एक मिसाल बना मालिक-नौकर का रिश्ता, जो बना परिवार से मिलन की वजह
कहते हैं कि मालिक और नौकर का रिश्ता अक्सर औपचारिक होता है—बस काम का लेन-देन। लेकिन बिलासपुर के एक व्यापारी और उनके नौकर की कहानी इस सोच को बिल्कुल गलत साबित करती है। यह कहानी सिर्फ इंसानियत की नहीं, बल्कि सच्चे रिश्ते, वफादारी और भावनाओं की भी है, जो किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी लग सकती है, लेकिन यह पूरी तरह सच्ची घटना है।
इस कहानी का नायक है जनक बहादुर, जो नेपाल के कैलाली जिले के परिबन गांव का रहने वाला है। जनक करीब 42 साल पहले अपने गांव और परिवार को छोड़कर काम की तलाश में भारत आया था, और अब इतने वर्षों बाद उसे अपने परिवार से मिलने का सौभाग्य मिला है—वो भी अपने मालिक की मदद से।
️ 1982 में घर छोड़ा, फिर कभी संपर्क नहीं हुआ
जनक बहादुर साल 1982 में अपने चचेरे भाई दल बहादुर के साथ काम की तलाश में नेपाल से भागकर भारत आया था। उनका सफर शुरू हुआ महाराष्ट्र के गोंदिया जिले से, जहाँ जनक ने एक चावल मिल में चौकीदार की नौकरी कर ली। ढाई साल वहाँ काम करने के बाद वह दुर्ग होते हुए बिलासपुर पहुँच गया।
बिलासपुर में जनक को एक डेयरी फॉर्म में काम मिल गया जो डीपूपारा इलाके में था। पहले यह फॉर्म संदीप दत्ता का था, जिसे बाद में सुनील गुरुदीवान ने खरीदा। वहीं जनक की किस्मत ने करवट ली।
मालिक ने करवाई शादी, बना परिवार
सुनील गुरुदीवान ने जनक को सिर्फ काम ही नहीं दिया, बल्कि उसकी शादी भी एक मराठी लड़की रेखा से करवाई। यहीं से जनक की जिंदगी को एक स्थायित्व मिला। धीरे-धीरे जनक का जीवन बसने लगा, लेकिन अपने पुराने घर और परिवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया।
फिर हुई मुलाकात घनश्याम रेलवानी से – दोस्त नहीं, परिवार जैसे बन गए
जनक की मुलाकात बिलासपुर के किराना व्यापारी घनश्याम रेलवानी से हुई। गाय पालने का शौक रखने वाले घनश्याम जब जनक से मिले, तो दोनों के बीच एक खास रिश्ता बन गया।
यह रिश्ता सिर्फ मालिक और नौकर का नहीं था—यह एक सच्चे दोस्त, भाई और परिवार जैसा था। कोरोना काल में यह रिश्ता और मजबूत हुआ। जब जनक ने अपनी तबीयत और काम की परेशानी बताई, तो घनश्याम ने उसे अपनी चाय दुकान पर काम और रहने के लिए घर भी दिया।
परिवार से मिलने की चाह, लेकिन हालात नहीं थे अनुकूल
घनश्याम हमेशा जनक से पूछते कि तुम्हारा परिवार कहां है? उनसे क्यों नहीं मिलते? जनक का मन तो होता, लेकिन आर्थिक तंगी और 40 साल से कोई संपर्क न होने के कारण वह हमेशा बात को टालता रहा।
लेकिन घनश्याम ने हार नहीं मानी। उन्होंने जनक की भावनाओं को समझा और कुछ दिन पहले उसे अपनी कार में बैठाकर नेपाल ले गए।
️ नेपाल यात्रा: उम्मीदों से भरी एक भावनात्मक खोज
नेपाल पहुँचने के बाद, घनश्याम और जनक ने खगरौला गांव में बहुत खोजबीन की। पूछताछ करने के बाद जनक को उसका भतीजा मान बहादुर मिला।
जनक ने उसे पहचान लिया और भावुक होकर उसे गले लगा लिया। जल्द ही जनक की भाभी ट्यूकी भी आईं। इतने सालों बाद परिवार से मिलना एक बहुत ही भावुक पल था।
मां-बाप नहीं रहे, पर भाई-भतीजों से बात हुई
परिवार से मिलकर जहां एक ओर खुशी थी, वहीं एक खबर ने जनक को तोड़ दिया—उसके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह सुनकर वह रो पड़ा, खुद को दोष देने लगा कि काश पहले आया होता।
घनश्याम ने उसे ढांढस बंधाया और भाई नर बहादुर और जावटे सिंह से वीडियो कॉल पर बात करवाई। भाईयों ने जब जनक को ज़िंदा देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
जब जनक ने बताया कि उसकी शादी हो चुकी है और उसके बच्चे भी हैं, तो पूरे परिवार में खुशी का माहौल बन गया।
अब रोज हो रही है बातचीत, परिवार बुला रहा है नेपाल
नेपाल से लौटने के बाद जनक का अपने परिवार से रोज़ाना फोन पर संपर्क हो रहा है। उसके तीन भतीजे जयपुर में हैं और एक ओडिशा में। उनके बच्चे भी अब जनक से बात करते हैं।
जनक बताते हैं कि उनकी पत्नी रेखा, बेटी-दामाद और बेटे-बहू से भी परिवार की बात हो चुकी है। सब उसे बार-बार नेपाल आने का न्योता दे रहे हैं।
जनक का कहना है—
“अब मैं पैसे जमा कर रहा हूँ। जैसे ही पैसे पूरे होंगे, मैं अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर नेपाल जाऊंगा।”
यह कहानी क्यों खास है?
यह कहानी इसलिए खास है क्योंकि इसमें मालिक-नौकर का रिश्ता सिर्फ लेन-देन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक जीवनभर की दोस्ती और इंसानियत का रिश्ता बन गया।
घनश्याम रेलवानी ने जो किया, वह शायद हर कोई न कर पाए। उन्होंने न सिर्फ जनक को घर दिया, काम दिया, बल्कि उसे उसके खोए हुए परिवार से फिर से मिलवाया। यह काम समाज में मानवता की एक नई मिसाल बनकर सामने आया है।
निष्कर्ष:
जनक की जिंदगी की यह सच्ची कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी जीवन में ऐसे लोग मिलते हैं जो अपने खून के रिश्तों से भी बढ़कर होते हैं।
घनश्याम रेलवानी ने जो किया वह सिर्फ एक इंसान की मदद नहीं, बल्कि उसकी अधूरी जिंदगी को पूरा करने जैसा था।
जनक अब अपने पूरे परिवार से जुड़ चुका है और एक बार फिर से रिश्तों की गर्माहट महसूस कर पा रहा है। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि सच्चे रिश्ते पैसे या खून से नहीं, बल्कि दिल से बनते हैं।