छत्तीसगढ़ के बतौली जनपद के सेदम गांव में सड़क निर्माण का मामला बीते एक दशक से विवादों और घोटालों में उलझा हुआ है। प्रशासनिक अनदेखी और भ्रष्टाचार के चलते आज भी ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। बावजूद इसके, गांववासियों ने हिम्मत नहीं हारी और श्रमदान के जरिए अपनी राह खुद बनाने का संकल्प लिया है।
2016 में स्वीकृत हुई थी राशि, घोटाले ने बिगाड़ा खेल
सड़क और पुलिया निर्माण के लिए वर्ष 2016 में शासन द्वारा ₹5 लाख की राशि स्वीकृत की गई थी। लेकिन निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही बैंक के कैशियर द्वारा ₹3 लाख की राशि गबन कर लेने का मामला सामने आया, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया। यह घोटाला उस समय क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया था।

पाइप पुलिया पर विवाद, निर्माण कार्य बार-बार ठप
ग्रामीणों की शुरू से मांग रही कि पाइप पुलिया से समस्या का हल नहीं होगा। क्योंकि इससे बारिश के मौसम में बस्तियों में पानी भरने की समस्या बनी रहती है। बचे हुए ₹2.44 लाख से निर्माण की कोशिश की गई, लेकिन ग्रामीणों के विरोध के कारण काम आगे नहीं बढ़ सका। इसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान बिना किसी आदेश और डिजाइन के ₹40,000 की राशि से सड़क निर्माण का प्रयास हुआ, जिसे ग्रामीणों ने फिर से रोक दिया।
प्रशासनिक चक्कर, लेकिन समाधान नहीं
पिछले दस वर्षों में ग्रामीण जिला मुख्यालय और जनपद कार्यालय के चक्कर लगाते रहे, लेकिन सड़क निर्माण का स्थायी समाधान नहीं निकल सका। ग्रामीणों का कहना है कि वे बार-बार अपनी समस्या अधिकारियों के सामने रखते रहे, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला।

अब श्रमदान बना उम्मीद की किरण
आखिरकार, गांववासियों ने खुद श्रमदान कर सड़क को आवाजाही योग्य बनाने की ठानी है। ग्रामीणों ने पाइप पुलिया की सफाई कर, उस पर मिट्टी डालकर और सीमेंट से ढलाई कर सड़क को चलने लायक बनाया है। यह सड़क सेदम भंडार से होकर मुख्य बस्ती तक जाती है। जहां बाबापारा और सेमरपारा जैसी बस्तियों में 500 से अधिक लोग निवास करते हैं।
स्थायी समाधान की दरकार
फिलहाल श्रमदान से अस्थायी रूप से आवाजाही बहाल हो गई है, लेकिन ग्रामीणों को अब भी स्थायी और सुरक्षित सड़क की उम्मीद है। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द सड़क निर्माण का स्थायी समाधान निकाला जाए, ताकि उन्हें आने-जाने में परेशानी का सामना न करना पड़े।