स्कूलों में ग्रीष्मकालीन अवकाश की शुरुआत हो चुकी है। नवीन शैक्षणिक सत्र 16 जून से शुरू होना है। इस दौरान जब बच्चे स्कूल आएंगे तो वे इस उम्मीद में होंगे कि, उन्हें नई किताबें मिलेंगी। लेकिन यह संभव नहीं हो सकेगा। पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा अब तक छपाई के लिए किताबें प्रेषित नहीं की जा सकी है। किताब प्रकाशन से लेकर इसे शाला तक पहुंचाने की प्रक्रिया में न्यूनतम 3 माह का समय लगता है। मई माह में किताब प्रकाशन प्रारंभ होने की स्थिति में भी विद्यार्थियों को पुस्तकें जुलाई अंत अथवा अगस्त में ही मिल सकेंगी।
किताब छपाई में हुए घोटाले की जांच के कारण इस बार प्रकाशन प्रकाशन प्रक्रिया में विलंब हुआ है। इसके बाद नया पेंच आवेदन प्रक्रिया को लेकर फंस गया है। अंदरुनी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पापुनि द्वारा 4 मार्च को जारी किए गए टेंडर में जिन्होंने फॉर्म भरा था, उनमें से सभी ने एक ही कंप्यूटर से आवेदन किए थे। नियमतः दो टेंडर का आईपी एड्रेस एक नहीं होना चाहिए। आईपी एड्रेस एक संख्यात्मक लेबल होता है जो इंटरनेट या स्थानीय नेटवर्क पर हर डिवाइस को सौंपा जाता है। प्राप्त सभी 11 आवेदन एक ही आईपी एड्रेस से भरे आने के कारण इसे रद्द करते हुए दोबारा टेंडर निकाला गया है।
एससीईआरटी भेज चुका है सिलेबस
पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा प्रतिवर्ष पहली से दसवीं कक्षा तक के लिए किताबों की छपाई की जाती है। शासकीय विद्यालयों के साथ ही निजी विद्यालयों के छात्रों को भी निशुल्क किताबें वितरित की जाती हैं। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद द्वारा सिलेबस तैयार करके पापुनि को भेजा जा चुका है। पापुनि द्वारा पिछले सत्र में 9 टन किताबों की छपाई गई थी। अतिरिक्त किताबों छपवाने और उन्हें रद्दी में बेचे जाने का मामला सामने आया था। जांच के बाद इस बार पापुनि द्वारा किताब छपाई सिस्टम में कई बदलाव किए गए हैं ताकि गड़बड़ी रोकी जा सके। इसमें किताबों की ट्रैकिंग किया जाना भी शामिल है।
नहीं पढ़ा सकेंगे पुरानी किताबों से
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत पाठ्यक्रम में कई तरह के बदलाव किए गए हैं। प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों की स्थानीय बोली में भी पढ़ाया जाना शामिल है। चूंकि कई तरह के बदलाव कोर्स में किए गए हैं, इसलिए पुरानी किताबों से अध्ययन करा पाना संभव नहीं है। निजी विद्यालयों द्वारा छात्रों को प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबों से भी अध्ययन कराया जाता है. इसलिए उनकी पढ़ाई अधिक प्रभावित नहीं होगी। किताबें वक्त पर नहीं पहुंचने के कारण शासकीय विद्यालय के छात्रों को अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा।