छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सत्ता आते ही निगाहें प्रदेश के मुख्यमंत्री पर टिकी हुई है कि आखिर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। इसके साथ ही सरकार में संभावित मंत्रिमंडल और विधानसभा अध्यक्ष के पद को लेकर भी राजनीतिक हचचल तेज हो गई है।
बीजेपी ने इस बार का चुनाव पीएम मोदी और पार्टी के निशान को सामने रखकर लड़ा है। लिहाजा, अब केन्द्रीय नेतृत्व की ओर से ही सीएम फेस के साथ संभावित मंत्रिमंडल का खाका तैयार होगा। माना जा रहा है कि नए मंत्रिमंडल में पुराने और नए चेहरों का संतुलन होगा, साथ ही महिला मंत्रियों की संख्या भी 1 से ज्यादा हो सकती है।
मंत्री पद की रेस में पुराने चेहरे
मंत्रिमंडल में ज्यादातर पुराने चेहरों को ही रिपीट किए जाने की संभावना है। इनमें रमन सरकार में मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, अजय चंद्राकर, अमर अग्रवाल, पुन्नूलाल मोहले, विक्रम उसेंडी, केदार कश्यप और रामविचार नेताम के नाम शामिल हैं। वहीं विष्णुदेव साय का नाम इस समय मुख्यमंत्री पद की रेस में चल रहा है, लेकिन अगर उन्हें सीएम नहीं बनाया जाता तब किसी बड़े विभाग के मंत्री की जिम्मेदारी मिल सकती है।
बृजमोहन अग्रवाल
कद्दावर चेहरा, मजबूत पकड़
छात्र राजनीति से सियासत में एंट्री करने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल 1990 में पहली बार विधायक चुने गए। साल 2023 में 8वीं बार जीतकर आए हैं। 1990-92 में बृजमोहन अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रहे। राज्य बनने के बाद साल 2003, 2008 और 2013 में भी अहम विभागों के मंत्री रहे।
2018 में कांग्रेस की लहर में भी जीतकर आए। 2023 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के महंत रामसुंदर दास को 67719 रिकॉर्ड मतों से हराया।
राजेश मूणत
तगड़ा मैनेजमेंट, लंबा अनुभव
युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजेश मूणत साल 2003 में पहली बार विधायक चुनकर आए। 2008 और 2013 में दूसरी और तीसरी बार वे विधायक बने। रमन सरकार में 2003, 2008 और 2013 में लगातार मंत्री रहे। साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस के विकास उपाध्याय ने उन्हें चुनाव हरा दिया। 2023में फिर से पार्टी ने मूणत पर भरोसा जताया। इस चुनाव में भी उनके सामने विकास उपाध्याय थे, लेकिन विकास को 41229 वोटों से शिकस्त मिली।
अजय चंद्राकर
तेजतर्रार छवि, ओबीसी चेहरा
बीजेपी में तेजतर्रार छवि वाले अजय चंद्राकर 1998 में पहली बार विधायक चुने गए। उसके बाद 2003 में जीतकर आए। हालांकि 2008 मे चंद्राकर को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन फिर से 2013, 2018 और अब 2023 में 5वीं बार चुनकर आए हैं। 2003 से 2008 तक चंद्राकर मंत्री रहे। 2013 में जीत के बाद फिर से मंत्री बने थे। इस चुनाव में तारिणी नीलम चंद्राकर को 8090 वोटों से शिकस्त दी है।
अमर अग्रवाल
पार्टी का भरोसेमंद चेहरा
अमर अग्रवाल बिलासपुर में बीजेपी के पितृपुरुष कहे जाने वाले दिवंगत नेता लखीराम अग्रवाल के बेटे हैं। अमर 1998 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद 2003, 2008 और 2013 में भी विधायक निर्वाचित हुए। 2003, 2008 और 2013 में मंत्री रहे।
2018 में कांग्रेस के शैलेष पांडेय ने अमर अग्रवाल को हराया था। 2023 में शैलेष पांडेय को 28959 वोटों से हराकर फिर विधायक बने।
पुन्नूलाल मोहले
SC वर्ग से पार्टी का चेहरा, लंबा अनुभव
45 साल से राजनीति में सक्रिय पुन्नुलाल मोहले 3 बार के मंत्री, 4 बार सांसद और 7 वीं बार विधायक चुने गए हैं। 1985 में पहली बार विधायक चुने गए इसके बाद 1990, 1994, 2008, 2013, 2018 और अब 2023 में विधायक चुने गए हैं।1996 में पहली बार सांसद चुने गए, इसके बाद 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए।
