिभूमि समाचार पत्र ने बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर ओडिशा सीमा के पास चांदली गांव का दौरा किया।
✅ यहां देखा गया कि ओडिशा क्षेत्र में नदी के दोनों किनारों पर मक्का, गन्ना और सब्जियों की फसलें लहलहा रही हैं।
✅ वहीं, छत्तीसगढ़ के नगरनार और अन्य गांवों के किसान नदी में जलस्तर गिरने से बर्बाद हुई फसलों को देखकर चिंतित हैं।
✅ इंद्रावती बचाव संघर्ष समिति के अध्यक्ष लखेश्वर कश्यप ने बताया कि सबसे ज्यादा प्रभावित गांवों में चोकर, मरलेंगा, नारायणपाल, आड़ावाल, भोंड, लामकेर, नदीसागर, बोड़नपाल, कोंडालूर, छिंदबहार, तोतर, काठसरगीपाल, मरकापाल, टिकराधनोरा, घाटधनोरा और तारागांव शामिल हैं।
✅ इन गांवों में 80% फसल जल चुकी है और लोगों के लिए पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है।
✅ ग्रामीण किसी तरह हैंडपंप और तालाब (डबरी) के पानी से अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है।
इस गंभीर स्थिति के बावजूद सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
पुराने जल समझौते से छत्तीसगढ़ को नुकसान
✅ 1972 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी और ओडिशा की मुख्यमंत्री नंदिनी सतपथी के बीच एक समझौता हुआ था।
✅ इस समझौते के तहत गैर-मानसून सीजन में इंद्रावती नदी के पानी का 50-50% बंटवारा होना था।
✅ लेकिन ओडिशा सरकार ने इस समझौते का पालन नहीं किया और अपने क्षेत्र में कई बड़े डैम बनाकर नदी के पानी का अधिकतर उपयोग कर लिया।
✅ आज इंद्रावती नदी की हालत इतनी खराब हो गई है कि यह जोरा नाला से भी बदतर हो चुकी है।
ओडिशा की ओर पानी से भरे खेत देखे जा सकते हैं, जबकि बस्तर में किसान और ग्रामीण पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं।
तीनों जगह भाजपा की सरकार, उम्मीदों को मिली ताकत
✅ ऐसा पहली बार हुआ है कि छत्तीसगढ़, ओडिशा और केंद्र – तीनों जगह भाजपा की सरकार है।
✅ इससे उम्मीद जगी है कि इंद्रावती जल संकट का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है।
✅ बस्तर किसान संघर्ष समिति को उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ सरकार और भाजपा के स्थानीय नेता इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाएंगे।
✅ बड़े चकवा ग्राम पंचायत के उपसरपंच पूरन सिंह कश्यप ने कहा कि बस्तर के तीन बड़े नेता – सांसद महेश कश्यप, जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक किरण देव – इस मुद्दे से भलीभांति परिचित हैं।
✅ अब जरूरत इस बात की है कि ये नेता भुवनेश्वर और दिल्ली में जाकर इस मामले पर गंभीरता से चर्चा करें और कोई ठोस समाधान निकालें।
अगर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो बस्तर का जल संकट और गहरा सकता है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बोले – पूरे बस्तर की समस्या है, जल्द समाधान होगा
✅ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं विधायक किरण देव ने कहा कि इंद्रावती नदी के सूखने से नदी किनारे बसे गांवों के किसान और ग्रामीण बेहद चिंतित हैं।
✅ उन्होंने कहा कि यह समस्या केवल किसानों की नहीं, बल्कि पूरे बस्तर की है, क्योंकि पेयजल व्यवस्था भी इंद्रावती पर निर्भर है।
✅ उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस समस्या को गंभीरता से ले रही है और जल्द ही समाधान निकाला जाएगा।
निष्कर्ष: इंद्रावती बचाने के लिए ठोस पहल की जरूरत
✅ बस्तर की जीवनरेखा इंद्रावती नदी सूखने के कगार पर है, जिससे किसान और ग्रामीण भारी संकट में हैं।
✅ ओडिशा सरकार ने नदी पर कई डैम बना लिए हैं, जिससे छत्तीसगढ़ को उसका हक का पानी नहीं मिल पा रहा है।
✅ अब जब छत्तीसगढ़, ओडिशा और केंद्र – तीनों जगह भाजपा की सरकार है, तो इस समस्या के हल की उम्मीद जगी है।
✅ स्थानीय नेताओं को तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि इंद्रावती नदी फिर से बस्तर के लोगों की प्यास बुझा सके।
अगर जल्द कोई समाधान नहीं निकला, तो आने वाले समय में यह संकट और भयावह हो सकता है।