भारतमाला परियोजना : असल गुनहगारों को बचाने, जांच की दिशा भटकाने का कांग्रेस ने लगाया आरोप

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0 कहा- भ्रष्टाचार का आरोप सलेक्टिव पॉलिटिक्स का उदाहरण, जांच एजेंसियां भाजपा नेताओं की कठपुतली

रायपुर। विशाखापटनम भारतमाला परियोजना में भ्रष्टाचार और मुआवजा घोटाले की जांच को लेकर ईओडब्लू के कार्यवाही की दिशा पर सवाल उठाते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि असल गुनहगारों को बचाने जांच की दिशा भटकाई जा रही है। भ्रष्टाचार का आरोप भाजपा के सलेक्टिव पॉलिटिक्स का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जिसमें भाजपा के भ्रष्ट राजनेताओं, प्रभावशाली व्यवसायियों और चहेते अफसरों को सत्ता के संरक्षण के चलते अब तक जांच के दायरे से बाहर रखा गया है। इस दौरान जो जमीन दलाल और व्यायसायी भाजपा के खेमे में शामिल हो गए, उनके खिलाफ भी कार्यवाहियां रोक दी गई हैं।

60 आरोपी, मगर गिरफ्तारियां क्यों नहीं..?

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा है कि भारतमाला प्रोजेक्ट में हुए भ्रष्टाचार के संदर्भ में सरकार के पास तीन-तीन जांच प्रतिवेदन मौजूद है, पूर्व के जांच में 60 से ज्यादा लोगों को आरोपी बनाया गया है, उनकी गिरफ्तारी और उनसे रिकवरी क्यों नहीं हो रही है? भारतमाला परियोजना का डीपीआर 2017 में बना, जब केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की सरकार थी, आरोप है कि प्रोजेक्ट के डीपीआर में इरादतन षडयंत्र पूर्वक परिवर्तन किया गया। आरोप यह भी है कि भाजपा के पूर्व मंत्री, उनके रिश्तेदार और चहेतों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया है, मनमाने ढंग से 18-18 गुना बढ़ाकर मुआवजा दिया गया, सरकारी भूमि को भी निजी बताकर बेइमानी की गई।

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भाजपा के नेता ने उठाया था मुद्दा

प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि भाजपा के ही नेता चंद्रशेखर साहू ने पत्रकार वार्ता लेकर 53 एकड़ सरकारी जमीन को फर्जी तरीके से निजी बताकर मुआवजा हड़पने का आरोप लगाया था, 10 जिलों में 330 करोड़ और कुल 1000 करोड़ से अधिक के घोटाले की आशंका जताते हुए केंद्रीय एजेंसी से जांच कराने की मांग की थी, उन्होंने मुआवजा घोटाले से जुड़े प्रमाणित दस्तावेज होने का वादा किया था, अब वे मौन क्यों हैं?

NHAI के अफसरों की भूमिका की भी जांच हो…

वर्मा ने कहा ”असलियत यह है कि इसी तरह के भाजपा के डबल इंजन की सरकार के दौरान ही बड़े पैमाने पर षड्यंत्र रचे गए, कुल 60 खसरों को शामिल करते हुए मुआवजा की राशि 18 करोड़ 40 लाख दर्शायी गई है, जबकि वास्तविक पात्रता मात्रा 3.5 करोड़ थी, ये तो एक उदाहरण है, असल गड़बड़ी सैकड़ो करोड़ की है। सरकार के राजस्व में सीधे तौर पर डकैती है। गड़बड़ी की पूरी जानकारी जब जांच एजेंसियों को है, फिर चिन्ह-चिन्ह कर कार्यवाही क्यों? गड़बड़ी के प्रमाण सामने हैं, फिर भी जांच की दिशा को क्यों भटकाया जा रहा है?

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प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता वर्मा ने कहा है कि एनएचएआई के अफसरों और बैंकों की भूमिका की भी पारदर्शितापूर्वक जांच होनी चाहिए।

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