अंबिकापुर। कोरोना के बाद अब देश में गुलियन बैरे सिंड्रोम का खतरा लोगों पर मंडराने लगा है। सरगुजा संभाग से भी जीबीएस के मरीज सामने आने की पुष्टि हुई है। संभाग के कोरिया जिले में अब तक पांच जीबीएस मरीज आ चुके हैं जबकि सरगुजा में दो संभावित मरीजों को रायपुर रिफर किया गया है। चिकित्सकों का कहना है कि फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है। लोगों को घबराने की जरुरत नहीं है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इस बीमारी को लेकर प्रदेश में अलर्ट जारी किया है और लोगों के उपचार के लिए एम्स का चयन किया है। देश में कोरोना महामारी के बाद अब जीबीएस नामक बीमारी चिकित्सकों की चिंता का कारण बनी हुई है।
देश के कई राज्यों में गुलियन बैरे सिंड्रोम के केस मिल रहे थे और अब इस बीमारी ने सरगुजा संभाग में भी दस्तक दे दी है। पिछले कुछ महीनों में संभाग के कोरिया जिले में गुलियन बैरे सिंड्रोम के पांच केस सामने आए थे। इनमें से तीन मरीज लम्बे उपचार के बाद अब पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं जबकि दो मरीजों को वेंटीलेटर में रखने की जरुरत पड़ गई थी। गनीमत है कि अब इन दो मरीजों को भी वेंटीलेटर से निकालकर सामान्य वार्ड में भर्ती कर दिया गया है लेकिन उनका उपचार जारी है। वहीं हाल ही में सरगुजा जिले में भी जीबीएस के दो संभावित मरीज सामने आए हैं। दोनों मरीजों को उपचार के लिए रायपुर रिफर कर दिया गया है और उनका उपचार एम्स में चल रहा है।
क्या है गुलियन बैरे सिंड्रोम
विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता ने बताया कि, गुलियन बैरे सिंड्रोम एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम, जो आमतौर पर बीमारियों से बचाता है, अचानक शरीर को ही अटैक करना शुरू कर देता है। इसी वजह से इसे ऑटो इम्यून डिसऑर्डर कहा जाता है। आसान भाषा में कहें, तो इस सिंड्रोम से जूझ रहा एक व्यक्ति को बोलने में, चलने में, निगलने में, मल त्यागने में या रोज की आम चीजों को करने में दिक्कत आती है। यह स्थिति समय के साथ और खराब होती जाती है। जिससे व्यक्ति का शरीर पैरालाइज हो जाता है।
कैसे होती है जांच और उपचार
विशेषज्ञों का कहना है कि, यह संक्रामक बीमारी नहीं है लेकिन ये जिस कारण से होता है वो अगर बढ़ जाए तो जीबीएस के मरीज की संख्या बढ़ जाएगी। इस बीमारी की जांच की सुविधा फिलहाल छत्तीसगढ़ में नहीं है। मरीज के मल मूत्र, ब्लड से तो इसकी जांच होती है इसके साथ ही मांसपेशियों के संकुचन से भी इसका पता लगाया जाता है। वहीं सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूड (सीएसएफ) से इसका पता लगाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी का इलाज इम्यूनोग्लोबिन है जो काफी महंगा उपचार है। ये इंजेक्शन डेढ़ से ढाई लाख रूपए तक में आते हैं। इस बीमारी के औसतन एक लाख की आबादी में एक व्यक्ति को होने की संभावना रहती है।
नहीं है घबराने की जरुरत
जेडी स्वास्थ्य सेवाएं डॉ. अनिल शुक्ला ने बताया कि, जीबीएस के पांच केस कोरिया जिले में सामने आए थे जिनमें से तीन अब स्वस्थ हैं और दो मरीजों को वेंटीलेटर से बाहर निकाल लिया गया है। सरगुजा के दो संभावित मरीजों का उपचार भी रायपुर में चल रहा है। जीबीएस को लेकर आईसीएमआर की टीम सरगुजा आई थी। फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है और लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है।
मांसपेशियों पर होता है असर
महामारी नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता ने बताया कि, जीबीएस में मनुष्य के मांसपेशियों पर असर पड़ता है और शरीर के दोनों तरफ के अंग एक साथ प्रभावित होते हैं। पैर के तालू में जलन, झनझनाहट से शुरू होकर डायफ्राम तक इसका असर होता है। इससे सांस लेने में समस्या होती है और इंसान चलने फिरने में असमर्थ हो जाता है। हमारे यहां से दो संभावित मरीज सामने आए थे जिन्हें उपचार के लिए एम्स भेजा गया है।