देश में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सिर्फ दो राज्य ऐसे हैं, जहां वाहनों में भी वीआईपी कल्चर है। मप्र में एमपी-01, एमपी-02 और एमपी-03 ये तीनों सीरीज वाले नंबर आम लोगों के लिए नहीं है। आमजन के वाहनों के लिए नंबर एमपी-04 से शुरू होते हैं। राजभवन के लिए एमपी-01, सरकारी वाहनों के लिए एमपी-02 और पुलिस के वाहनों के लिए एमपी-03 नंबर दिए जाने का प्रावधान है। इसमें भी एमपी-02 नंबर के लिए क्राइटेरिया खास है। ये नंबर सरकारी होते हुए भी सभी सरकारी अफसरों को नहीं दिया जाता। इसे लेकर कई बार आईएएस अफसरों के बीच ही विवाद सामने आते हैं।
हाल में कर्मचारी चयन मंडल ने अपने अध्यक्ष और एप्को ने अपने महानिदेशक (डीजी) के सरकारी वाहन के लिए (आरटीओ) से एमपी-02 नंबर मांगा था, लेकिन उन्हें यह कहते हुए साफ मना कर दिया गया कि यह नंबर निगम, मंडल या बोर्ड के लिए नहीं है। इनको मिलता है एमपी-02 नंबर : मंत्रालय में 54 विभाग हैं। मुख्यमंत्री, मंत्री और मुख्य सचिव समेत इन विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, उप सचिव और अंडर सेक्रेटरी तक इसके पात्र हैं।
बिजनेस रूल के हिसाब से माध्यमिक शिक्षा मंडल और राजस्व मंडल के चेयरमैन, एप्को के महानिदेशक, खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम, वेयर हाउसिंग काॅर्पोरेशन जैसे निगम मंडलों में पदस्थ अफसरों को इस नंबर की पात्रता नहीं है। भले ही इनमें कैबिनेट दर्जा प्राप्त मंत्री या मुख्य सचिव वेतनमान वाले सीनियर आईएएस ही क्यों न हों।
एमपी-02 वाले वाहन का न बीमा होता है, न रोड टैक्स
- रोड टैक्स में पूरी तरह छूट मिलती है।
- वाहन का बीमा नहीं होता।
- पूरे प्रदेश में सरकारी संस्थानों में प्रवेश में प्रोटोकाॅल मिलता है।
मप्र में ही ये कल्चर
रिटायर्ड आईएएस मनोहर लाल दुबे का कहना है कि वाहनों के नंबर आवंटन में वीआईपी कल्चर का प्रावधान मप्र में है, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में तो यह व्यवस्था नहीं है।
अधिकार राज्यों को
1956 में राज्यों के गठन के दौरान ही केंद्र से मोटर व्हीकल एक्ट में वाहनों के नंबर दिए जाने की व्यवस्था के अधिकार राज्यों को दिए गए थे, तब से ही मप्र में यह व्यवस्था है। अन्य राज्यों ने सरकारी और आम जनता के लिए वाहनों की व्यवस्था समान रूप से की है। वर्ष 2000 में मप्र से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना। इसलिए वहां भी मप्र जैसी व्यवस्था है।
प्रस्ताव आए थे
भोपाल आरटीओ रहे जितेंद्र शर्मा का कहना है कि एप्को और कर्मचारी चयन मंडल से नंबर अलाॅटमेंट का पत्र आया था। परिवहन आयुक्त से लिए अभिमत के अनुसार निगम, मंडल व बोर्ड जैसी संस्थाओ को एमपी-02 नहीं दिया जा सकता।