तबला उस्ताद ठाकुर वेदमणि सिंह का निधन: 97 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस, कला की विलक्षण प्रतिभाओं के थे धनी

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रायपुर। संगीत के महान साधक कलागुरु ठाकुर वेदमणि सिंह का 97 वर्ष आयु की निधन हो गया है। उनका जन्म 13 मार्च 1935 ई. को ठाकुर जगदीश सिंह के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ। ठाकुर साहब बी.ए., बी.एड. तो थे ही, वे एम. म्यूज़िक, तबला, गायन एवं सितार में भी बी. म्यूज थें। उन्हें तबले की तालीम पिता ठाकुर जगदीश सिंह, पंडित भूषण महाराज, स्वामी पागल दास से मिली। नृत्य विषयक तबले के बोल की विशेष शिक्षा उन्होंने पंडित फिरतू महाराज से ली। वे पिछले चालीस वर्षों से प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद के एम. म्यूजिक तक के परीक्षक रहे। उन्होंने सन् 1953 से 1995 तक हायर सेकेन्डरी स्कूल रायगढ़ में शिक्षकीय कार्य भी किया। इलाहाबाद, दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता, भुवनेश्वर, नागपुर, उज्जैन जैसे बड़े शहरों की उन्होंने सांगीतिक यात्रा कर अपने विलक्षण तबला वादन से दर्शकों को बार-बार चमत्कृत कर देते थे।

ठाकुर वेदमणि सिंह छोटे-बड़े सभी संगीतज्ञों की संगत सुगमता से कर लेते थें। उन्हें देश के नामी गिरामी संगीतज्ञों के सम्पर्क में आने के कारण अनेक अवसर मिले। यहाँ तक कि भारत रत्न शहनाई वादक स्वर्गीय बिस्मिल्ला खाँ साहब के साथ भी बैठने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका था। चक्रधर समारोह का कार्यक्रम तो पिछले 22 वर्षों से उन्हीं से शुरू होता है। ठाकुर साहब संगीत रचना में भी प्रवीण थें। उन्होंने अनेक नई-बन्दिशों की रचना की है, जिनमें दीनताल, मृदंगार्जुन ताल, विलास ताल, रेवती ताल, जगदीश ताल आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार उनके प्रिय राग हैं जयजयवंती, बहार, पूरियाधनाश्री, तालों में सवारी ताल, रुद्र ताल और रुपक ताल उन्हें विशेष प्रिय हैं। उनके आदर्श संगीतकारों में पंडित रविशंकर, गुदई महाराज, ओंकारनाथ ठाकुर, पड़े गुलाम अली खाँ, अल्लारखा खाँ थें। इनमें से कई संगीतकारों के दर्शन करने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

कथक पर आधारित ‘अनुकम्पन’ वृत्तचित्र का संगीत निर्देशन किया
श्री ठाकुर ने रायगढ़ कथक पर आधारित “अनुकम्पन” वृत्तचित्र का संगीत निर्देशन किया है। ठाकुर साहब को भावनगर में महाराष्ट्र मंडल द्वारा संगीत सम्राट की उपाधि से नवाजा गया था। उसी प्रकार उन्हें वैष्णव संगीत विद्यालय की और चक्रधर समारोह में ‘चक्रधर सम्मान’ द्वारा भी सम्मानित किया गया था। वे पिछले पैंसठ वर्षों से लक्ष्मण संगीत विद्यालय में विभिन्न पदों पर कार्य करते आ रहे थें। वर्तमान में प्राचार्य के पद को सुशोभित करते आ रहे थे।

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