राहुल शर्मा – दुर्ग । छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में से 35 लाख मीट्रिक टन धान सरकार नीलाम करने की तैयारी में है। खास बात ये है कि धान की कोई न्यूनमतम कीमत यानी बेस रेट सरकार नहीं रख रही है। जो बोलीदार सबसे अधिक बोली लगाएगा, उसे धान बेचा जाएगा। यानी बोली लगाने वाले खुद धान की कीमत तय करेंगे। राज्य सरकार ने किसानों से प्रति क्विंटल 31 सौ रुपए की दर से धान की खरीदी की है। इससे कम दर आने पर राज्य शासन को नुकसान तय है।
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2024-25 में प्रदेशभर के 25 लाख 49 हजार 592 किसानों से 149 लाख टन धान की खरीदी की गई थी। इसमें नागरिक आपूर्ति निगम और एफसीआई के कोटे में कस्टम मिलिंग के जरिए 123 लाख टन का निराकरण किया जाएगा। वहीं चावल जमा करने के बाद करीब 35 लाख टन धान अतिशेष है। यह प्रदेशभर के संग्रहण केन्द्रों में डंप है। इसकी नीलामी के लिए राज्य शासन द्वारा जैसे है वैसे की स्थिति में बोलीकर्ता से टेंडर मंगाए गए हैं। मार्कफेड के अधिकारियों ने बताया कि बोली में भाग लेने के लिए 17 अप्रैल की तारीख तय की गई है। ई-आक्शन के जरिए राज्य शासन द्वारा धान की नीलामी कराई जाएगी।
प्रति क्विंटल 28 सौ रुपए की लागत लगी
माना जा रहा था कि राज्य और केन्द्र में भाजपा की सरकार होने से धान का कटोरा कहे जाने वाले छग में धान का निराकरण कर लिया जाएगा, लेकिन केन्द्र द्वारा चावल के कोटा को नही बढ़ाए जाने के कारण राज्य शासन ने इसे फ्री सेल यानी खुले बाजार में बेचने की तैयारी कर ली है। मार्कफेड सूत्रों की मानें, तो धान खरीदने से लेकर ट्रांसपोर्टिंग व रखरखाव के बाद प्रति क्विंटल धान में 28 सौ रुपए खर्च होता है। ऐसे में अगर 28 सौ रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से रेट नहीं आए तो राज्य शासन को करोड़ों का नुकसान होगा।
खुले बाजार में चावल सस्ता
व्यापारियों की मानें तो खुले बाजार में चावल के दाम प्रति क्विंटल दो हजार रुपए चल रहे हैं। ऐसे में राज्य शासन ने किसानों से प्रति क्विंटल 31 सौ रुपए में धान खरीदा है। इसकी लागत निकालने की चुनौती होगी। व्यापारियों का कहना है कि बगैर कस्टम मिलिंग के ही बाजार में उन्हें दो हजार रुपए प्रति क्विंटल में चावल उपलब्ध हो रहा है। कस्टम मिलिंग में सरकार को चावल देने छग के मिलर यूपी और झारखंड से सस्ते में चावल मंगा रहे हैं। इसे एफसीआई और नान में जमा कर रहे हैं।
बेसरेट निर्धारित नहीं
रायपुर राज्य विपणन संघ के एमडी रमेश शर्मा ने बताया कि, प्रदेशभर के संग्रहण केन्द्रों में रखे गए करीब 35 लाख टन धान की नीलामी करने टेंडर मंगाए गए हैं। इसके लिए बेसरेट निर्धारित नहीं है। जो निविदाकार अधिक बोली लगाएंगे, उन्हें ही आबंटन किया जाएगा।
नीलामी करनी थी तो ट्रांसपोर्टिंग क्यों ?
पूर्ववर्ती भूपेश बघेल की सरकार ने भी केन्द्र द्वारा कोटे में चावल नहीं लिए जाने के कारण नीलामी की गई थी, लेकिन उस दौरान सोसाइटी में ही अतिरिक्त धान की नीलामी आनलाइन प्रक्रिया से कराई गई थी। वर्तमान में सरकार ने सोसाइटियों से धान का उठाव कर ट्रांसपोर्टिंग में मोटी रकम फूंक दी है, जबकि नीलामी सोसाइटियों में भी कराई जा सकती थी। अब ऐसे में लागत राशि निकालना राज्य विपणन संघ के लिए चुनौती बनी हुई है ।