मुख्य बिंदु हाइलाइट्स:
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सुप्रीम कोर्ट ने निर्दोष होकर जेल से रिहा हुए लोगों को मुआवजा देने के लिए नया कानून बनाने की सलाह दी
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14 साल जेल में बिताने वाले केरल के देवाकर को SC ने बेकसूर करार दिया
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कोर्ट ने कहा – “जिस केस की बुनियाद ही नहीं, उसमें इंसान को जेल भेजना गंभीर अन्याय”
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पुलिस की लापरवाही पर SC का सख्त रुख – DNA जांच और पुलिस ट्रेनिंग के लिए नए निर्देश
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संसद से अपील – “अब ऐसे निर्दोषों को मुआवजा देने का स्पष्ट रास्ता बनना चाहिए”
मामले की पृष्ठभूमि – 14 साल का अंधकारमय इंतजार
केरल के कत्तावेल्लई उर्फ देवाकर ने एक ऐसा समय झेला, जिसकी कल्पना भी डरावनी है।
साल 2011 में एक प्रेमी जोड़े की लाश मिलने के बाद देवाकर को बिना ठोस सबूतों के बलात्कार और हत्या का दोषी मानकर गिरफ्तार कर लिया गया।
ट्रायल कोर्ट और फिर हाई कोर्ट ने भी पुलिस की जांच पर भरोसा कर मौत की सजा सुना दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जब इस फैसले की गहराई से समीक्षा की, तो सच सामने आया – देवाकर बेगुनाह था।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: “अब बहुत हुआ अन्याय”
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ – जस्टिस संजय करोल, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता – ने कहा:
“जिस केस की बुनियाद ही नहीं थी, उसमें इंसान को सालों जेल में रखना लोकतंत्र और न्याय दोनों के साथ अन्याय है।”
SC ने इस मौके पर अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों का उदाहरण दिया, जहां बेगुनाह साबित होने पर सरकार उन्हें आर्थिक मुआवजा देती है। भारत में ऐसा कोई कानूनी प्रावधान अब तक नहीं है।
कोर्ट ने संसद से क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सीधे संसद से अपील की कि वह एक विशेष कानून बनाए, जिससे:
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जो व्यक्ति सालों कैद में रहने के बाद निर्दोष साबित हो जाए,
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उसे सम्मानजनक मुआवजा मिले,
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साथ ही न्याय प्रणाली में उसकी गरिमा की पुनर्स्थापना हो।
पुलिस पर सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा – “गैरजिम्मेदार जांच”
SC ने पुलिस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि:
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जांच में जल्दबाज़ी,
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बिना वैज्ञानिक सबूत के आरोप,
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और मूलभूत फोरेंसिक लापरवाही साफ दिखती है।
DNA जांच में लापरवाही को देखते हुए पूरे देश के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।
DNA जांच और पुलिस ट्रेनिंग पर नए नियम
कोर्ट ने कहा:
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DNA सैंपल सावधानी से लिए और सुरक्षित रखे जाएं
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DNA कलेक्शन के दौरान मेडिकल प्रोफेशनल, IO और स्वतंत्र गवाहों के दस्तखत अनिवार्य हों
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पुलिस ट्रेनिंग में फॉरेंसिक साइंस और मानवाधिकार की शिक्षा शामिल की जाए
क्या थे सबूतों में खामियां?
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हत्या में उपयोग हुआ कथित हथियार साफ था – कोई खून का निशान नहीं
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कपड़ों पर न खून मिला, न सीमेन, न ही DNA मेल खाया
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मेडिकल रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि नहीं थी कि चोटें उसी हथियार से दी गई थीं
अब सवाल उठता है…
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अगर देवाकर 14 साल के बाद बेकसूर निकला, तो उसकी जिंदगी के वो साल कौन लौटाएगा?
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क्या समाज, प्रशासन और व्यवस्था को ऐसे मामलों में अपनी चुप्पी तोड़नी नहीं चाहिए?
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और क्या भारत को अब ‘राइट टू कंपेन्सेशन फॉर व्रॉन्गफुल इम्प्रिज़नमेंट’ का कानून नहीं चाहिए?
न्याय का असली मतलब क्या है?
देवाकर जैसे हजारों लोग आज भी जेलों में बंद हैं – शायद वो भी बेगुनाह हों।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी न्याय व्यवस्था में ऐतिहासिक चेतावनी की तरह है।
यह सिर्फ एक केस नहीं, यह लोकतंत्र और मानवाधिकार के मूल सिद्धांतों की पुकार है।