मेडिकल घोटाले में अफसरों का खुला खेल : मुफ्त के नियम को हटाकर खरीदी 121 करोड़ की स्टार्टर टेस्ट किट

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रायपुर। स्वास्थ्य केंद्रों में उपकरण और रीएजेंट खरीदी की आड़ में अफसरों ने घोटाले का खुला खेल खेला। उपकरणों के साथ सौ टेस्ट किट फ्री में देने का नियम था, जिसे हटाकर मोक्षित कार्पोरेशन से 121 करोड़ की स्टार्टर टेस्ट किट की खरीदी कराई गई। स्वास्थ्य संस्थानों में मशीन इंस्टालेशन की झूठी जानकारी निर्धारित पोर्टल में दर्ज की गई, जिससे संबंधित कंपनी को 44 करोड़ का भुगतान हो गया। अफसर सारा तिकड़म मोक्षित कॉर्पोरेशन के एमडी के इशारे पर करते रहे। इसके लिए उनका लगातार संपर्क रहा, जो आरोपियों के फोन की जांच में सामने आया है। 

ईओडब्ल्यू ने दवा निगम और स्वास्थ्य संचालनालय के माध्यम से हुए घोटाले का चालान पत्र न्यायालय में पेश किया है। चालान में आरोपियों द्वारा सप्लायर मोक्षित कंपनी को लाभपहुंचाने के लिए सोची-समझी साजिश के तहत काम करने का उल्लेख है। मोक्षित के कंपनी ने एक रैकेट बनाकर इस घोटाले को अंजाम दिया। चालान में जिक्र किया गयाहै कि दवा कॉर्पोरेशन में बसंत कुमार कौशिक की सीजीएमएससी में पदस्थापना शशांक चोपड़ा के प्रभाव से हुई थी और वे मोक्षित नेटवर्क के रणनीतिक सदस्य थे। सीडीआर में उनके बीच नियमित संपर्क होने की पुष्टि हुई है। बसंत ने क्षिरोद्र रौतिया के साथ मिलकर फ्री के टेस्ट को खरीदने खेल खेला था।  कंपनी को भुगतान के लिए ईएमआईएस पोर्टल का उपयोग स्वास्थ्य इंस्टालेशन की प्रामाणिक जानकारी दर्ज करने के लिए किया जाता था। इसमें मोक्षित कॉर्पोरेशन के उपकरणों की झूठे प्रमाणपत्र अपलोड किए गए और दवा कॉर्पोरेशन की हार्डकॉपी जमा की गई। और दवा कॉर्पोरेशन की हार्डकॉपी जमा की गई। इस दस्तावेज के आधार पर मोक्षित को 44.01 करोड़ रुपए की भुगतान राशि जारी कर दी गई। इसी तरह हमर लैब के उपकरणों के दौरान मोक्षित कॉर्पोरेशन की साथी कंपनी द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज संदिग्ध पाए जाने पर तात्कालीन एमडी सीजीएमएससी ने अपात्र किए जाने का निर्देश दिया था। इसका पालन करने के बजाय अधिकारी कमलकांत पाटनवार बीमारी का बहाना बनाकर अस्पताल में भर्ती हो गया। एमडी अभिजीत सिंह के हटने के बाद निर्देश को दरकिनार किया गया और टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर दी गई।

किस आरोपी की क्या भूमिका

क्षिरोद्र रौतिया : बायोमेडिकल इंजीनियर के पद पर रहते तकनीकी परीक्षण एवं मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावित किया। रीएजेंट की न्यूनतम दर पर आई आपत्ति को गलत उदाहरण देकर सही साबित कर मोक्षित से मनमाने दाम पर खरीदी का रास्ता बनाया। इसके जरिए मोक्षित कऍपर्पोरेशन को प्राप्त हुए टेंडर में 02 प्रतिशत कमीशन मिला। 

डॉ. अनिल परसाई : उपसंचालक स्टोर ने विशेषज्ञों के तर्क को नजर अंदाज कर मनमाने ढंग से रीएजेंट की सूची तैयार कराई। इसमें कार्डियक और कैंसर मार्कर को जोड़ा गया। सप्लाई के लिए स्वास्थ्य केंद्रों में विशेष तरह के रेफ्रिजरेटर की सुविधा नहीं होने की जानकारी को नजर अंदाज किया गया। विशेषज्ञों की समिति पर अपना निर्णय थोपकर सप्लाई टेंडर को मोक्षित की तरफ मोड़ा गया। 

बसंत कौशिक : तत्कालीन प्रभारी महाप्रबंधक उपकरण ने मोक्षित कॉर्पोरेशन को लाभ पहुंचाने कई टेंडरों में टेलमेड शर्तों को लागू कराया। जिलास्तर पर मांग के आधार पर सीबीसी मशीन के लिए दर अनुबंध की कार्यवाही की गई। पीडियाट्रिक 3 पार्ट डब्ल्यूबीसी डेफ्रिशियल एनॉलॉइजर मशीन की निविदा में जानबूझकर ईडीटीए ट्यूब जोड़ा गया। इस ट्यूब को विशेष तरह का बताकर लगभग दो करोड़ की शासन को क्षति पहुंचाई गई। 

दीपक बंधे : बायोमेडिकल इंजीनियर ने विशेषज्ञ समिति की भूमिका  को औपचारिक प्रक्रिया तक सीमित करते हुए निर्णय को मनमाने ढंग से संचालित किया। सीबीसी मशीन की सप्लाई की वैधानिक प्रक्रिया के तहत जांच नहीं की गई। शशांक चोपड़ा के पक्ष में काम करने के लिए उसे 0.2 प्रतिशत कमीशन प्राप्त होने के साक्ष्य मिले। 

कमलकांत पाटनवार :  तत्कालीन उप प्रबंधक उपकरण ने एमडी के संदेह के बाद भी शारदा इंड्रस्ट्रीज के मेनपावर और उत्पादन का भौतिक सत्यापन नहीं कराया। फर्म अपात्र न हो जाए, इसलिए जानबूझकर बीमारी के बहाने से अस्पताल में भर्ती हो गए। उपकरण और रीएजेंट की न्यूनतम बाजार दर का मूल्याकंन नहीं कराया। इसके एवज में उसे 05 प्रतिशत कमीशन मिलने के साक्ष्य मिले। 

शशांक चोपड़ा :  मोक्षित कॉर्पोरेशन के एमडी शशांक चोपड़ा पर कार्टलाइजेशन का सूत्रधार होने और टेलरमेड के माध्यम से टेंडर हासिल करने साजिश रचने का आरोप है। अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर सुनियोजित आर्थिक घोटाले का संचालन, निजी लाभ के लिए बोगस बिल का उपयोग, आने वाली आपत्तियों का दूषित तरीके से निराकरण कराने का आरोप है।

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