धमतरी के बहादुर बालकों ने दिखाई अद्भुत वीरता
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में रहने वाले दो साहसी बालकों, आशु देवांगन और मेहुल देवांगन ने अपने अदम्य साहस और सूझबूझ से एक मिसाल कायम की है। इन दोनों नन्हे वीरों ने न केवल अपने पिता की जान बचाई, बल्कि यह भी साबित किया कि बहादुरी उम्र की मोहताज नहीं होती।
घटना का पूरा विवरण
यह घटना 28 मार्च 2025 की है जब धमतरी शहर स्थित रुद्री जलाशय बांध पर एक अप्रत्याशित घटना घटी। संतोश देवांगन और मिथलेश देवांगन अपने परिवार के साथ बांध के पास घूमने गए थे। पानी के समीप आनंद लेते समय अचानक किसी कारणवश संतोश देवांगन का संतुलन बिगड़ गया और वह गहरे पानी में गिर गए।
उनके गिरते ही परिवार के लोगों में अफरा-तफरी मच गई। मौके पर मौजूद लोग घबराकर चिल्लाने लगे, लेकिन किसी को समझ नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में क्या किया जाए। इसी बीच, उनके पुत्र आशु देवांगन (12 वर्ष) और मेहुल देवांगन (14 वर्ष) ने बिना किसी डर के गहरे पानी में छलांग लगा दी।
अपनी जान की परवाह किए बिना बचाई पिता की जान
बच्चों को तैराकी आती थी, लेकिन इतनी गहराई में जाना आसान नहीं था। पानी के बहाव और गहराई के कारण स्थिति और भी कठिन थी। लेकिन दोनों भाइयों ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने पिता तक पहुंचने की कोशिश जारी रखी।
काफी संघर्ष करने के बाद उन्होंने अपने पिता को पकड़ लिया और धीरे-धीरे किनारे की ओर खींचना शुरू किया। इस बीच, अन्य लोग भी मदद के लिए दौड़े और जैसे ही बच्चे अपने पिता को किनारे तक लाए, वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बाहर निकाल लिया। संतोश देवांगन की जान बच गई, और यह सब केवल उनके साहसी बेटों की बदौलत संभव हो पाया।
वीरता की सराहना : प्रकाश बैस ने किया सम्मानित
जब इस बहादुरी की खबर पूरे इलाके में फैली, तो हर कोई इन बच्चों की प्रशंसा करने लगा। भाजपा जिलाध्यक्ष प्रकाश बैस ने व्यक्तिगत रूप से उनके निवास स्थान पर जाकर इन बच्चों को सम्मानित किया।
उन्होंने कहा, “आशु और मेहुल ने जो साहस दिखाया है, वह वाकई में अनुकरणीय है। उनकी बहादुरी को सम्मान मिलना चाहिए ताकि अन्य बच्चे भी प्रेरित हो सकें।”
प्रकाश बैस ने इस मौके पर घोषणा की कि वे महामहिम राष्ट्रपति से आग्रह करेंगे कि इन बहादुर बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाए।
राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार के लिए सिफारिश
राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार भारत में असाधारण बहादुरी और निडरता दिखाने वाले बच्चों को दिया जाता है। यह सम्मान उन बच्चों को मिलता है जिन्होंने अपनी सूझबूझ और हिम्मत से किसी की जान बचाई हो या समाज में कोई महत्वपूर्ण योगदान दिया हो।
प्रकाश बैस ने इन दोनों बच्चों के लिए इस पुरस्कार की सिफारिश की है और इसके लिए औपचारिक पत्र महामहिम राष्ट्रपति को भेजा है।
समाज में सकारात्मक संदेश
इस घटना ने पूरे धमतरी जिले और आसपास के क्षेत्रों में एक सकारात्मक संदेश फैलाया है। लोगों ने महसूस किया कि बहादुरी केवल शारीरिक शक्ति से नहीं आती, बल्कि आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता से भी जुड़ी होती है।
इस अवसर पर भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष निर्मल बरड़िया सहित कई अन्य वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे। सभी ने इन बच्चों की वीरता को सराहा और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
बच्चों की बहादुरी से मिली प्रेरणा
इस घटना के बाद, कई माता-पिता अपने बच्चों को तैराकी सिखाने और जीवन रक्षक तकनीकों की जानकारी देने के प्रति जागरूक हुए हैं। यह जरूरी है कि हर बच्चा बुनियादी सुरक्षा उपायों से परिचित हो ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति में वे घबराने की बजाय साहस और सूझबूझ से काम लें।
निष्कर्ष
आशु और मेहुल ने जो किया, वह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है। इनकी बहादुरी साबित करती है कि सच्चा साहस उम्र या अनुभव का मोहताज नहीं होता।
अगर इन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिलता है, तो यह न केवल इनके लिए बल्कि पूरे जिले के लिए गर्व की बात होगी। उम्मीद है कि महामहिम राष्ट्रपति इस सिफारिश को स्वीकार करेंगे और इन नन्हे नायकों को उनका उचित सम्मान देंगे।