छत्तीसगढ़ के 45 हजार सरकारी स्कूलों में संचालित मध्याह्न भोजन योजना पर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। योजना के तहत संचालित रसोईयों में किसी भी दिन ताला लग सकता है, क्योंकि इस मद में स्कूल शिक्षा विभाग का अकाउंट खाली हो चुका है। राज्य की ओर से केंद्र को सत्र 2023-24 के लिए 300 करोड़ रुपए की मांग की गई है।
मगर, अब तक एक रुपए जारी नहीं हुआ है। इस योजना में केंद्र की शर्त यह है कि जब तक केंद्र बजट जारी नहीं करेगा, राज्य खुद के बजट का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। योजना में केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 60-40 का है। फिलहाल 30 लाख छात्र मिड डे मील का लाभ ले रहे हैं। दरअसल, केंद्र सत्र 2022-23 में दिए गए बजट का लेखा-जोखा (उपयोगिता प्रमाण पत्र (यूसी)) मांग रहा है। इस यूसी को केंद्र के पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट पोर्टल (पीएफएमएस) में अपलोड करना है।
छत्तीसगढ़ ने अपलोड की प्रक्रिया सत्र के शुरुआत में ही पूरी कर दी है। मगर, पोर्टल में तकनीकी खराबी है, जिसके चलते छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश समेत कई राज्यों का यूसी डिस्प्ले नहीं हो रहा। तकनीकी खराबी, स्कूल शिक्षा विभाग छत्तीसगढ़ और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के बीच आपसी तालमेल का अभाव या नियम-कायदों का परिणाम है कि खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ सकता है। उधर, भोजन पकाने वाले रसोईयों और स्वसहायता समुहों को भी 2-3 महीने से वेतन का भुगतान नहीं हुआ है।
छत्तीसगढ़ में 45 हजार स्कूल
- 30 लाख छात्र अध्ययनरत- मध्याह्न भोजन का मासिक खर्च 45 करोड़ रु.।
- योजना के लाभ- 1. स्कूलों में छात्रों के ड्रॉप आउट का प्रतिशत घटा है।
2. छात्रों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
असर खाने की गुणवत्ता पर भी
स्वसहायता समूहों तक मध्याह्न भोजन का बजट न पहुंचने का परिणाम है कि खाने की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। कई ने साफ-साफ लिखकर दे दिया है कि अगर दिसंबर में भुगतान नहीं हुआ तो जनवरी से काम बंद कर देंगे।
हमें बजट की जरूरत
मध्याह्न भोजन की राशि मुहैया करवाने के लिए केंद्रीय मंत्रालय को डिमांड लेटर भेजा गया है। बजट की सख्त आवश्यकता है।
-डॉ. एस. भारतीदासन, सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग