देशभर में सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार ने एक अहम कदम उठाया है। आज यानी 7 मई को देश के 244 इलाकों में युद्ध के दौरान सुरक्षा उपायों की मॉकड्रिल (अभ्यास) की जाएगी। इसमें छत्तीसगढ़ के दुर्ग और भिलाई शहर भी शामिल हैं। यह मॉकड्रिल ऐसे समय में हो रही है जब पाकिस्तान से तनाव का माहौल बना हुआ है, खासकर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी।
1971 के युद्ध की यादें फिर से ताजा
इस मॉकड्रिल को लेकर भिलाई और दुर्ग के कई बुजुर्गों की 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान हुए सुरक्षा अभ्यास की यादें ताजा हो गईं।
दैनिक भास्कर की टीम ने इस मौके पर भिलाई स्टील प्लांट (BSP) से रिटायर हुए दो बुजुर्ग कर्मचारियों से बात की।
आर. एन. विद्यार्थी ने सुनाया 1971 का किस्सा
भिलाई के सेक्टर-4, सड़क-36 में रहने वाले आर. एन. विद्यार्थी, जो भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत थे, ने बताया कि:
“1971 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, तब प्लांट को किसी भी तरह के हमले से बचाने के लिए भिलाई में खास अलर्ट जारी किया गया था। मॉकड्रिल के दौरान पूरे शहर में ब्लैकआउट हो जाता था। पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाते हुए गश्त करती थीं। प्लांट की चिमनियों से भी सायरन बजता था। जैसे ही सायरन बजता, लोग तुरंत अपने घरों में चले जाते।”
उन्होंने बताया कि यदि कोई लाइट जलाता या बाहर आता, तो पुलिस की टीम तुरंत पहुंचती और ऐसा न करने की चेतावनी देती।
एस.एस. उपाध्याय ने बताया- कैसे घरों में अंधेरा किया जाता था
भिलाई के वैशाली नगर निवासी एस. एस. उपाध्याय ने बताया:
“हम उस समय भिलाई टाउनशिप में रहते थे। युद्ध शुरू होते ही माहौल बहुत डरावना हो गया था। लोगों को बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। खिड़कियों को अखबार और कार्डबोर्ड से पूरी तरह ढक दिया जाता था, ताकि कोई भी रोशनी बाहर न जाए।”
उन्होंने आगे कहा कि रात होते ही पूरा इलाका अंधेरे में डूब जाता था। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि अगर दुश्मन का जहाज ऊपर से गुजरे, तो जमीन पर कुछ भी नजर न आए।
आज की मॉकड्रिल कैसी होगी?
आज की मॉकड्रिल भी लगभग उसी शैली में की जा रही है, जिसमें लोगों को युद्ध जैसे हालात में खुद को सुरक्षित रखने के उपायों की ट्रेनिंग दी जाएगी।
दुर्ग जिले को कैटेगरी-2 में रखा गया है
सरकार ने देश के सभी सिविल डिफेंस जिलों को उनकी संवेदनशीलता के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा है:
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कैटेगरी-1: सबसे ज्यादा संवेदनशील
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कैटेगरी-2: मध्यम संवेदनशील (जिसमें दुर्ग शामिल है)
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कैटेगरी-3: कम संवेदनशील
भिलाई स्टील प्लांट की अहमियत को देखते हुए दुर्ग को कैटेगरी-2 में रखा गया है और जिले को विशेष सतर्कता में रखा गया है।
शाम 4 बजे क्या होगा?
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पूरे जिले में सायरन बजाया जाएगा।
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इसके बाद सिविल डिफेंस वॉर की मॉकड्रिल शुरू होगी।
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आम लोगों को बताया जाएगा कि हवाई हमले (एयर अटैक) की स्थिति में कहाँ छिपना है, कैसे रोशनी बंद करनी है और कैसे बचाव करना है।
कलेक्ट्रेट में हुई अहम बैठक
इस मॉकड्रिल को सफल बनाने के लिए दुर्ग कलेक्ट्रेट दफ्तर में एक अहम बैठक हुई, जिसमें:
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दुर्ग संभाग के कमिश्नर, IG, कलेक्टर, पुलिस, सेंट्रल फोर्स और सिविल अधिकारी मौजूद थे।
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SDRF (State Disaster Response Force) की ओर से एक वीडियो भी जारी किया गया, जिसमें दिखाया गया कि पैनिक सिचुएशन में लोगों को कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
मॉकड्रिल के दौरान क्या-क्या होगा?
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सायरन के जरिए चेतावनी दी जाएगी।
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इंडियन एयर फोर्स से रेडियो और हॉटलाइन से संपर्क स्थापित किया जाएगा।
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कंट्रोल रूम और शैडो कंट्रोल रूम सक्रिय रहेंगे।
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छात्रों और नागरिकों को सुरक्षा की ट्रेनिंग दी जाएगी।
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फायर ब्रिगेड, वार्डन, रेस्क्यू टीम आदि की टीम एक्टिव रहेंगी।
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ब्लैकआउट के दौरान जरूरी ठिकानों को कैसे छिपाना है, इसकी प्रक्रिया का परीक्षण किया जाएगा।
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लोगों को सुरक्षित जगहों तक ले जाने का अभ्यास होगा।
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बंकरों की सफाई और उपयोग की तैयारी की जाएगी।
❓ मॉकड्रिल और ब्लैकआउट एक्सरसाइज का मकसद क्या है?
मॉकड्रिल एक पूर्वाभ्यास है, जिसमें प्रशासन और आम जनता को यह सिखाया जाता है कि किसी आपातकाल, जैसे:
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हवाई हमला
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बम विस्फोट
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दुश्मन देश का अटैक
के समय किस प्रकार त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया दी जाए।
ब्लैकआउट एक्सरसाइज के दौरान इलाके की बिजली पूरी तरह काट दी जाती है ताकि अगर दुश्मन का कोई एयरक्राफ्ट हमला करे, तो वह जमीन पर किसी स्थान को टारगेट न कर पाए।
लोगों की राय – पाकिस्तान को जवाब जरूरी
1971 की घटनाओं को याद करते हुए बुजुर्गों ने कहा कि अब समय आ गया है कि पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया जाए।
लोगों का मानना है कि:
“युद्ध अब जरूरी हो गया है ताकि आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित रहें। पाकिस्तान बार-बार आतंकवाद के जरिए हमला करता है, ऐसे में जवाब देना जरूरी है।”