रमन सरकार में 2008 और 2013 में मंत्री रहे। 2023 में कांग्रेस के संजीत बनर्जी को 11781 वोटों से हराया।
विक्रम उसेंडी
आदिवासी और अनुभवी चेहरा
विक्रम उसेंडी 1993 में पहली बार अविभाजित मध्यप्रदेश के बस्तर क्षेत्र की नारायणपुर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने। 2003 में कांग्रेस के मंतुराम पवार को हराकर दूसरी बार नारायणपुर से विधायक बने और मंत्री पद मिला। 2008 और 2013 में भी जीत हासिल की।
2014 के लोकसभा चुनाव में कांकेर संसदीय सीट से सांसद निर्वाचित हुए और विधायकी से इस्तीफा दे दिया। विक्रम उसेंडी सांसद रहने के साथ ही छत्तीसगढ़ बीजेपी उपाध्यक्ष थे। 2019 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले धरमलाल कौशिक की जगह उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। जून 2020 तक विक्रम उसेंडी ने ये पद संभाला। इस चुनाव में 23710 वोटों से जीतकर आए।
केदार कश्यप
बस्तर के बड़े राजनीतिक परिवार का चेहरा
एक समय में बीजेपी का फेस कहे जाने वाले बलीराम कश्यप के बेटे हैं केदार कश्यप। 2003 में केदार कश्यप पहली बार विधायक बने। 2008 में दूसरी और 2013 में तीसरी बार विधायक चुने गए और मंत्री भी रहे। 2018 में केदार को कांग्रेस के चंदन कश्यप से हार का सामना करना पड़ा। 2023 के चुनाव में उन्होंने चंदन कश्यप को 19188 वोटों से हराया।
रामविचार नेताम
सरगुजा से BJP का अनुभवी आदिवासी चेहरा)
1990 में पाल विधानसभा क्षेत्र से पहली बार बीजेपी के टिकट पर विधायक बने। रामविचार नेताम 1993, 1998, 2003 और 2008 में 5वीं बार विधायक चुने गए। बीजेपी सरकार में वो राजस्व, आदिम जाति कल्याण, गृह-जेल, उच्च शिक्षा, जल संसाधन मंत्री रहे।
2013 में उन्हें कांग्रेस के प्रत्याशी बृहस्पति सिंह ने चुनाव हराया। इसके बाद 2018 के चुनाव में भी विधायक नहीं बन सके। बीजेपी ने उन्हे विधानसभा चुनाव हारने के बाद 2015 में राज्यसभा सांसद बनाया। 2023 में नेताम ने कांग्रेस के अजय तिर्की को 29663 वोटों से शिकस्त दी।
विष्णुदेव साय
सरल आदिवासी चेहरा
विष्णुदेव साय के सियासी सफर की शुरुआत साल 1989 में ग्राम पंचायत बगिया के पंच के रूप में हुई। साल 1990 में उन्होंने पहली बार जिले के तपकरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1999, 2004, 2009 और 2014 में 4 बार रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए।
साल 2014 में मोदी सरकार में केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री रहे। साय को संगठन में काम करने का भी लंबा अनुभव है। पार्टी ने उन्हें 2006 और 2020 में दो बार प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा। वर्तमान में विष्णुदेव साय बीजेपी के राष्ट्रीय कार्य समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य हैं।
महिला विधायकों में इन्हें मिल सकता है मंत्री पद
माना जा रहा है कि इस बार मंत्रिमंडल में महिलाओं की बड़ी भागीदारी हो सकती है। पिछली सरकारों में केवल एक ही महिला विधायक को कैबिनेट में जगह मिलती आई है, लेकिन इस बार 3 महिला विधायकों को शामिल किया जा सकता है। इसमें पहला नाम रेणुका सिंह का है।
रेणुका सिंह इस समय सीएम पद की रेस में भी है। अगर उन्हें सीएम नहीं बनाया जाता तो मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है। इसके अलावा गोमती साय और रमन सरकार में मंत्री रह चुकीं लता उसेंडी को भी मंत्री पद दिया जा सकता है।
रेणुका सिंह
तेजतर्रार आदिवासी महिला चेहरा
