राजस्थान के बारां जिले के छोटे से गांव भडाडसूई से निकलकर मोनू मीणा ने NEET 2025 में 748वीं रैंक हासिल कर दिखा दिया कि सपना चाहे जितना बड़ा हो, अगर हौसला मजबूत हो तो रास्ते खुद बन जाते हैं।
पिता का साया खोया, मां बनीं ढाल
साल 2011 – मोनू की जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़। पिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। एक छोटे से किसान परिवार की जिम्मेदारी अब आ गई मां कालावती बाई पर, जो खुद खेतों में मजदूरी कर बच्चों को पढ़ाने का सपना पाले हुए थीं। वो खेत, वो कच्चा घर, वो संघर्ष — और उस मां की आंखों में था एक सपना, ‘मेरा बेटा डॉक्टर बने’।
♂️ भाई ने छोड़ा खुद का सपना, चुनी छोटे भाई की राह
मोनू के बड़े भाई अजय मीणा भी डॉक्टर बनना चाहते थे। लेकिन घर की स्थिति ने दो बेटों की कोचिंग की इजाजत नहीं दी। ऐसे में अजय ने चुपचाप अपना सपना त्याग दिया और मोनू को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। खुद B.Sc. में एडमिशन लिया और मोनू को कहा – “तू पढ़, तू आगे बढ़।”
10वीं में 91.5% लेकिन कोचिंग कैसे हो?
मोनू ने अपनी प्रतिभा 10वीं में ही दिखा दी थी लेकिन कोचिंग की फीस, रहने और खाने का खर्च परिवार के लिए बड़ा सवाल था। ऐसे में मोनू की मां ने Motion Education Kota से संपर्क किया और वहां उन्हें राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री अनुप्रति कोचिंग योजना के बारे में बताया गया।
इस योजना के तहत मोनू को 2 साल की मुफ्त कोचिंग, रहने और खाने की सुविधा मिली।
“माध्यम नहीं, मेहनत मायने रखती है” – कोचिंग डायरेक्टर का संदेश
जब मोनू पहली बार कोचिंग पहुंचे, तो डायरेक्टर एन.वी. सर ने मोनू की आंखों में झांककर कहा –
“माध्यम कोई बाधा नहीं, मेहनत से ही मंजिल मिलती है।”
यही बात मोनू के अंदर बैठ गई, और फिर शुरू हुआ असली संघर्ष।
NEET 2025 में शानदार रैंक – 748
मोनू ने लगातार कठिन मेहनत और खुद को परिस्थितियों के पार खींचते हुए NEET में 748वीं रैंक हासिल की और अब सरकारी मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं।
राष्ट्रबोध से मोनू की खास बातचीत – पढ़िए दिल छू लेने वाले जवाब:
Q1: गांव के बच्चों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे?
“अगर मैं कर सकता हूं तो आप क्यों नहीं? संसाधनों की कमी के बावजूद सरकार की योजनाएं और मेहनत ही सबसे बड़ा समाधान हैं।”
Q2: मां को क्या कहना चाहेंगे जो शब्दों में कभी नहीं कहा?
“मैं जो कुछ भी हूं, मां की वजह से हूं। उन्होंने खेतों में काम किया, खाना छोड़ा, नींद छोड़ी – ताकि मैं पढ़ सकूं। मेरी मां ही मेरी दुनिया हैं।”
Q3: कभी ऐसा पल जब हिम्मत टूटने लगी हो?
“कई बार लगा कि अब आगे नहीं बढ़ सकूंगा, लेकिन मां का चेहरा याद आया – और खुद को संभाल लिया।”
Q4: भाई के त्याग को कैसे देखते हैं?
“मेरे भाई ने खुद डॉक्टर बनने का सपना छोड़ दिया ताकि मैं बन सकूं। जब मैं पहली बार कोटा गया, वो कई दिन तक साथ रहा – ये एहसान मैं कभी नहीं भूल सकता।”
Q5: हिंदी माध्यम से आने के क्या संघर्ष रहे?
“हिंदी मीडियम से आने के कारण शुरुआत में डर था, लेकिन कोचिंग ने सपोर्ट किया। एनवी सर ने विश्वास दिलाया और रास्ता दिखाया।”
मोनू की सफलता – एक परिवार का सपना, एक गांव की उम्मीद
मोनू मीणा की कहानी केवल एक परीक्षा पास करने की नहीं है, ये उस मां की है जिसने अपनी भूख मारकर बेटे को कोचिंग भेजा।
ये उस भाई की कहानी है जिसने सपनों को त्यागकर छोटा भाई बनाया डॉक्टर।
और ये उस जिद की कहानी है जो कहती है –
“माध्यम नहीं, मेहनत मायने रखती है।”
यह रिपोर्ट राष्ट्रबोध द्वारा तैयार की गई है। प्रेरणादायक और संघर्ष से भरी ऐसी और कहानियों के लिए जुड़े रहिए।