छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म का विस्तार: 4 लोगों से शुरू हुई यात्रा, आज 6 लाख आबादी तक पहुंचा समुदाय

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छत्तीसगढ़ में इन दिनों धर्मांतरण को लेकर हालात तनावपूर्ण हैं। 25 जुलाई को दो मिशनरी सिस्टर्स की गिरफ्तारी और 28 जुलाई को कांकेर में ईसाई परिवार पर हमला, इन दोनों घटनाओं ने राज्य से लेकर संसद तक हलचल मचा दी है। सियासी संग्राम तेज है, लेकिन इसी बीच एक जरूरी सवाल भी उभरकर सामने आता है—छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म की शुरुआत आखिर कब और कैसे हुई?

157 साल पुरानी है छत्तीसगढ़ में क्रिश्चियनिटी की जड़ें

छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म की नींव 1868 में जर्मन मिशनरी द्वारा रखी गई थी। उस समय केवल 4 अनुयायियों से शुरुआत हुई, लेकिन आज यहां ईसाई समुदाय की जनसंख्या 6 लाख के करीब पहुंच चुकी है। यह बदलाव कैसे हुआ, इसे समझने के लिए इतिहास की परतों में झांकना जरूरी है।

 पहला चर्च और कब्रिस्तान: बस्तर से शुरूआत

जर्मन मिशनरी रेवरेंड गुस्ताव एंजर ने छत्तीसगढ़ में पहला चर्च और कब्रिस्तान बनाया था।

  • यह चर्च कोण्डागांव के पास बनाया गया था।

  • यहीं उन्होंने पूरे गांव को ईसाई धर्म में परिवर्तित किया।

  • एंजर की कब्र भी इसी इलाके में मौजूद है, जो अब इतिहास का जीवित दस्तावेज बन चुकी है।

 कैसे हुआ विस्तार?

  • मिशनरियों ने जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और मानवसेवा के जरिए प्रभाव बनाया।

  • बस्तर, कांकेर, सरगुजा, जशपुर, रायगढ़ जैसे क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों ने गहरी पकड़ बनाई।

  • धीरे-धीरे पूरे गांव धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में शामिल होते गए।

2011 की जनगणना के अनुसार धार्मिक जनसंख्या (छत्तीसगढ़):

धर्म प्रतिशत (%) अनुमानित जनसंख्या
हिंदू 93.25% ~2.38 करोड़
मुस्लिम 2.02% ~5.1 लाख
ईसाई 1.92% ~4.9 लाख
सिख 0.27% ~68 हजार
बौद्ध 0.27% ~68 हजार
अन्य धर्म 1.94% ~5 लाख
धर्म नहीं बताया 0.09% ~23 हजार

 हाल की घटनाएं: विवाद और विरोध

  • 25 जुलाई: दुर्ग में दो मिशनरी नन की गिरफ्तारी, कथित जबरन धर्मांतरण के आरोप में।

  • 28 जुलाई: कांकेर में ईसाई व्यक्ति की दफन क्रिया को लेकर बवाल, चर्च और घरों में तोड़फोड़, लाश को कब्र से निकाला गया।

इन घटनाओं ने हिंदू और ईसाई समुदायों के बीच तनाव की स्थिति को और बढ़ा दिया है।
सांसदों का प्रतिनिधिमंडल जेल पहुंचा और राज्य सरकार पर झूठे केस दर्ज करने के आरोप लगाए।

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