रेणुका सिंह 2003 में पहली बार प्रेमनगर विधानसभा सीट से विधायक चुनी गई थी। 2008 में उन्होंने कांग्रेस के नरेश कुमार राजवाड़े को हराया और दूसरी बार विधायक बनी और महिला बाल विकास मंत्री रहीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सरगुजा से बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की है।
मोदी मंत्रिमंडल में अनुसूचित जनजाति विकास राज्यमंत्री हैें। 2023 के चुनाव में भरतपुर-सोनहत सीट से कांग्रेस के गुलाब सिंह कमरो को 4919 वोटों से हराया। रेणुका सिंह छत्तीसगढ़ बीजेपी महिला मोर्चा की प्रदेश मंत्री भी रही हैं।
लता उसेंडी
बस्तर से बीजेपी का आदिवासी चेहरा
लता उसेंडी 2003 में पहली बार कोंडागांव विधानसभा सीट से विधायक बनीं। 2004 में भारतीय जनता युवा मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनीं। 2005 से 2013 तक महिला एवं बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। 2013 में तीसरी बार कोंडागांव से चुनाव में उतरीं, लेकिन कांग्रेस के मोहन मरकाम ने उन्हें हरा दिया। 2018 में मोहन मरकाम ने उन्हें दोबारा चुनाव हरा दिया।
2023 के चुनाव में लता पांचवी बार कोंडागांव विधानसभा से चुनाव मैदान में उतरीं और 18572 वोटों से मोहन मरकाम को शिकस्त दी।
गोमती साय
सरगुजा संभाग का नया आदिवासी चेहरा
गोमती साय ने सासंद रहते विधानसभा का चुनाव लड़ा। 2005 में वो पहली बार जिला पंचायत सदस्य बनी थीं। 2015 में जशपुर जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने विष्णुदेव साय का टिकट काटकर रायगढ़ से उम्मीदवार बनाया था। गोमती साय ने जीत हासिल की। इस चुनाव में पत्थलगांव सीट से कांग्रेस के 9 बार के विधायक रामपुकार सिंह को हराया है।
नए चेहरों को कैबिनेट में मिल सकती है जगह
नए मंत्रिमंडल में नए चेहरों को भी जगह दी जा सकती है। इनमें अरुण साव, ओपी चौधरी, विजय शर्मा और धर्मजीत सिंह का नाम शामिल है। हांलाकि धर्मजीत सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने की भी चर्चा चल रही है। नए चेहरों में ही गोमती साय का भी नाम शामिल है।
अरुण साव
प्रदेश अध्यक्ष और OBC फेस
अरुण साव साल 2019 में पहली बार बिलासपुर लोकसभा सीट से जीतकर सांसद बने। विष्णुदेव साय को हटाए जाने के बाद चुनाव से साल भर पहले अगस्त 2022 में ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 1990 से 1995 तक ABVP के मुंगेली तहसील इकाई के अध्यक्ष रहे। 1996 में युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष, प्रांतीय सह मंत्री और राष्ट्रीय कार्य समिति सदस्य बने।
अरुण साव 1996 से 2005 तक BJYM में अलग-अलग पदों पर कार्यरत रहे। 2018 से पहले वो प्रदेश के उप महाधिवक्ता भी रह चुके हैं।
ओपी चौधरी
प्रशासनिक अनुभव, ओबीसी फेस
कलेक्टरी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले ओपी चौधरी को साल 2018 के पहले चुनाव में ही हार का सामना करना पड़ा। खरसिया सीट से उमेश पटेल से मिली हार के बाद कयास ये लगाए जा रहे थे कि ओपी अब राजनीति में सक्रिय नहीं रहेंगे। हार के बाद भी कांग्रेस सरकार के खिलाफ ओपी चौधरी के तेवर तल्ख रहे। सक्रियता के चलते उन्हें बीजेपी संगठन में महामंत्री जैसा अहम पद दिया गया।
प्रशासनिक सेवा से राजनीति में आए ओपी चौधरी का भी नाम प्रदेश के सियासी गलियारों में मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन उन्होंने खुद ही इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया। इस चुनाव में ओपी चौधरी ने रायगढ़ सीट से चुनाव लड़ा और प्रकाश शक्राजीत नायक को 64443 वोटों से शिकस्त दी।
विजय शर्मा
पार्टी का कट्टर हिंदूवादी चेहरा
सामुदायिक तनाव और हिंसा के बाद हाईप्रोफाइल सीट बनी कवर्धा से बीजेपी ने विजय शर्मा को मैदान में उतारा था। 39592 वोटों से विजय शर्मा ने मंत्री मोहम्मद अकबर को शिकस्त दी। शर्मा वर्तमान में प्रदेश संगठन में महामंत्री के पद पर हैं। वो कवर्धा के जिला बीजेपी अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसके अलावा जिला पंचायत सदस्य रहे हैं।
