छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के सीतापुर थाना क्षेत्र में एक 16 साल के छात्र ने आत्महत्या कर ली। छात्र को उसके पिता ने मोबाइल देखने पर डांटा और परीक्षा देने की सलाह दी। नाराज होकर वह जंगल चला गया और जामुन के पेड़ पर फांसी लगाकर जान दे दी। यह घटना केवल एक दुखद हादसा नहीं है, बल्कि बच्चों की मानसिक स्थिति, पढ़ाई का दबाव, और परिवार में संवाद की कमी को उजागर करती है।
घटना को सरल भाषा में विस्तार से समझिए:
1. छात्र की पहचान और पारिवारिक स्थिति:
-
यह मामला ग्राम कसाइडीह का है, जो सरगुजा जिले के सीतापुर थाना क्षेत्र में आता है।
-
मृतक छात्र कक्षा 9वीं में पढ़ता था और पिछले साल इसी कक्षा में फेल हो गया था।
-
पढ़ाई में कमजोर होने के कारण उसे परीक्षा देने में डर लगता था, इसलिए वह घर से स्कूल जाने का नाटक करता था, लेकिन वास्तव में वह स्कूल नहीं जाता था और इधर-उधर घूमकर वापस घर आ जाता था।
2. आत्महत्या से ठीक पहले की घटना:
-
मंगलवार सुबह, जब वह मोबाइल देख रहा था, तो उसके पिता ने उसे डांट दिया और कहा कि वह परीक्षा देने जाए।
-
इस डांट से वह नाराज हो गया और बकरियों को चराने का बहाना बनाकर जंगल चला गया।
-
जंगल में उसने बकरी बांधने वाली रस्सी से जामुन के पेड़ पर फांसी लगा ली।
3. शव मिलने की स्थिति:
-
शाम के करीब 5 बजे जब बकरियां घर लौट आईं लेकिन छात्र नहीं लौटा, तो परिवार को चिंता हुई।
-
उसके पिता जंगल में उसे ढूंढने गए और वहीं पेड़ से लटका हुआ उसका शव मिला।
-
पिता के होश उड़ गए। किसी तरह गांव आकर उन्होंने गांव वालों को खबर दी, और फिर पुलिस को सूचना दी गई।
-
शाम 7 बजे के करीब पुलिस मौके पर पहुंची, शव को नीचे उतारा गया और अगले दिन पंचनामा व पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंपा गया।
एक महीने में यह तीसरी आत्महत्या – बढ़ती चिंता का विषय
इस घटना से भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि एक महीने के भीतर तीन नाबालिग छात्रों ने आत्महत्या कर ली है। सभी मामलों में पढ़ाई, परीक्षा या खराब रिजल्ट के डर का जिक्र सामने आया है।
एक और मामला – पीजीडीसीए छात्र ने की आत्महत्या
-
इस घटना के ठीक एक दिन पहले अंबिकापुर शहर में 25 साल के पीजीडीसीए छात्र ने भी फांसी लगाकर जान दे दी।
-
वह सुभाष नगर के किराए के मकान में रहता था।
-
उसका शव 400 मीटर दूर पेड़ पर लटका मिला।
-
युवक ने सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें लिखा था –
“मुझे पता है जो मैं कर रहा हूं वो गलत है, लेकिन बचपन से दुख-दर्द झेल रहा हूं।”
-
हालांकि उसने यह नहीं लिखा कि किस कारण से परेशान था। पुलिस ने मर्ग कायम कर जांच शुरू कर दी है।
मनोवैज्ञानिक की राय – बच्चों में हो रहे मानसिक बदलावों को समझें
PG कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर दीप्ति विश्वास ने बताया:
-
बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ना बहुत गंभीर संकेत है।
-
आज के दौर में बच्चे मोबाइल और टीवी से जरूरी और गैर-जरूरी जानकारी आसानी से पा लेते हैं, जिससे उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है।
-
अभिभावकों को सतर्क रहना चाहिए।
-
बच्चों से लगातार बातचीत करनी चाहिए, उन्हें दोस्त जैसा व्यवहार देना चाहिए, ताकि वो हर बात खुलकर कह सकें।
-
बच्चों के व्यवहार में अचानक आए बदलावों को नज़रअंदाज न करें।
इस खबर से हमें क्या सीख मिलती है?
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज को गंभीरता से सोचना होगा।
-
डांटना समाधान नहीं है – संवाद ही सबसे बड़ा हल है।
-
पढ़ाई में कमजोर बच्चों को और सपोर्ट की ज़रूरत होती है, न कि दबाव।
-
सिर्फ रिजल्ट की चिंता से बच्चे इतना बड़ा कदम उठा लें, यह बेहद खतरनाक है।
-
समाज को चाहिए कि वो अभिभावकों को मानसिक स्वास्थ्य की जानकारी दे, स्कूलों में भी काउंसलिंग अनिवार्य की जाए।
क्या किया जा सकता है – समाधान की दिशा में कदम
-
✅ स्कूलों में मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति हो।
-
✅ हर परीक्षा के बाद बच्चों की मानसिक स्थिति की समीक्षा हो।
-
✅ पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में सिर्फ मार्क्स नहीं, मानसिक स्थिति पर भी बात हो।
-
✅ बच्चों को ‘फेल होना’ जिंदगी का अंत नहीं, बल्कि सीखने का मौका बताया जाए।
-
✅ मोबाइल और सोशल मीडिया पर बच्चों की एक्टिविटी पर नजर रखने के साथ-साथ खुलकर चर्चा की जाए।
निष्कर्ष (Conclusion):
यह खबर सिर्फ एक छात्र की आत्महत्या की नहीं है, यह हमारे सामाजिक, पारिवारिक और शैक्षणिक तंत्र की विफलता की कहानी है।
बच्चे अब सिर्फ पढ़ाई के बोझ से नहीं, तोड़ते रिश्तों, अकेलेपन और संवाद की कमी से टूट रहे हैं।
अगर हमने अब भी ध्यान नहीं दिया, तो शायद हर महीने ऐसी खबरें आम हो जाएंगी।
समाज, स्कूल और परिवार को मिलकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करनी होगी।