जातिगत समीकरण को मंत्रिमंडल में कैसे बैलेंस किया जाएगा
माना जा रहा है कि मंत्रियों के नाम भी जातिगत और भौगोलिक समीकरण देखते हुए तय किए जाएंगे। विधानसभा सीटों के हिसाब से मुख्यमंत्री समेत 13 ही मंत्री कैबिनेट में हो सकते हैं। ऐसे में सभी संभागों को ध्यान में रखा जाएगा। सामान्य वर्ग के मंत्री शहरी क्षेत्र रायपुर और बिलासपुर संभाग से हो सकते हैं।
बिलासपुर संभाग से ही ओबीसी मंत्री बनाए जा सकते हैं। वहीं, सरगुजा और बस्तर संभाग से आदिवासी विधायक को मौका दिया जा सकता है। कांग्रेस की कैबिनेट में दुर्ग संभाग का दबदबा था लेकिन इस बार ज्यादा मंत्री सरगुजा और बिलासपुर संभाग से हो सकते है।
विधानसभा अध्यक्ष को लेकर इन नामों की चर्चा
नई सरकार में विधानसभा अध्यक्ष के लिए धरमलाल कौशिक का नाम चर्चा में है। कौशिक को इस पद का पहले से अनुभव भी है। बिल्हा से जीतकर आए कौशिक बीजेपी का ओबीसी चेहरा हैं। विधानसभा अध्यक्ष के साथ ही नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। इसके अलावा जोगी कांग्रेस से निष्कासन के बाद बीजेपी में शामिल होने वाले धर्मजीत सिंह के नाम की चर्चा भी विधानसभा अध्यक्ष को लेकर की जा रही है।
इस लिस्ट में एक नाम और जोड़ा जा रहा है और वो है अजय चंद्राकर का नाम। अगर उन्हें मंत्री पद नहीं मिलता, तब विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
धरमलाल कौशिक
पार्टी का अनुभवी ओबीसी चेहरा
धरमलाल कौशिक 1998 में वे पहली बार बिल्हा सीट से विधायक चुने गए। 2008 में दूसरी, 2018 में तीसरी और बार 2023 में चौथी बार विधायक बने। 2006 से 2008 तक महामंत्री और प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता भी रहे। 5 जनवरी 2009 को धरमलाल कौशिक छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष बनाए गए। 16 अगस्त 2014 को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने।
2019 से 2021 तक नेता प्रतिपक्ष भी रहे। विधानसभा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का अनुभव होने की वजह से विधानसभा अध्यक्ष को लेकर कौशिक के नाम की चर्चा है।
धर्मजीत सिंह
अनुभवी चेहरा
जोगी कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए धर्मजीत सिंह को भी विधानसभा अध्यक्ष का चेहरा माना जा रहा है। धर्मजीत सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर 1998 में पहली बार लोरमी विधानसभा से चुनाव लड़ा और बीजेपी के सिटिंग MLA मुनीराम साहू को 19 हजार वोटों से हराया था।
विधानसभा उपाध्यक्ष बनवारी लाल अग्रवाल के इस्तीफा देने के बाद धर्मजीत सिंह को पहली बार का विधायक होने के बाद भी जोगी ने उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष बनवाया। 2003, 2008 में भी सामाजिक समीकरण धर्मजीत सिंह के पक्ष में नहीं थे फिर भी वो लगातार तीन बार लोरमी से विधायक बने। चौथी बार उन्हें 2013 के विधानसभा चुनाव में लोरमी विधानसभा से बीजेपी के तोखन साहू से 6 हजार वोटों से हार मिली।
इस बीच अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना ली। धर्मजीत सिंह ने भी कांग्रेस छोड़ जोगी कांग्रेस का दामन थाम लिया। अजीत जोगी की पार्टी से 2018 में धर्मजीत ने लोरमी से बीजेपी के तोखन साहू को हराया। अजीत जोगी के निधन के बाद अमित जोगी के साथ उनकी पटरी नहीं बैठी।
बीजेपी या कांग्रेस नेताओं से मुलाकात को लेकर जोगी कांग्रेस ने उन्हें निष्कासित कर दिया। जिसके बाद वो बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी के टिकट पर कांग्रेस की रश्मि आशीष सिंह को 14892 वोटों से हराया।